Thursday, July 25, 2019

निकल पडे।

नमस्ते।
निकल पडे
सूर्य  देव।
अंधकार
 निकल पडा।
काले बादल   छाये,
सूखापन
निकल पडा।
हरियाली छायी।
 फूल खिले,
फल निकले,
निकल पडी ज्येष्ठ
आ गई  लक्ष्मी  ।
आनंद  छा गया।
निकल पडे  वीर,
शत्रु भाग निकल पडे।
 निकल पडे,
निकालने
साधु वचन,
मन से बद  विचार  निकल पडे।
सिद्धार्थ राजमहल से निकल पडे,
एशिया  के ज्योति बने।
एक बूंद पानी आ समान से निकल पडी,सी पी में गिर  मोती  बनी।
एक तिनका निकल पडी,
कवि की आँख में  गिरी,अहंकार कवि का निकल पडा।
आज निकल पडे
अनेक  विचार।
 धन्यवाद निकल पडे, वाह, वाह  सुनकर।
स्वरचित स्वचिंतक  यस.अनंतकृष्णन
  (मतिनंत)

No comments:

Post a Comment