Thursday, August 29, 2024

नर नारी

 नर नारी 

 अलग अलग गुण।

 ईश्वर की सृष्टि।

 नारी के अपने गुण,

 शारीरिक भेद।

 जितनी भी शक्ति शालिनी हो,

 संतान उत्पन्न करने की शक्ति 

 नारी को दुर्बल ही बना देगी।

  नारी की कोमलता,

   संतान के प्रति प्रेम 

   परवरिश में उनका ध्यान,

   शिक्षित नारी छत्रपति शिवाजी       महाराज की देन है।

  भगवान की सृष्टियों में 

  मोर , सिंह,हिरण , बैल, मेंढक सब  मादा को  आकर्षित करने 

  नाचते हैं,   पर नर मात्र

 नारी के पीछे कुत्तों के समान।

 एक राजकुमारी के लिए युद्ध।

 वीर जवानों की पत्नियाँ विधवाएँ।

 बच्चे अनाथ।

 नारी के लिए नर क्या नहीं है करता।

 रावण ने अपनी मर्यादा।

   नर -नारी में विषकन्या है।

  विष कुमार नहीं।

 पंत का कहना है

 यदि स्वर्ग है तो नारी के उर के भीतर।

 यदि नरक है तो नारी के ही उर के भीतर।

 इंद्र भले ही देवराज।

 पर नारी विषय में अति अपमानित।

  सहज शक्ति नारी में।

 जगत जननी नारी।

 मातृभूमि है,

 मातृभाषा है।

 पर राष्ट्रपति,

 न राष्ट्रपत्नी।

 लखपति भले ही लक्ष्मी कृपा।

 पर लखपति, करोड़पति।

 समानता सबल होने पर भी

 भगवान की सृष्टि गर्भाधारण नारी को सबला नहीं, अबला ही बना देती।

 वीरांगना की आदर है,

 वारांगना को?

 यही नारी की कमज़ोरी।

Tuesday, August 27, 2024

संतान और भाग्य

 नमस्ते वणक्कम्।

परवरिश  संतान और भाग्य 

 विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी स्वतंत्र शैली।

  परवरिश मानव के लिए आवश्यक।

   कम से कम  सोलह साल की उम्र तक।

  अनाथ बच्चे, माता द्वारा फेंके अवैध बच्चे।

 अनाथालय में पले बच्चे।

 कर्ण महाभारत में तो सीता रामायण में।

 खंडाला पड़ी मिली नंदन में।

 सबका परवरिश तो भाग्य वश।

 जनक महाराज की बेटी बनी सीता।

 सारथी का बेटा बना कर्ण।

ईसाई, साईं बाबा का जन्म रहस्य।

 राम , लक्ष्मण, भरत शत्रुघ्न के पिता रहस्य।

 पांडु के पुत्र नाम मात्र के

 पिता भिन्न भिन्न।

  वर्षा की बूँदों में सीपी बनना भाग्य।

 दत्त पुत्रों के भाग्य अलग।

 चुराये बच्चे, रत्नाकर जैसे डाकुओं से

  आकर्षित बच्चे,

 अशुभ नक्षत्र से अलग रहे तुलसीदास।

 परवरिश भी भाग्य के बल ही।

 ईश्वरीय अनुग्रह की देन।

 एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

मन चंचल

 नमस्ते वणक्कम्।

 मन चंचल।

 धन के कारण,

   पदोन्नति के कारण,

लोभ के कारण,

 नारी सुख के कारण,

 नाते-रिश्तेदार अड़ोस पड़ोस

 भ्रष्टाचारी घूसखोरियों  के

 बाह्याडंबर बाह्य सुख देखकर।

  आपको अपने बारे में 

   सोचना चाहिए। 

 अपनी योग्यता के बारे में 

 सोचना चाहिए।

 सुरीली आवाज़ के सुंदर गायक

 कोयल सा, प्रयत्न करो, पर

 ईर्ष्या से लाभ होता नहीं।

 चित्रकार बड़े विद्वान जन्म से अमीर।

 तुमको अपने से दुर्बल लोगों  से तुलना करो,

 मन को संतुष्ट कर लो।

नेला सब के सब बन नहीं सकते।

 तुम्हारी बात तुम्हारी पत्नी ही न मानेगी ।

 तुम्हारा बेटा नहीं मानेगा।

 आजकल के बच्चे चित्रपट का संवाद 

यह मैंने सुना,

 समाज बिगाड़ने शैतान की बात।

 ढ़ाई लाख की गाड़ी, संतान की इच्छा।

 पूरी न करेगा तो बच्चे का जन्म क्यों?

  मन चंचल।

 यह सोचो,

 गधे का स्वर कोयल नहीं पा सकता।

 भगवान की देन। भाग्य का फल।

 ईश्वर को मानो, जप करो।

 अपने दायरे में नाम मिलें।

प्रयत्न , प्रार्थना  जीवन।

सुख-दुख ईश्वर पर निर्भर।

 देव जेल में, असुर शासक।

 यही भारत के ईश्वरवाद।

 ईसाई, मुहम्मद के दुख।

 भले ही आज पूजनीय।

 जीवन काल।

 सब को मृत्यु निश्चित।

 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु 

 

 मृत्यु निश्चित।

Sunday, August 25, 2024

भारतीय जन तंत्र

 धन प्रधान शासक,

 परिणाम कर्जा लेकर शिक्षा।

अंग्रेज़ी माध्यम, जीविकोपार्जन।

 उतना ही खर्च , स्वार्थ साधन है,

 ऋण प्रधान शिक्षा , स्वार्थ प्रधान।

 एक डाक्टर दोस्त का कहना है,

 दान के रूप में करोड़ों रुपए।

 पढ़ाई का खर्च,

 मेरे बेटे को अभी ऋण का बोझ।

 कार खरीदने सूद कम,

 पर शिक्षा ऋण के सूद अधिक।

 हर क्षेत्र में रिश्वत ही रिश्वत।

 कैसे करेंगे शिक्षित निस्वार्थ सेवा।

 अल्पसंख्यकों की सहूलियतें 

 बहुसंख्यकों को नहीं के बराबर।

 उम्र,अंक, शिक्षा शुल्क 

सब में कटौती।

 प्रतिभाशाली भले न हो,

 औसत बुद्धिमान बराबर।

 सेना में तो चाहिए सम बल।

 पर शिक्षा में सम प्रतिभा नहीं।

 खासकर चिकित्सा और शिक्षा,नीति के क्षेत्र में।

 जय भारत। चुनाव के लिए 

 हर साल सूचित अनुसूचित जातियों की संख्या बढ़ती,

 साथ ही चुनाव के खर्च 

 हर उम्मेदवार के लिए 

 सैकड़ों करोड़।।

  भले ही भ्रष्टाचार के पैसे।

 अल्पसंख्यक शासन।

 बुद्धि जीवी लापरवाही से 

30%वोट नहीं देते।

 40%वोट लेकर 

 अल्पसंख्यकों का शासन।

 जय लोकतंत्र।

एस. अनंत कृष्णन।



 


 


Saturday, August 24, 2024

माया महाठगिनी

 देवियों को नमस्कार।

देवियों के विभिन्न रूप

 देवियों की पूजा,

 फिर भी महिलाओं पर अत्याचार बलात्कार।

 हिंदुत्व में करेंगे तो कमी है

 धर्माचार्यों की 

जैसे आसाराम, संन्यासी रूपी  रावण,

 प्रेमानंद, नित्यानंद के रूप में 

 अनाचार बलात्कार 

दंड देकर भी उनकी रक्षा देखरेख सुरक्षित।

 भारतीय धर्म पंथ में अहल्या को शाप।

  इंद्र तो देवराज हजारों योनियों के शाप।

   दमयंती के स्वयंवर मैं नल के रूप में देव।

 देवियों से प्रार्थना  ! 

 देखते हो नर-नारियों के 

  असौमित व्यवहार।

 पटकथा के दृश्यों में गीतों में अभिनयनों में 

 अश्लीलता  अर्द्धनग्नता नग्नता

 शैतान की कुदृष्टि तेरी सद्दृष्टी के सामने 

 किस खेत की मूली।

 देती हो दुख समझते नहीं ज्ञानचक्षु प्राप्त मानव।

 तेरे सद्विचार काम नहीं करते।

 यही है माया शैतान की अपार शक्ति।

 मानव तो दुखी ही दुखी।

 कारण वह दुखी नहीं तो

‌और भी मनमाना करता।

 तेरी सजा बुढापा रोग मृत्यु।

  धन्य है ईश्वरीय कानून।

 फिर भी मानव अज्ञानांधकार में।

 वैद्यों के पारंगत रावण भी अपमानित।

धन्य!धन्य। मायादेवी।

Friday, August 23, 2024

बाधा हरो भगवान

   नमस्कार वणक्कम।

 दान में बढ़िया ज्ञान दान।

 भारत में  गो दान, भू दान, स्वर्ण दान  सबका  महत्व दे रहे हैं।

  विद्या दान में  कमी नहीं, पर वह परंपरागत   हो गया।

 आध्यात्मिक  शक्ति 

 शासक शक्ति 

 राजनैतिक शक्ति 

  हर कला में 

 वास्तुकला परंपरा 

 बढई परंपरा 

 स्वर्णवार

 चित्रकार।

शिल्पकार।

 अभिनय कलाकार 

 कृषी विज्ञान।

   परंपरागत होने से 

 कलाएँ मातृसत्तात्मक पितृ सत्तात्मक ईश्वर प्रदत्त मानी जाती थी।

 हर कलाकार अपने निपुणता दिखा रहे थे।

 भारत  के मंदिरों  की मूर्तियों से ही पता चलता है कि कितने सुंदर आभूषण, संगीत वाद्य यंत्र, युद्ध कौशल,  पाक कला, भोजन प्रिय।

 सभी कलाओं में सर्वसंपन्न  सुखी देश।

 विदेशी पहले पहल व्यापार के लिए आए।

 तमिलनाडु के नाट्टुक्कोट्टै चेट्टियार व्यापार के लिए प्रसिद्ध हैं। जहाज द्वारा, नाव द्वारा समुद्री व्यापार चलता था। आज भी  कारैक्कुडी में उनके द्वारा बनाई गई इमारतें अति सुन्दर।

  भारत के मंदिरों को लूटने मुगल आये। मनमाना लूटे। बेरहमी हत्याएँ, कला रहना रहित मंदिरों को, मंदिर की मूर्तियों को तोड़ना।

 लूटना। पर  उन मंदिरों को जैसे के तैसे पुनर्निर्माण अमानुषीय शाक्ति का चमत्कार हैं।

  भारत के उत्थान में वीरता थी।

 पर पतन देश द्रोह।

 संसार में भारत ही ऐसा देश है, 

 जहां देश के ही देश द्रोही ज्यादा है। द्रोहियों ने विदेशियों को साथ दिया।

   परंपरागत तकनीकी शिक्षा को बदलकर  पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली, 

उच्च शिक्षा में जातिगत प्रधानता,

 प्रतिभाशाली  से औसत बुद्धि वालों के लिए पीढ़ी-दर-पीढ़ी की सुविधाएं परिणाम अनेक प्रतिभाशाली पाश्चात्य देशों में बसना चाहते हैं।

 विद्या , संस्कृत भाषा  के ज्ञानियों की कमी, परंपरागत  शिक्षा का समर्थन कालांतर में जातीयता में बदल गई।

 अब शिक्षा महँगी बढ़ गयी।

 भ्रष्टाचार के मूल में प्रति भाशाली वकील, चिकित्सक, लेखापाल, रिश्वतखोर अधिकारीवर्ग, शासक सांसद विधायक मंत्री , शिक्षाविद सब के सब  जड़ पकड़ रहे हैं।

 मतदाताओं में 30%देश के सत्ता पर ध्यान न देकर वोट नहीं देते।

१०%तटस्थ। बाकी 60%में

 40-45% मत से जीतकर वह भी अकेला दल नहीं भारतीय सत्ता।

    फिर भी गर्व है कि भारत की  सर्वांगीण विकास देख रहे हैं।

   मजहब और स्वार्थता मिटने पर 

 भारत ही दुनिया में सर्वोपरी है।

 युवकों को जागना, जगाना है।

   देश भक्तों को जय!

 देश द्रोही, भ्रष्टाचारी, रिश्वतखोर 

सुखी नहीं, उनके मानसिक ईमानदारी के लिए सर्वेश्वर से प्रार्थना है।

 एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

जय भारत। जय जवान। जय किसान।




 

 

 

 

 


Tuesday, August 20, 2024

स्वाश्रित कौन

  कवि मंच को मेरा नमस्ते, वणक्कम्।

 विषय ---अपने पैरों पर खड़े होना।

 विधा --अपनी हिंदी अपनी स्वतंत्र शैली 

 20--8-24.0अमेरिका समय 2-33दोपहर।

  देश वही है,

 जो अपनी माँगों को

 स्वयं पूरी करता ।

 भाषा वही है जो अपने आप

 जीविकोपार्जन का समर्थक हो।

 माता पिता वही जो अपने परिवार 

 अपने मेहनत से खुद संभाले।

  अपने पैरों पर खड़े रहने

 आत्म निर्भर रहने

 मानव  योग्य है क्या?

 योग्यता पाने तकनीकी ज्ञान चाहिए।

 धनोपार्जन की योग्यता चाहिए,

 तब तक माता-पिता, गुरु, मालिक,

 पूंजी चाहिए।

 स्वाश्रित कौन है जगत में।

 सब के सब ईश्वराश्रित।

 भगवान भी है पुजारी, भक्त आश्रित।

 सद्यःफल के लिए 

 ईश्वर, मजहब , देश बदलते मानव।

 किसान आश्रित राव रंक।

 अपने पैरों पर खड़े रहने की बात।

जहां में कैसे संभव।

 आत्मनिर्भरता हासिल करने तक

 अन्योन्याश्रित रहना ही पड़ता।

कवि हैं तो गायक संगीतक्ष।

 विधायक सांसद के लिए मतदाता।

 गुरु हो तो शिष्य।

 इन सबको संभालने ,

 अपने पैरों पर खड़े रहने ,

 ईश्वरीय अनुकंपा चाहिए।


एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक