Thursday, February 1, 2018

प्राकृतिक सन्देश

प्राकृतिक परिवर्तन अति सूक्ष्म, 
अपने को देखा, 
अपने छाया चित्र देखा
पोते से पूछा -वह बोला -
यह अंकिल   कौन-है  ?
 नहीं जानता. 
कितना फरक,


कितनी महँगाई.

एक अना बस यात्रा
अब हो गया 25रुपये.
स्थानीय व्यवहार
 परखने   समय नहीं,

ईश्वरीय अति सूक्ष्म निरीक्षण
करेगा कैसा?

जब मैं बच्चा  था ,
तब  यही कहते  --
पाप की कमाई
शान्ति न देगी .
माता -पिता का पाप
बच्चे को सजा देगी.

आज  कहते  हैं --
वह तो मालामाल.
भ्रष्टाचार ,रिश्वत तो
लेकर बड़ा  अमीर  बन  गया.

सौ करोड़ खर्च कर
सांसद  या  वैधानिक बन  गया.

वोट  के  लिए पैसे देता,
जीतने  के  बाद
नौ दो  बारह हो गया.

जैसे भी  हो  चुनाव  के  पर्व पर

रुपयों  की वर्षा  करता.

मतदाता तो अति भुलक्कड़

पांच  साल के पहले  वादा को
नया ही वादा  समझ  वोट  देता.

ऐसी दशा   में  ईश्वरीय  नचावत
 निरीक्षण वह कैसे  जानता ?

Wednesday, January 31, 2018

हिंदी

हिंदी हमारी अपनी भाषा.
अहिंदी वालों की देन अधिक.
कश्मीर से कन्याकुमारी  तक
हिंदी का प्रचार.
तमिल नाडु  में शासक, राजनैतिक दल
विरोध करने पर भी.
पढनेवालोंकी  संख्या अधिक.
जानने समझने की चाह अधिक.
खडी बोली ढाई लाख जनता की,
1900से भारतेंदु हरिश्चंद्र के कारण
व्रज अवधी मैथिली और अन्य बोलियों के
सिरमौर  की भाषा हिंदी,
संस्कृत की बेटी, उर्दू की सहोदरी.
हिंदी   विश्व की तीसरी बडी भाषा  बनी है.

रचनाएँ

रचना ऐसी हो
अनुशासन, आत्म संयम
देश भक्ति,  का विकसित करें.
पर आजकल की  पट कथाएँ
युवकों को मन में
प्रशासकों के प्रति,
शासकों के प्रति,
शिक्षा संस्थाओं के प्रति,
पुलिस, न्यायालय के प्रति
अविश्वास, शंका, बढा रही हैं.
नायक पहले खलनायक, बाद में नायक,
वही समाज में न्याय के लिए  लडता.
मंत्रियों को डराता,
सांसद, विधायक  की जीत हार
बदमाश सुधरा नायक  पर निर्भर.
क्या यह रचनाकार का दोष है?
रचनाएँ समाज का प्रतिबिंब.
समाज का दर्पण,
यह दोष रचनाकारों का नहीं,
विषैला विचारों के स्वार्थी  नेताओं के.
ईश्वर   के आकार ले खंडित जनता.
भाषा भेद से संपर्क का दोष,
विचारों की एकता,
धार्मिकता से अति दूर
नकली आश्रमवासी,
 भक्ति तीर्थस्थान में ठगनेवाले दलाल,
 सोचो समझो  नश्वर दुनिया,
अस्थायी  जवानी, अस्थायी  प्राण,
चंचल मन, चंचला धन,
सोचो समझो, सुधर,  सुधार.

Monday, January 1, 2018

कलंडर नया

कलंडर नया
पर गुप्त सूचक है
हमारीउम्र बढ़ रही है;

हम पुराने हो रहे हैं.
हमारे मन में यवन ,
शरीर में बुढापा ,
पर कुछ बड़ा करने का उमंग ,
ईश्वर की करुणा ,
नियम , क़ानून अति विचित्र.
नव वर्ष की शुभ कामना के पीछे
हमारा पुराना होना
अचल नियम बन गया है.
(स्वरचित )

नववर्ष

नव वर्ष की नवीन चेतना
नित नव चेतना बांटनी है ,
लोक तंत्र का सच्चा,
अच्छा आदर्श निभाना है,
जागना जगाना है कि 
मातृभूमि पीढ़ी दर पीढ़ी
समृद्ध रहना है;
विदेशी भाषा,
विदेशी माल
खान -पान में वर्जनीय
मानना हैं.
स्वस्थ मन , स्वस्थ धन , स्वस्थ तन
स्वदेशी खाना -पेय से ही
संभव .
निज भाषा उन्नति में ही
भारतीय विशेषता और विशिष्टता है
यह विचार दिल में बसाने का काम
शिक्षितों के लिए अनिवार्य समझाना है.

Saturday, December 30, 2017

सत्य

२०१७ वर्ष का अंतिम दिन.
बारह महीने में क्या पाया ?
क्या खोया ?
कितना प्रेम मिला ?
कितना नफरत ?
कितना धन ?
जो बात गयी ,बीत गयी .
चिंता छोड़ दो. 
जीवन में कई बातें ऐसी ,
सत्य अकेला ही रोता हैं. 
झूठ मिलकर हँसता है.
यही संसार है.
न जाने मैं क्यों जी रहा हूँ ,
ऐसे विचार छोड़,
जीने के लिए कुछ खासियत है ,
यों सोचो .
भले ही सब के सब 
बेटे ,बहु ,सब दूर रखें ,
जरूर हमारे जन्म का कोई न कोई 
उद्देश्य होगा ही. 
सब के अपमान को मान समझ आगे बढ़.
सत्य का पुजारी हमेशा अकेले ही रहता हैं .

पञ्च परमेश्वर

पंच परमेश्वर होता तो
भारत में रातनीतिग्ञो में 
अधिकांश लोग जेल में रहते. 

अधिकांश चुनाव लड़ने 
अयोग्य हो जाते.
बलात्कारी आश्रम आचार्यों के पक्ष में
कोई आवाज या नारा न लगाता. 
राष्ट्रगीत राष्ट्रगान राष्ट्रीय झंडे के 
विपक्ष कोई मुँह न खौलता. 
पंद्रह मिनट में तमाम हिंदुओं का
काम तमाम करने की बात न करता. 
फिर सांसद बन संसद में आवाज नहीं उठाता. 
भ्रष्टाचारी, रिश्वतखोरी अधिकारी 
तरक्की नहीं पाता. 
कहानी में हरिश्चंद्र का मृत पुत्र 
भले ही ज़िंदा सकता. 
नमक की दारोगा सत्य पर न जीता. 
न्यायाधीश उसका दंड न देता. 
ऊपरी आमदनी भगवान देता. 
ऐसी नौकरी तलाश कर जिससे 
ऊपरी आमदनी मिलें ऐसे 
उपदेश न देता.( स्वरचित अनंतकृष्णन )