समाज सुधारने साहित्य ।
समाज बनने साहित्य ।
समाज बिगाडने साहित्य ।
सज्जनों की दोस्ती दिन ब दिन ।
दर्जनों की दोस्ती घटेगी दिन ब दिन।
कृष्ण पक्ष - शुकलपक्ष समान।
तमिल संघ काल की कवयीत्री
औवैयार की सीख।
युवकों से कहती -
नौकरी मिलते ही अधिक खर्च करोगे तो
मान - मर्यादा खोकर बुद्धि -भ्रष्ट होकर
सबके नजरों में दुष्ट , सात जन्मों में चोर।
अच्छों को भी बुरा बनोगे जान।
कंजूसी के बारे में :-
कठोर मेहनत| करके धन कमाकर ,
धन गाढकर रखते तो एक दिन
प्राण पखेरु उडेंगे तो पापी!
कौन भोगेगा वह संपत्ती।
प्राचीन| साहित्य समाज निर्माण केलिए ।
आधुनिक साहित्य रीति काल जैसे ।
प्यार के नाम कुत्ते जैसे घूमना ,
भौंकना , काटना ,चाटना,
जीवन बन जाता अशांत।।
दर्जनों की दोस्ती घटेगी दिन ब दिन।
कृष्ण पक्ष - शुकलपक्ष समान।
तमिल संघ काल की कवयीत्री
औवैयार की सीख।
युवकों से कहती -
नौकरी मिलते ही अधिक खर्च करोगे तो
मान - मर्यादा खोकर बुद्धि -भ्रष्ट होकर
सबके नजरों में दुष्ट , सात जन्मों में चोर।
अच्छों को भी बुरा बनोगे जान।
कंजूसी के बारे में :-
कठोर मेहनत| करके धन कमाकर ,
धन गाढकर रखते तो एक दिन
प्राण पखेरु उडेंगे तो पापी!
कौन भोगेगा वह संपत्ती।
प्राचीन| साहित्य समाज निर्माण केलिए ।
आधुनिक साहित्य रीति काल जैसे ।
प्यार के नाम कुत्ते जैसे घूमना ,
भौंकना , काटना ,चाटना,
जीवन बन जाता अशांत।।
No comments:
Post a Comment