Search This Blog

Sunday, November 9, 2025

एकता

 एकता की डोर 

+++++++++++++++

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई

+++++++++++++++


 नमस्ते, वणक्कम् 

++++++++++++

मिल्लत में ताकत।

 एकता में बल।

वसुधैव कुटुंबकम् 

 भारतीय वेद वाक्य।

जय जगत भारतीय 

 ऋषि-मुनियों का नारा।

भारत में विविधता ही विविधता,

प्राकृतिक बाधा,

जलवायु के अनुसार 

 पोशाक, खान-पान में फर्क।

 भाषाओं कै भेद।

इन भेदों के बीच 

 यहां एकता का बल है तो

 चिंतन में, विचारों में 

 भक्ति में, आध्यात्मिक चिंतन में।

 देश में नहीं एकता,

 देश में नहीं देश प्रेम।

छोटे छोटे राज्य,

 आपस की लड़ाई 

 भारतीय वीरता,

 धिक्कार है

राजकुमारी के प्रेम के मोह में 

 भाई भाइयों के ईर्ष्या के कारण,

 भाई के  विरोधी भाई बना।

 चंद विदेशियों के चाँदी के

 टुकड़ों के लिए,

 गुलामी नौकरी के लिए,

हर, लालबहादुर, राम बहादुर उपाधि के लिए 

‌अपनी पोशाक ,

 अपनी भाषा भूल

 अपनी संस्कृति , कदाचार तजकर अंग्रेज़ी सीखी।

 संस्कृत भाषा भारतीय एकता का मूल,

 मृत्यु भाषा बना दी।

 जर्मन के विद्वान 

संस्कृत सीखी।

 चिकित्सा क्षेत्र में 

 लागू किया।

 अंग्रेजों ने की भाषा नीति,

 राग-द्वेष 

 मजहबी नफरत 

 एकता के अभाव में 

 गुलामी को अपनाया।

 भारतीयों में जब एकता आयी,

 विदेशी काँपने लगे।

 स्वतंत्रता संग्राम में भी

 नरम दल, गर्म दल

 यह भिन्नता देश की

 स्वतंत्रता में सफल रही।

 मिल्लत में ताकत,

एकता का बल

 स्वतंत्रता मिली।

 पर अंग्रेज़ी अंग्रेजियत नहीं गई।

 सोचो, समझो, विचार करो,

 भारतीय प्रगति में बाधा

प्रांतीय दलों का प्रांतीय मोह में राष्ट्रीय करण का विरोध,

 राष्ट्रीय शिक्षा का विरोध,

 कुर्सी पकड़ने की इच्छा से

 भ्रष्टाचारी का तांडव नर्तन।

  भारतीय इतिहास में 

 एकता जब हुई,

तब देश की प्रगति ।

 सोचो समझो विचारों।

 जागो जगाओ 

 नारा लगाओ

 एकता में बल है।

  आ सेतु हिमाचल की एकता, विदेशियों का डरावना है।

मिल्लत में ताकत है।

जय भारत। जय एकता।।

 एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

No comments:

Post a Comment