Wednesday, June 29, 2016

राम नचावत

ईश्वर का  नाम रटकर  घने वन में
पद्मासन लगाकर बैठ गया  मानव।
आधी  रात एक डाकू  गया  , अंधरे में
टकराया, तपस्वी मानव संभल गया--
बोला-- वन दुरगा ।अच्छा  रखो।
डाकू  शकुन माना , लूटने  गया मिला बडा  मैं  माल।
सोचा,  साधु  का  प्रभाव।
यों ही  रोज| मिलता  धीरे - धीरे बन गया रईश।
कई|  महीने  बाद| साधु बोला,
आगे  से  लूटना  छोड, मेरा एक आश्रम बनवाना
शुरु  करो, तुमको जाना  नहीं, केवल मेरे पास
खडा  रहना, ढेर सारा  माल अपने आप आएँगे।
जो  आते  हैं , उन्हें  अनुशासन| से बिठा देना।
पेट भर अन्नदान करना। भीड जमैगी तो
व्यापार  शुरु  करना, चित्र , चाबी  का गुच्छा,
प्रसाद की मिठाइयाँ,  रंगबिरंगे चित्र , मूर्तियाँ
विशिष्ट चाँदी - और सोने का तावीज।
मेरा  स्वरणासन, सोने  का  मुकुठ, फिर धीरे कहना
स्वामी  की इच्छा  स्वर्ण रथ, हीरै जडित मुकुठ।
बडे - बडे  विद्वान, कवि , गायक आयेंगे,
कीर्तन करेंगे, गाएँगे,नाचेंगे, उन का बडे राशी से
गुप्त सम्मान| देना। मंत्री, अधिकारी, पुलिस का
ऐसा  सम्मान, ऐसे वजन प्रसाद  ,वे आएँगे तो आएँगे दल - सेवक,   उनका केवल भोजन- ठहराव पडाव।
प्रचारकों को  सुनो, रसीद पुस्तक छापो, आय कर अदा कर दो।
सब हीं नचावत राम गोसाई।

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