Saturday, June 29, 2019

संतोष

कलम की यात्रा।
शीर्षक:संतोष।
 तुलसीदास:
गो  धन,गज धन,बाजी धन,रतन धन खान।
जब न आवे संतोष  धन,
सब धन धूली समान।
 संक्षेप  में  संतोष,
संदेश  तुलसी का।
स्वरचित स्वचिंतक :
 चंचल मन,चंचला धन,
  आवारा आदमी,न देता संतोष।
 लोभी,क्रोधी  ,किमी,
अहंकारी  न पाते संतोष।
आत्मानंद, आत्मसंतोष
आध्यात्मिकता में  जान।

No comments:

Post a Comment