Search This Blog

Friday, June 24, 2016

अर्थ विहीन शिक्षा

लिखता हूँ मन के विचारों को

कितना लिखता हूँ,

उतने विचार ,उतनीअभिव्यक्तियाँ

फिर पढता हूँ तो ऐसी ही लगती,

उन बातों को किसी महानों ने कही है कभी.

मैं सोंचता हूँ मैंने लिखा है अभी.

प्यार की बातें हैं पुरानी.
ह्त्या की बाते हैं पुरानी.

पत्नी अपहरण की बातें हैं पुरानी.
छद्म वेश में बलात्कार

पत्थर बनी अहल्या.

आज भी लोग सुधारें नहीं,


शिक्षा बढ़गयी;


विश्वविद्यालयों की संख्या बढी

.
स्नातक, स्नातकोत्तर, अनुसंधानकर्ताओं कीसंख्याहै बढी,

जितनीशिक्षा बढ़ती हैं,

उससे तेज भ्रष्टाचार है बढ़ती.

उससे तेज़ रिश्वतखोर बढ़ती.


उससेअधिक पियक्कड़ बढ़ते.


उससे अधिक आत्महत्याएं बढ़ती.


उससेअधिक शोषण बढ़ता;


उन सब से अधिक महंगाईबढ़ती

.
बीए की बढ़ाई मैंनेखर्च किया ६००/-


एम्.ये. केवल रूपये सौ.


बी.एड., हज़ार.


एम्.एड., छे सौ.

अब शिशु पाठ शाला ,
तीन साल के बच्चे के शुल्क

न्यूनतम पाठशाला--२५०००/-


अधिकतम सात लाख.


ऐसी शिक्षा जिससे लगे मातृभाषा सीखना


गौरी शंकर की चोटी पहुंचना.


नौकरी तो अमावास्या में चाँद देखना.


सांसद बनना सौ करोड़.


भ्रष्टाचार तो लाखों करोड़.


शिक्षा का विकास साथ ही


तलाक के मुकद्दमा की संख्या बढ़ती रहती है

.
अपाराध जब बढ़ रहे हैं,


शिक्षा का मूल्य कोई नहीं.


अनुशासन, चरित्र विहीन शिक्षा


अर्थ- प्रधान शिक्षा क्या प्रयोज़न .?


दशरत के तीन रानियाँ तो गलत रीति,


आजकल रखैल अधिक बड़े लोगों की.


अर्थकी कमीनहीं, करोड़ोंरूपये हैं


गोलमाल के.


पर जीवन ही बन गया अर्थ विहीन.

No comments:

Post a Comment