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Monday, June 17, 2019

धुआँ

प्रणाम।
चाहक,प्रेरक संचालक, समन्वयक, संयोजक, लायक,नायक, सब के प्रति   कृतज्ञ  हूँ।

शीर्षक  :ये धुआँ  कहाँ से उठता है। 
 हवन होम से ,
जग कल्याण के लिए।
धूम्रपान  से जग
 अहित के लिए।
कारखाने  से सुख भरे
आलसी जीवन
 बिताने के लिए।
वाहन से प्रदूषण  के लिए।
ज्ञान चक्षु  प्राप्त  मानव ही अस्थाई जग
 जीवन के लिए,
प्राकृतिक  संतुलन  खो बैठकर असाध्य  रोगों  की चिन्गारी की धुआँ उठाता रहता है।
आतंकवादी धुआँ, स्वार्थी  धुआँ, लालची धुआँ,
सब उठाता ,
अशांति  की धुएँ में
साँस घुटकर वेदना की धुएँ  पुंज  में असह्य 
पीडों की धएँ में,
अज्ञात  धुएँ में  अस्पष्ट
जीवन बिताता रहता है।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंत कृष्ण की प्रार्थनाएं

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