धरती पुत्र किसान
एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु
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मानव पशु ,
पाषाण युग में
कच्चा माँस खाता।
आवारा रहा।
एक जंगल
खाली करके
जंगल जंगल भटकता।
मानव सभ्य बना तो
कारण धरती पुत्र किसान।।
किसान मानव को
चलते फिरते जानवर जीवन मनुष्य को
सभ्य बनाया,
एक ही स्थान में
खेती करके बसाया।
संस्कार दिया।
मनुष्य को क्षुधा
पूर्ति के लिए
इधर उधर भटकने से बचाया।
परिणाम पेट भरने के बाद
सोचने विचारने लगा।
आग का उपयोग,
चक्र का पता,
अपने अपने समाज
समाज सुरक्षा
मानव एकता।
विचारों की एकता
भाईचारा भाव!
धरती पुत्र किसान न तो
मानव असभ्य
जंगली जानवर ही है जान।
सोना, चाँदी,
उद्योग,पद,धन
भूखे के सामने
धूल समान।।
भूखा भजन न गोपाला।
सिद्धार्थ को एक
अनपढ़ अहरी ने सिखाया।
लाल बहादुर शास्त्री ने
नारा दिया --
"जय जवान,जय किसान"।
दोनों न तो मानव जीवन में
न अमन चमन जान्।
जय किसान,
धरती पुत्र,
वह न तो मानव जीवन
अस्ती बंजर जानो।
किसानों को
जय बोलो।
इस बात को
गाँठ बाँधकर
रख लो।
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