स्वार्थी मानव।
एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु।
15-11-25.
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स्वार्थी मानव,
निस्वार्थी मानव।
सोचो स्वार्थी,
तुम अपने निजी लाभ के लिए
भ्रष्टाचारी बनते हो,
रिश्वतखोरी बनते हो,
लोभी बनते हो,
ईर्ष्यालू बनते हो।
परिणाम सद्यःफल।
बड़े बड़े राजाओं के राजमहल,
अश्वमेध यज्ञ द्वारा
विजयी राजा,
विश्वविजयी बनने कामना के सिकंदर।
धन जोड़ने वाले धनी,
सबका जीवन अस्थाई जगत में बेकार ।
अब राजमहल नहीं,
पद नहीं,
धन से वे जिंदा रह न सके।
मिथ्या जगत,
स्वार्थियों के कारण
देश की प्रगति रुक जाती।
देश द्रोही, आतंकवादी के कारण बेचैनी फैल जाती।
स्वार्थी कंजूसी भी होते हैं।
उसका नाम बदनाम हो जाता।
निस्वार्थ भाव के मनुष्यों से ही देश का सर्वांगीण विकास होता है।
भारत में विदेशियों के आक्रमण, शासन,
देश भक्ति रहित स्वार्थी
वेतन भोगी द्रोहियों के कारण ही।
मुट्ठी भर के विदेशी।
सोचो, समझो,जागो,
ईमानदारी से निस्वार्थ भाव से अपना कर्तव्य निभाओ।
भारतीय सरकारी योजनाएँ स्वार्थी,
अधिकारियों के
खुशामद के कारण
चौपट हो जाती।
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