Wednesday, July 3, 2019

अस्थाई जगत

सबको नमस्कार।
 प्रणाम।
 चित्र लेखन।
 अस्थाई जगत।
 स्थाई प्राकृतिक  परिवर्तन।
पतझड  में गिरे ,
वसंत  में  पनपे,
पुनरपि जननम्,
पुनरपि  मरणम का प्रतीक।
भाषा परिवर्तन,
पोशाक परिवर्तन।
अभिवादन  प्रणाली  परिवर्तन।
शिक्षा प्रणाली में,
विचारों  में,
हर बात में  परिवर्तन।
प्राचीनतम  में  नवीनतम।
नवीनतम  में आनंद।
आविष्कारों  में आधुनिकीकरण,
यही जगत  मिथ्या का मूल।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंत कृष्णन।

No comments:

Post a Comment