Tuesday, August 2, 2016

साहित्य

समाज सुधारने साहित्य ।
समाज बनने साहित्य ।
समाज बिगाडने साहित्य ।
सज्जनों की दोस्ती  दिन ब दिन ।
दर्जनों की दोस्ती घटेगी दिन ब दिन।
कृष्ण पक्ष - शुकलपक्ष  समान।
तमिल संघ काल की कवयीत्री
औवैयार  की सीख।
  युवकों से कहती -
नौकरी मिलते ही  अधिक  खर्च करोगे तो
मान - मर्यादा खोकर बुद्धि -भ्रष्ट होकर
सबके  नजरों में दुष्ट , सात जन्मों में चोर।
अच्छों को भी  बुरा बनोगे जान।
कंजूसी के बारे में :-
कठोर मेहनत| करके धन कमाकर ,
धन गाढकर रखते तो एक दिन
प्राण पखेरु उडेंगे तो पापी!
कौन भोगेगा  वह संपत्ती।
  प्राचीन| साहित्य  समाज निर्माण केलिए ।
आधुनिक साहित्य रीति काल जैसे ।
प्यार  के नाम कुत्ते  जैसे घूमना ,
भौंकना , काटना ,चाटना,
जीवन बन जाता अशांत।।

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