हिंदी की समस्या में सरकार करोड़ों रूपए खर्च कर रही है।
दस छात्र पढ़नेवाले कालेज के प्रोफेसर के लिए एक लाख।
हिंदी अफ़सर के लिए एक लाख। पर सैकड़ों छात्रों में जनता में हिंदी प्रचार करने स्थाई प्रचारक नहीं, उनके लिए उचित वेतन नहीं तमिलनाडु में। हम अपनी हिंदी की दूकान चला रहे हैं। हमको न पेंशन न प्रोत्साहन। न मेडिकल सुविधाएं।
अतः तमिलनाडु में हिंदी प्रचार अंशकालीन है। अन्यान्य काम करते हुए हिंदी का प्रचार कर रहे हैं। द्विभाषा नीति 58साल से लागू है। जिस भाषा को पढ़ने से नौकरी नहीं, भाषा सीखने से लाभ नहीं है।
ईश्वर भाई कमिटि में साफ सिफारिश है कि आठवीं कक्षा तक भाषा काफ़ी है।
गाँधीजी की बेसिक शिक्षा भी
कोई न कोई पेशा सीखने पर ज़ोर देती है।
नौकरी के प्रभाव से ही अंग्रेज़ी
को प्रधानता है।
हिंदी सम्मेलन आजकल धनियों का सम्मेलन है।
मलेशिया में सम्मेलन ।
यात्रा खर्च तमिलनाडु का मामूली प्रचारक भाग नहीं ले सकते। धनी कालेज के लोग ही एक या दो भाग लेते हैं।
उनका सम्मान करते हैं।
मुझे कन्याकुमारी आना है तो पंद्रह हज़ार खर्च करना पड़ेगा।
कोई आर्थिक लाभ नहीं है।
एक सांसद विधायक सौ करोड खर्च करके हज़ारों करोड़ कमाते हैं।
हिंदी सम्मेलन कठोर मेहनत के पैसे खर्च करके नालायक सम्मान।
यह तो न्याय पूर्ण कार्य नहीं है।
अमीर अपने मनमौजी के लिए हिंदी सम्मान सम्मेलन।
78 की आज़ादी पर मातृभाषा के प्रति सम्मान नहीं। अंग्रेज़ी माध्यम पाठशाला धन कमाने के लिए।
न संस्कृति न भाईचारा न अनुशासन,।
मैं तमिलनाडु में केवल हिंदी प्रचार में लगता तो
भूखा प्यासा मर जाता।
पैसे न होने पर सम्मान भी नहीं सम्मेलन भी नहीं।
हिंदी का विकास तो देश की स्वतंत्रता संग्राम नहीं।
वे नेता हिंदी के नहीं,
अंग्रेज़ी के पारंगत, अंग्रेज़ी द्वारा
कमानेवाले न भारतीय भाषाओं के पक्ष में नहीं है।
आजकल कृषी के विकास के औजार ट्राक्टर खाद,
पीने का पानी, पेय सब विदेशी कंपनी की देन है।
इस मोबाइल भी टंकण भी अंग्रेज़ी ज्ञान के बिना अधूरी है।
अंग्रेज़ी हटाकर जड़मूल परिवर्तन संभव नहीं है।
हिंदी अनूदित किताबें तमिल अनूदित किताबें गोदाम में।
हिंदी और भारतीय भाषाओं का विकास होना है तो
अंग्रेज़ी माध्यम पाठशालाओं को बंद करना चाहिए।
यह तो बिल्कुल दुर्लभ काम है।
हिंदी के खर्च तो हिंदी भाषियों के लिए लाभप्रद है, न हिंदी तर प्रांत के लिए । बीस प्राध्यापक अंग्रेज़ी माध्यम के हैं।
एक प्राध्यापक हिंदी के।
अतः ये सम्मेलन अमीर हिंदी के पक्षधर के लिए, न साधारण हिंदी प्रचारक के लिए।
एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।