कलम की यात्रा।
शीर्षक:संतोष।
तुलसीदास:
गो धन,गज धन,बाजी धन,रतन धन खान।
जब न आवे संतोष धन,
सब धन धूली समान।
संक्षेप में संतोष,
संदेश तुलसी का।
स्वरचित स्वचिंतक :
चंचल मन,चंचला धन,
आवारा आदमी,न देता संतोष।
लोभी,क्रोधी ,किमी,
अहंकारी न पाते संतोष।
आत्मानंद, आत्मसंतोष
आध्यात्मिकता में जान।
शीर्षक:संतोष।
तुलसीदास:
गो धन,गज धन,बाजी धन,रतन धन खान।
जब न आवे संतोष धन,
सब धन धूली समान।
संक्षेप में संतोष,
संदेश तुलसी का।
स्वरचित स्वचिंतक :
चंचल मन,चंचला धन,
आवारा आदमी,न देता संतोष।
लोभी,क्रोधी ,किमी,
अहंकारी न पाते संतोष।
आत्मानंद, आत्मसंतोष
आध्यात्मिकता में जान।
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