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Sunday, November 30, 2025

जिंदगी

 नमस्ते वणक्कम्।

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जिंदगी  

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1-12-25.

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उपनिषद की बात है,

 जगत मिथ्या, ब्रह्म सत्यं।

धरती की सृष्टियाँ नश्वर।

जन्म मरण के बीच 

 जिंदगी सौ साल ही।

सौ साल जीना मुश्किल।

 सौ साल में शैशवा अवस्था 

 मरकर बचपन।

 बचपन मिटकर लड़कपन।

 लड़कपन मिटकर जवानी

 जवानी मिटकर प्रौढ़ावस्था।

 प्रौढ़ावस्था मिटकर बुढापा।

 सनातन धर्म की चार अवस्थाएँ।

 ब्रह्मचर्य में पढ़ाई

 गृहस्थ में जीवन।

 गृहस्थ जीवन में 

 सुपति कुपति,

 सुपत्नी कुपत्नी

 सुपुत्र कुपुत्र।

संघर्ष मय जीवन।

जगत माया ,

वासनाएँ

 मधुशालाएँ,

 लाल दीप क्षेत्र

भ्रष्टाचार रिश्वतखोरी 

रोग दुर्घटनाएँ

 अंधा बहरा गूँगा

 साध्य असाध्य रोग।

 कर्मफल के सुख दुख

 फिर भी मानव सोचता है

‌उसका जीवन स्थाई।

नरक कहीं नहीं 

 स्वर्ग कहीं नहीं।

 अमीरी में दुखी

 ग़रीबी में दुखी।

 ज्ञान चक्षु प्राप्त मानव

 जिंदगी शाश्वत मानकर

 तुलसीदास के अनुसार 

 काम क्रोध लोभ मद अहंकार 

 ईर्ष्या द्वेश में 

 मानसिक शांति संतोष खोकर

 नरक स्वर्ग वेदनाएँ सहकर

  जिंदगी बिताता है,

  यही जीव न है मानव का।

  राम,कृष्ण के अवतार पुरुष

  संसार को दिखा दिया 

 जिंदगी संकट से भरा।


एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

  


 






 





 







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