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Sunday, November 9, 2025

ख्वाहिशें

 नमस्ते वणक्कम्।

 ख्वाहिशें।

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हर जन्मे जीवों को

‌अपनी  अपनी ख्वाहिशें।

 तितलियों की ख्वाहिश 

 फूल फूल पर मंडराना।

 पतंग की ख्वाहिश दीप शिखा के 

 मोह से  उस पर गिर प्राण त्यागना।

  हर पशु पक्षी की ख्वाहिशें,

 वर्ग विशेष एक ही है। पर

‌मानव वर्ग की ख्वाहिश क्या है?

 पता लगाना अति मुश्किल।

 एक लड़की से प्यार करने की ख्वाहिश।

 थोड़ी दूर पर उससे बड़ी सुंदरी

  ख्वाहिशें बदल जाती।

 तब मनुष्य बन जाता 

 पशु से गया गुजारा।

 मनुष्य की ख्वाहिशें 

 दिन ब दिन  नहीं 

 क्षण पर क्षण बदल जाती हैं ।

  कबीर ने कहा है कि

 चाह गई चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह।

 जाको कछु न चाहिए वही शाहंशाह।।

 भगवान बुद्ध ने कहा

 सभी दुखों के मूल में 

 इच्छा ही कारण है।

एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना है 

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