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Sunday, November 30, 2025

माटी का मोल

 माटी का मोल।

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एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक ++-----------------------------

1-12-25

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मिट्टी एक अमूल्य वस्तु।

 कुम्हार के जीवनाधार।

 वह कठोर परिश्रम से

 बनाते बर्तन ,मूर्ति का

 मिट्टी के मोल में बेचकर

 अमूल्य कलाकार 

 ग़रीबी में जिंदगी बिताता है।

 किसान है अति मेहनती,

 उसके परिश्रम से उगे

 अनाज सब्जियाँ,

पूंजीवाद लेता

 माटी के मोल में 

 ग़रीबी में किसान।

 व्यापारी बनता मालामाल।

अचानक व्यापार में बर्बाद,

माटी के मोल में दूकान भेजा।

उपरोक्त सब मिट्टी के मोल का अल्पार्थ।

 माटी के मोल का दीर्घार्थ।

 अमूल्य।

 मिट्टी खोदकर 

 बीज बोना

 स्वर्ण , हीरे का मिलना

 मिट्टी का मोल  अधिक।

 मिट्टी की शक्ति महान।

 

दीये जलाइए तो माटी और कुम्हार को ..."माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोहे। एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोहे।" यह कबीरदास का प्रसिद्ध दोहा है, जिसका अर्थ है कि आज कुम्हार मिट्टी को रौंद कर बर्तन बना रहा है, पर एक दिन कुम्हार का शरीर भी इसी मिट्टी में मिल जाएगा और तब वह मिट्टी ही कुम्हार को रौंदेगी। यह दोहा जीवन की नश्वरता और समय के चक्र को दर्शाता है।

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