मित्र बंधु का दान
मित्र बंधु एक चमार था।
अपने राजा राम से अत्यंत प्यार करता था।
राम विश्वामित्र की यग्ञ -हवन की रक्षा करके
मिथिला के स्वयं वर जीतकर अयोध्या लौटे।
तब गरीब चमार पर गहरा प्यार
,
संकोच के साथ एक जूता काट का दान में दिया।
संकोच के साथ एक जूता काट का दान में दिया।
भगवान राम ने दिल से
उस भेंट को स्वीकार कर लिया।
जब उनको वनवास की आग्या मिली ,
तब उनका एक मात्र माँग वह जूता
।
वही पादुका बाद में सिंहासन में स्थान पायी।
वही पादुका बाद में सिंहासन में स्थान पायी।
भगवान प्यार को ही मानता है,
बहुमूल्य वस्तुओं को नहीं।
सच्चा प्यार भक्ति ही प्रधान है।
No comments:
Post a Comment