ईश्वर का नाम रटकर घने वन में
पद्मासन लगाकर बैठ गया मानव।
आधी रात एक डाकू गया , अंधरे में
टकराया, तपस्वी मानव संभल गया--
बोला-- वन दुरगा ।अच्छा रखो।
डाकू शकुन माना , लूटने गया मिला बडा मैं माल।
सोचा, साधु का प्रभाव।
यों ही रोज| मिलता धीरे - धीरे बन गया रईश।
कई| महीने बाद| साधु बोला,
आगे से लूटना छोड, मेरा एक आश्रम बनवाना
शुरु करो, तुमको जाना नहीं, केवल मेरे पास
खडा रहना, ढेर सारा माल अपने आप आएँगे।
जो आते हैं , उन्हें अनुशासन| से बिठा देना।
पेट भर अन्नदान करना। भीड जमैगी तो
व्यापार शुरु करना, चित्र , चाबी का गुच्छा,
प्रसाद की मिठाइयाँ, रंगबिरंगे चित्र , मूर्तियाँ
विशिष्ट चाँदी - और सोने का तावीज।
मेरा स्वरणासन, सोने का मुकुठ, फिर धीरे कहना
स्वामी की इच्छा स्वर्ण रथ, हीरै जडित मुकुठ।
बडे - बडे विद्वान, कवि , गायक आयेंगे,
कीर्तन करेंगे, गाएँगे,नाचेंगे, उन का बडे राशी से
गुप्त सम्मान| देना। मंत्री, अधिकारी, पुलिस का
ऐसा सम्मान, ऐसे वजन प्रसाद ,वे आएँगे तो आएँगे दल - सेवक, उनका केवल भोजन- ठहराव पडाव।
प्रचारकों को सुनो, रसीद पुस्तक छापो, आय कर अदा कर दो।
सब हीं नचावत राम गोसाई।
Wednesday, June 29, 2016
राम नचावत
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