Monday, August 29, 2016

पर

पर है तो उडकर मिलूँगा  मित्रों से,
धन  है तो भी उड आ सकूँगा।
मनोवेग से मिलने ,
मिल गई मुख पुस्तिका।
सार्थक हो या निरर्थक,
पसंद हो या न पसंद
वास सुवास हे या बद वास,
सुधारने या बिगाडने
पाठक या न हो,
चाहक हो या न हो,
मन के विचार लिख देता हूँ।
छंद  नियम के बंधन सोचता,तो
क्या लिख -बक सकता हूँ।
कभी नहीं।
  अभिव्यक्ति साहित्य ।
   अक्षर - शब्द गिनकर| लिखूँ।
क्या घनाक्षरी ,मालिनी, दोहा , चौपाई,
ऐसे शब्द   जिनके
अर्थ  समझना ढूँढना अति मुश्किल।
  यों ही सोचता तो अभिव्यक्ति अति दुर्लभ।
  वर कवि ईश्वरीय देन ,
वाल्मीकि ,तुलसी जैसे।
आज  अहं ब्रह्मास्मी  बनना है,
जैसे देवों में भी दुर्देव।
सृष्टियों में शैतानियत।

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