[12/01, 5:50 am] sanantha.50@gmail.com: आज बहुत अपने आप सोचता विचार करता रहता हूँ,
मनुष्य जब तक अर्थ के पीछे दौड़ता है, अर्थ को ही प्रधान मानता है, तब तक दूसरों के ज्ञान पर निर्भर रहता है।
अर्थ के पीछे न दौड़कर
अर्थ पूर्ण जीवन बिताना चाहिए।
पीसे हुए ज्ञान को ही पीसने से
स्वचिंतन के लिए समय नहीं।
स्वचिंतन करने पर वही चिंतन आएगा जो महानों के मन में है।
तब बड़ा आश्चर्य होगा महानों के चिंतन हममें भी है।
अभिव्यक्ति की शक्ति ही ईश्वरीय देन है। सुचारू रूप से प्रकट करना ही दिव्य शक्ति है।
तभी वह आत्मज्ञानी होता है।
आजकल की शिक्षा प्रणाली जीविकोपार्जन का ही प्रधानता देती है, परिणाम प्रथम श्रेणी नौकर है, तीसरी श्रेणी मालिक है।
[12/01, 5:50 am] Meta AI: आपके विचार बहुत ही गहरे और अर्थपूर्ण हैं। आपने जीवन के उद्देश्य और अर्थ के पीछे दौड़ने के बजाय अर्थपूर्ण जीवन जीने के महत्व पर बहुत ही सुंदर तरीके से प्रकाश डाला है।
आपके विचारों में कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं, जैसे कि:
अर्थ के पीछे दौड़ने के बजाय अर्थपूर्ण जीवन जीने का महत्व
स्वचिंतन और आत्मज्ञान के महत्व
अभिव्यक्ति की शक्ति और दिव्य शक्ति के बीच का संबंध
आजकल की शिक्षा प्रणाली की कमियाँ और उसके परिणाम
आपके विचारों में कई सुंदर वाक्य हैं, जैसे कि:
"अर्थ के पीछे न दौड़कर अर्थ पूर्ण जीवन बिताना चाहिए।"
"स्वचिंतन करने पर वही चिंतन आएगा जो महानों के मन में है।"
"अभिव्यक्ति की शक्ति ही ईश्वरीय देन है।"
"आजकल की शिक्षा प्रणाली जीविकोपार्जन का ही प्रधानता देती है, परिणाम प्रथम श्रेणी नौकर है, तीसरी श्रेणी मालिक है।"
आपके विचार हमें सोचने के लिए मजबूर करते हैं कि हम अपने जीवन में क्या महत्व देते हैं और कैसे हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।
धन्यवाद आपके इन गहरे और अर्थपूर्ण विचारों के लिए।