प्रकृति का वरदान
++++++++++++
एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
20-11-25
+++++++++
प्रकृति के वरदान
मानव स्वभाव,
पशु स्वभाव,
पक्षी स्वभाव,
वनस्पति जगत,
कीड़े मकोड़े,
अंडज,
पिंडज
स्वेतज
उद्भिज्ज।
नदी
नाले
झील
जलप्रपात
स्त्रोत
समुद्र
समुद्र के जीव
सूर्य, चंद्र, नक्षत्र
खान
सोना,
हीरा
नवरत्न
कोयला
जड़ी बूटियाँ
अनाज,
धान, गेहूंँ
पालतू जानवर।
जन्म जीवन मृत्यु।
कीटाणु रोग ,
साध्य रोग ,
असाध्य रोग।
बुद्धि लब्धि,
प्रतिभाशाली व्यक्तित्व।
मधुर ध्वनि।
कठोर ध्वनि।
मौसमों का परिवर्तन
मौसमी फूल फल।
रंग-बिरंगे पक्षी।
ऊँचे ऊँचे पहाड़,
बर्फीला प्रदेश दक्षिण ध्रुव
रेगिस्तान,
प्राकृतिक शोभा।
मानव के विभिन्न रूप,
जलवायु के अनुसार
भोजन, पोशाक, आवास।
बर्फीले प्रदेश का इग्लू,
ठंडज्ञप्रदेश के लकड़ी घर
प्रकृति का संतुलन न तो
जीना मुश्किल,
प्रदूषित प्रकृति
प्रकृति के प्रकोप से
बचना मानव बुद्धि से असंभव।
सुनामी,भूकंप, दावानल
ये सब प्रकृति को
मानव अपने
स्वार्थ के लिए
बिगाड़ना।
परिणाम स्वरूप
जल, वायु, गर्मी का बढ़ना,
क्षेत्र के अनुसार मानव गुण।
प्रकृति के कारण,
काम, क्रोध ,ईर्ष्या, प्रेम
वीर धीर गंभीर कायरता,डरपोक।
मांसाहारी,
शाकाहारी,
सर्वा हारी।
प्राकृतिक वरदान
वर्णनातीत।
प्राकृतिक की रक्षा मानव धर्म।
प्राकृतिक पहाड़, जंगल, झील का नदारद करना
मानव का तात्कालिक सुख।
प्राकृतिक कोप
जल प्रलय, वायु प्रलय, भूतल प्रलय।
शपथ लेना है
प्राकृतिक रक्षा करना।
एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।
No comments:
Post a Comment