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Tuesday, November 18, 2025

मन सागर का मंथन

समुद्र मंथन।

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

19-11-25

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  संसार सागर में 

 विष है,अमृत है,

 देव हैं, असुर हैं,

 नास्तिक है, आस्तिक है

देशप्रेमी है, देश द्रोही हैं 

 देवों और असुरों ने

 समुद्र मंथन किया ।

 विष और अमृत मिला।

भगवान शिव विष पीकर

 पार्वती के गला दबाने से

 नीलकंठ महादेव का नाम पाया।

 चिरकाल से अत्याचार अनाचार, हिंसा अहिंसा 

 त्यागी, भोगी सब के सब

आपसी संघर्ष होते रहते हैं 

मन  में सदा तरंगें 

उठती रहती है,

 मन  विशाल सागर के समान,

 नये नये विचार,

 नयी नयी सोच

 जिज्ञासा,

 भाव, मनोविकार 

 अहंकार, काम, 

 क्रोध,मंद लोभ,

प्रतिशोध की भावना,

ईर्ष्या, पद का लोभ,

नाते, मित्र, 

रिश्तेदारों का दाह,

हर पल विचार तरंगें 

नींद में शुभ अशुभ स्वप्न,

नींद से उठते ही स्वप्न के 

चिंतन, रोग साध्य असाध्य रोग का चिंतन।

आर्थिक कठिनाइयाँ,

 सपूत कुपूत का चिंतन।

 मन के अथाह सागर में 

शांति पाने 

मन का मंथन करके,

 भक्ति ध्यान में लगाकर 

 सागर की तरंगों को

मिटाकर 

आत्म ज्ञान पाना है।

 आत्मा को पहचानना है।

वही चिर शांति और संतोष  का मार्ग,

 हमारे ऋषि मुनियों ने

दिखाया है।

एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 



 




 



 


 


 

 

 



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