Search This Blog

Sunday, June 23, 2019

पक्षी

प्रणाम।
 शीर्षक: पक्षी/विहंग/
  विधा : अपनी हिंदी-अपनी शैली-अपना भाव।
   जहाज  की पंछी,
   जहाज में।
  मन रूपी पक्षी
  अनंत  आसमान  ,
चंद्र  मंडल ,सौर मंडल,
अतल पाताल
समुद्र की गहराई  तक।
पर पक्षी  की ऊँचाई
 एक हद तक।
गरुड़ की  उडान शक्ति
मोर को नहीँ।
हरी वाहन गरुड़।
कार्तिक  वाहन मोर।
दोनों असुर संहारक
बगुला  भक्त  अलग।
कार्तिक  झंडा मुर्गा।
हंसवाहिणी  सरस्वती।
मीनाक्षी  तोता पसंद।
शनीश्वर कौआ।
वही साफ करता है
सडी माँस को आहार  बनाकर।
लाश  फेंकने  की रीति
वहाँ  खानेवाले  बाज नहीं  तो, क्या  होगा।
  चातक से आशा,
हंस से बुराई छोड,
अच्छाई ग्रहण।
विद्यार्थी  के पाँच  लक्षणों  में  दो
काक चेष्टा, वको ध्यानम्।
संक्षेप  में  कहें  तो
विविध  पक्षी,
विविध  रंग,  विविध  गुण।
सब  गुणों  मिश्रित  मानव।
उड नहीं  सकता।
पर बतख समान
 तैर सकता।
पर
प्रशिक्षण जरूरी।
बगुला  समान मछली पकड सकता,
पर जाल चाहिए।
पक्षी  की क्रियाएँ सहज।
खेद की बात  है---
मानव उसका
नामोनिशान  मिटा रहा है।
जीव संतुलन बिगाड  रहा है।
सनातन  धर्मी  हर पक्षी  को
ईश्वर  से जोड रखा है।
प्रशिक्षित  गुण  मनुष्य
सहज गुण से
 गया गुजरा है।
गौरैया  का घोंसला 
वह नहीं  बना सकता ,
उसको चाहिए 
सहायक सामग्रियाँ।
कल्पना के पंख  उडते रहते।
न विश्राम।
पाठक ऊब जायेंगे।
पक्षी  न तो न विमान।
कल्पना  का पक्षी  बनिए।
परिणाम  ज्ञानी।
शीर्षक दाता  को धन्यवाद।
प्रणाम।

No comments:

Post a Comment