Tuesday, May 14, 2019

संस्कार

परिषद को नमस्कार।
 संस्कार।
 सूक्ष्म सांसारिक नीति,
आजकल सूक्ष्मता भूल बाह्याडंबर को
प्रधानता दी जा रही है।
इतनी वैज्ञानिक प्रगति,
इनके बीच अन्धविश्वास,
आध्यात्मिकता ठग,
राजनैतिक ठग
रिश्वतखोर,
सब के सब भक्तिसागर में लगकर
अपनी अमीरी दिखा रहे हैं या भक्ति पता नहीं।कई लौकिक अलौकिक बातों को
सोचता हुआ जा रहा था।
माँ -बाप को जितना आदर किया,
जितनी सेवा की,पता नहीं, क्या उनकी आत्माएँ  आशीष देंगी।
मैने उनको दूर ही रखा।
पैसे दिये।क्या पैसे से वे खुश रहे होंगे ।
पता,नहीं आज श्राद्ध कर्म करना है।
जिन्दा माँ बाप से न पूछा,क्या आप पेट भर खा चुके हैं ? आप को और कुछ चाहिए। न  पूछा ।उनका प्रलाप न सुना।
उनकी माँगें  जिन्दा रहते  पूरी  नहीं की।
पस बैठकर बोला तक नहीं। माँ  कुछ  कहने बुलायेगी।माँ,तुम को   क्या  चाहिए,दवा है,फल है,बिस्कुट है
राम राम कहो  ,मैं क्या करूँ,
मुझे ज्यादा  काम है ।
क्या करूँ? काम क्या,मोबाइल आन  कर बैठ गया।
आज श्राद्धकर्म ।
पुरोहित की बडी सूची।
माँ को सन्तोष क्या नही,
पुरोहित को खुश करना है।
तभी दिवंगत माता पिता,
जिनकी माँगे  जिन्दा  रहते पूरी नहीं की,
आज पुरोहित की माँगे  पूरी कर
कौओं को पिण्ड दान कर
आत्माएँ जो भटकती शान्त कर दिया।
पुरोहित की आशीष मिली।न जाने माता पिता की आत्मा खुशी से आशीर्वाद दे रही है या नहीं।लौकिक संस्कार तो पूरा हो गया।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंत कृष्ण की प्रार्थनाएं

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