Monday, July 15, 2019

अध्यापक

नवोदित साहित्यकार मंच
के संचालक, संयोजक, समन्वयक  सब को नमस्कार।
   शीर्षक:-
गुरु, मुर्शिद,शिक्षक,
अध्यापक ,निजी अध्यापक।
आजकल अध्यापक संघ
मजदूर संघ समान।
 मजदूरी  से मंजूरी।
 गुरु माने बडा।
 गुरु  गिरिवर से
गिर गिरकर नदी ने बहना सीखा।
कविता  बचपन में  पढी।
गुरुकुल में  प्रवेश अति दुर्गम।
गुरु  मिलना भाग्य  पर निर्भर।
गुरु आडंबर रहित  कुटिया  में। पर केवल  प्रतिभाशाली  को ही शिक्षा  देते।
आज कल के अध्यापक  अति उदार।
सभी को शिक्षा  देने  तैयार।
न देखते सूचित,अनुसूचित प्रतिभाशाली, औसत,मंद बुद्धि।
शुल्क  अदा करो।
स्नातक, स्नातकोत्तर  ग्यारंटी।
आगे सिर्फ  अंग्रेज़ी बोलते।
केंपस इंटरव्यू,
नौकरी  ग्यारंटी।
अंग्रेज़ पोशाक,
अग्रजिह्वा में  अंग्रेज़ी, पोशाकें, खाना,पीना,
उठना,बैठना,
चमचागीरी  बस
ये सब सिखाने अध्यापक।
केवल शुल्क।
सभी कौशल,
सर्वांगीण विकास।
आधुनिक शिक्षक,
शिक्षाप्रणाली में
भारत  में  करोडपति ज्यादा।
हर विषय  के अलग-अलग विशेषज्ञ।
विज्ञान  अध्यापक  गणित  नहीं  जानते।
हिंदी   और भारतीय  अध्यापक  के
उपदेशात्मक अनुशासन के दोहे  को प्राथमिकता नहीं।
संक्षेप  में  कहें  तो भारतीयता
भूल धन कमाने का, खर्च  करने की सीख सीखने,
हर क्षेत्र  के विशेषज्ञ  अध्यापक।
 गुरु से  संकुचित  ज्ञान, पर बाह्याडंबर  दिखावे के बडे
अध्यापक ।
सलाम। स्वरचित स्वचिंतक।
शिक्षक  के सामने सभी बराबर।
धनी निर्धनी  के  आसमान  पाताल का भेद।
स्वरचित स्वचिंतक:
यस.अनंतकृष्णन।

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