Thursday, August 18, 2016

समाज सुधार

साहित्य समाज सुधारने के लिए,

देखिये, अश्लील या नया फ़िल्म सी.डी बनानेवाले ,
सी.डी, बेचनेवाले , दोनों पकडे जाते हैं, दोनों छूट जाते हैं,
किसी को डर नहीं, फिर वहीं धंधे करते रहते हैं,
दोनों को क़ानून का भय नहीं.

रेल में फल बेचती औरत , पुलिस पकड़कर ले जाती,
दो दिन बाद वह फिर फल बेचती,
पूछा--आज पुलिस न पकड़ेगी?
पुलिस, उनको मामूल मिलना था,
सरकार कोदिखाना था, हो गयाकाम.
मुझे अपना धंधा चलाना था.

चरवाहे संकेतबत्ती में व्यापारी-भिखारियों का तांता,
वहाँ भीचलती हैं दलाली.
हर जगह अन्याय-धोखा दडी के पीछे

बलात्कार के पीछे, भ्रष्टाचार के पीछे,

कुछ राजनीतीके नेताया दलाल या रिश्वत

क़ानून चल रहा है नाम के वास्ते,

रेल की चोरियाँ लगातार,
चुनाव मेंधन कीमहिमा,
न क़ानून का भय, न रिश्वत का भय, न ईश्वर का भय,
न यह सोच मृत्यु निश्चित.

साहित्यकार कुचोन्नत वर्णंकरता हैं,
न युवकों को सुधारने कीचिंता,
अर्द्ध नग्न अभिनेत्रियाँ न चिता करती समाज का,
न युवकों का, उनकीअपनी आय बस,
निर्माता-निर्देशक केवल धन कीचिंता करते,
खून,प्यार, पुलिस अधिकारी, मंत्रीभ्रष्टाचारी दिखाना,
पर समाज में मतदाता में न जागरण
दिन-बी- दिन ये सब बढ़ते रहते हैं.
कब जागरण होगापता नहीं,
सत्तर साल के बाद फिर रीतिकाल.
माया-ममता भरी.

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