Sunday, January 31, 2016

पीछे से बोलना --तिरुक्कुरल --१८१ से १९०

पीछे से बोलना --तिरुक्कुरल --१८१  से १९० 
  1. धर्म पथ पर न जानेवाले ,धर्म की प्रशंसा  न करनेवाले   , दूसरों  के बारे में पीछे से बोलना छोड़ दें  तो भला होगा. 
  2. प्रत्यक्ष  एक व्यक्ति की प्रशंसा और पीछे से निंदा करना अति पाप  और बुराई बर्ताव है ;अधर्म करने से बढ़कर पाप कार्य है. 
  3. आमने -सामने प्रशंसा और पीछे से उसकी निंदा करके  जीने से मरना भला है.
  4. एक आदमी के सामने प्रत्यक्ष रूप निंदा करन सही व्यवहार हैं ; पीछे से गाली देने  पर बुरा प्रभाव पडेगा,वह व्यवहार निंदनीय है. 
  5. दूसरों की निंदा पीछे से करनेवालों को देखते ही पता चल जाएगा कि वह अधर्मी है.
  6. पीछे से बुराई कहनेवाले की बातों की याद करके बोलनेवालों  पर कठोर शब्द उसके शब्दों से बढ़कर बोलेंगे। 
  7. जो मधुर बोली से मित्रता निभा नहीं सकते ,वे पीछे से बोलकर  सभी मित्रों को खो बैठेंगे।
  8. निकट संपर्क के दोस्तों  के बारे में पीछे से बोलनेवाले  अन्य अपरिचोतों के बारे में बहुत बोलेंगे. 
  9. दूसरों  के बारे में पीछे से  बोलनेवाले के शरीर को धरती इसलिए धोती है  कि  धर्म देवता उसके कर्म को सहती है. 
  10. दूसरों के दोषों के बारे में सोचनेवाले अपने दोषों पर ध्यान देंगे तो पीछे से निंदा नहीं करेंगे. 



Saturday, January 30, 2016

अपहरण _---तिरुक्कुरल --१७१ से १८०

अपहरण  _---तिरुक्कुरल --१७१ से १८० 
  1. दूसरे की वस्तुओं  को जबरदस्त अपहरण के  चाहक  के  पारिवारिक जीवन   बर्बाद हो जाएगा और अपयश भी होगा.
  2. तटस्थता  छोड़ना लज्जाजनक है; जो इसे जानते हैं वे ऐसे कार्य न  करेंगे जिससे तटस्थता का भंग हो .
  3. जो धर्म पथ के शाश्वत फल चाहते हैं ,वे छोटे सुख के लिए अधर्म काम  न करेंगे.
  4. पवित्र जितेंद्रवाले दीनावस्था में भी दूसरों की चीज को अपनाना नहीं चाहेंगे.
  5. दूसरों की चीज को  अधर्म से अपहरण के चाहक ,भले ही सूक्ष्म ज्ञानी हो ,उससे  कोई लाभ नहीं मिलेगा . वह ज्ञान किसी काम का नहीं .
  6. धर्म  के अनुयायी  अधर्म  से  दू सरे की चीज को अपहरण करना चाहेगा तो  उसका  सर्वनाश होगा .
  7. दुसरे  की  चीजों को अपहरण करके सम्पन्न जीवन बिताने के चाहक बिलकुल बरबाद हो जाएगा .
  8. अपनी संपत्ति  की सुरक्षा के चाहक को  दूसरों की चीजो के अपहरण की चाह छोड़ देनी चाहिए. 
  9. धर्म के चाहक जो दूसरें की चीजों के  अपहरण  की इच्छा  नहीं रखता ,उस पर लक्ष्मी देवी की बड़ी कृपा होगी.
  10. परिणाम की सोच -विचार  न करके दूसरों की चीजों  के इच्छुक  का सर्वनाश होगा.जो अपहरण की चाह नहीं रखता ,उसकी सफलता होगी.

ईर्ष्या --तिरुक्कुरल १६१ से १७०

ईर्ष्या --तिरुक्कुरल  १६१ से १७० 
  1. ईर्ष्या  न करने को अनुशासन मानकर  जीना चाहिए.
  2. ईर्ष्या रहित जीने के गुण जिसमें है वही भाग्यवान है. 
  3. धर्म  मार्ग और दौलत  न चाहनेवाले ही दूसरों के दौलत देखकर  जलेंगे .
  4. जो जानते हैं कि बुरे मार्ग पर चलने से हानी होगी ,वे ईर्ष्यावश बुरे कार्य नहीं  करेंगे. 
  5. ईर्ष्यालु की दुश्मनी उनकी ईर्ष्या ही है ;वही ईर्ष्या उसका वध करेगी.
  6. दूसरों  की मदद के लिए दी जानेवाली वस्तुओं को देखकर जलनेवाले खुद कष्ट भोगेंगे और उसके नाते -रिश्ते भी. अंत में ईर्ष्यालु को भोजन तक न मिलेगा.
  7. ईर्ष्यालु से लक्ष्मीदेवी हट जायेगी ; और अपनी बड़ी बहन ज्येष्ठा देवी की कृपा का संकेत कर देगी.
  8. ईर्ष्या  एक पापी है ; वह ईर्ष्यालु की संपत्ति नष्ट कर देगी   और उसे बुरे मार्ग पर ले जायेगी.
  9. ईर्ष्यालु के घर के कष्ट  और अच्छों के सुख -समृद्धि दोनों ही शोध की चीज है.
  10. ईर्ष्यालु कभी यशश्वी  नहीं बन सकता;ईर्ष्या  रहित जीनेवाला कभी अपयश का पात्र नहीं बना.

सहनशीलता --तिरुवल्लुवर ---१५१ से १६०

सहनशीलता --तिरुवल्लुवर ---१५१  से
  1.   .खोदते हैं गड्ढे   सहती है भूमि. 

उसको भी जीने का आधार है भूमि.
वैसे ही अहित -  हानी पहुँचानेवाले  के प्रति भी  सहनशीलता दिखाने में ही मानव का बड़प्पन है.
२. किसी की असीम हानियों को सहने के बजाय उन्हें भूल जाना ही गुणी  का  लक्षण है.
३.अतिथि सेवा करने की दरिद्रता अति दुःख की बात है.वैसे ही अज्ञानियों की भूलें सह्लेना अति सबलता  है.
४. अत्यधिक सहनशीलता ही ज्ञानियों  के लिए  प्रसिद्धिप्रद  है.अतः किसी भी हालत में असहनीय बनना ज्ञानियों को भी अज्ञानी बना  देगा .सहनशीलता ही ज्ञान का लक्षण  है.
५.सहनशील लोगों की इज्जत शाश्वत है.असहनशील होकर दंड देनेवालों का आदर घट जाएगा .संसार असब्र लोगों की इज्जत नहीं करेगा.
६.हानी पहुंचाने वालों को जो दंड देता है ,उसी को एक दिन ही सुख मिलेगा . हानी सहकर के क्षमा करने वाला  आजीवन  सुखी रहेगा .
७.दूसरों के दुखों को  न सहकर ,वैसे ही दुखप्रद कार्य करके  बदला  न लेकर  सहनशील रहना  ही आदर्श है.
८.अहंकारियों के  हानिप्रद कार्यों को सहते सहते जीत सकते हैं . 
९.  अति कतुवचनों को सुनकर भी  सब्रता दिखानेवाले  ही सर्वश्रेष्ठ साधू -संत   हैं 
१० . कठिन  उपवास करके साधना करने वाले  और   अति क्रोधी के वचन  सह्नेवाले ,  दोनों की तुलना में सहनशील  मानव  ही  श्रेष्ठ  मानव  है..

Friday, January 29, 2016

पर पत्नी प्यार न करना -- तिरुक्कुरल १४० -१५०

पर पत्नी प्यार न करना --  तिरुक्कुरल १४० -१५० 
  1. संसार में   धर्म ग्रंथों के अति  शिक्षित लोग पर-नारी से प्यार नहीं करते।यह पर -नारी प्रेम  की बेवकूफी कभी नहीं करेंगे।
  2. धर्म मार्ग  छोड़कर  पर-नारी से प्रेम करनेवाले के सामान  अति मूर्ख  संसार में और कोई नहीं है। 
  3. जो लोग  विश्वसनीय  मानकर दोस्ती निभाते हैं ,उन्कीपत्नी से गलत सम्बन्ध रखनेवाले  लाश के सामान है। 
  4. भूल जानकर भी पर नारी से जबरदस्त करने वाले  कितने भी बड़े हो  वे अति नीच ही माने  जायेंगे.। 
  5. आसानी से पर -नारी से जबरदस्त  संबंध के विचार से गलती करनेवाले  स्थाईअपयश के पात्र बनेंगे। 
  6. दूसरों की पत्नी से जबरदस्त करने वाले स्थाई दुश्मनी मोल लेंगे। उनसे स्थाई भय ,स्थाई अपयश  छूटेंगे नहीं। 
  7. वही धार्मिक गृहस्थ है जो दूसरे की पत्नी के मोह में गलती नहीं करता।
  8. दुसरे की पत्नी को कामेच्छा से न देखनेवाला ही धर्म पुरुष और आदर्श गृहस्थ है। 
  9. समुद्र से घेरे इस संसार में वही श्रेष्ठ है ,जो  दुसरे की पत्नी को स्पर्श तक नहीं  करता।
  10. भले ही अधर्मी हो ,पर दुसरे की पत्नी की चाह न करना ही अच्छा है.


अनुशासन --तिरुक्कुरल --१२० से १३० तक जीवन में अनुशान

अनुशासन --तिरुक्कुरल --१२० से १३० तक 
  1. एक व्यक्ति का बड़प्पन उसके अनुशासन पर निर्भर है ; अतः अनुशासन  प्राण से बढकर सुरक्षित रखने की चीज़ है। 
  2. जीवन के सहायक अनुशासन ही है। जीवन मार्ग की खोज के बाद यही निष्कर्ष पर पहुँच चुके हैं। अतः अनुशान पर दृढ़ रहना चाहिए।
  3. उच्चा कुल का आदर्श अनुशासन ही है ;अनुशासन हीन लोग निम्न कुल के हैं। 
  4. वेद को भूलना भूल नहीं हैं ;वेद को फिर याद कर सकते है। पर अनुशासन की भूलचूक बड़ा कलंक लगा देगा। 
  5. ईर्ष्यालु और अनुशासनहीन  लोग दोनों को जीवन में चैन नहीं मिलेगा। दोनों को जीवन में प्रगति नहीं होगी। 
  6. अनुशासन छोड़ना बड़ा अपराध जाननेवाले सज्जन सदा सतर्कता से दृढ़ चित्त से अनुशासन का पालन करेंगे। 
  7. अनुशान से बड़ी प्रगति होगी ;अनुशासनहीनता से अतःपतन और दुर्गति होगी.
  8. जीवन में अनुशासन प्रगति का बीज बनेगा। अनुशासन हीनता असाध्य दुःख देगी.
  9. अनुशासन में दृढ़ लोग भूलकर भी अपशब्द या बुरे शब्द नहीं बोलेंगे।
  10. अनुशासन न सीखनेवाले  बड़े विद्वान होने पर भी मूर्ख ही है। 

आत्मनियंत्रण --तिरुक्कुरल १२१ से १३० तक

आत्मनियंत्रण --तिरुक्कुरल १२१ से १३० तक 

  1. आत्मनियंत्रण  ईश्वर से मिलाएगा। नियंत्रण न हो तो जीवन अन्धकारमय  हो जाएगा।
  2. अधिक दृढ़ता से आत्मा नियंत्रण  संपत्ति  की सुरक्षा से बढ़कर कोई संपत्ति नहीं है.
  3. जानने  की बातें सीखकर आत्म नियंत्रण से जीनेवाले  प्रशंसा के पात्र बनेंगे।
  4. अपनी स्थिति से न हटकर मानसिक नियंत्रण और अनुशासन से जीनेवालों की प्रसिद्धि और प्रगति पहाड़ से ऊँची होगी।
  5. विनम्रता सब के लिए आवश्यक है;अमीरों को नम्रता और एक ख़ास संपत्ति है। 
  6. एक जन्म में कछुए के समान पंचेंद्रियों को नियंत्रित रखें तो उसका फल कई जन्मों  तक   उसका कवच बन जाएगा ।
  7. पंचेंद्रियों  में जिह्वा नियंत्रण अति आवश्यक हैं। बोली में नियंत्रण न हो तो वही उसके दुःख का कारण बन जाएगा। 
  8. अपने विचारों की अभिव्यक्ति  में एक शब्द गलत होने पर  अपने  भाषण की सभी अच्छाइयाँ बुरी हो जायेंगी।  अपने सभी धर्म कार्य भी अधर्म हो जायेंगे,
  9. आग से लगी चोट भर जायेगी; दाग मात्र रहेगा। पर जीभ के शब्द से मन में लगी चोट कभी न भरेगी; हमेशा हरी रहेगी.
  10. ज्ञानार्जन करके क्रोध को  नियंत्रण में  रखे व्यक्ति की प्रतीक्षा में  धर्म देवता रहेगी।