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Wednesday, December 17, 2025

नदी का यह दुख

 नदी का दुख

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई 

17-12-25.

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नदी न संचै नीर।

नदी हूँ मैं,

 अपने लिए कोई बचत नहीं करती।

मेरे बिना जीना दुश्वार।

पशु-पक्षी, वनस्पति जगत 

 मानव समाज का प्यास बुझाती हूँ ,


 मेरे रूप विविध।

 शांत कल कल  बहती हूँ,

 वर्षा काल में बाढ तेज।

 बर्फ़ से पिघलकर जीव नदी के रूप में बहती हूँ।

 फिर भी मानव,

 अति स्वार्थ 

 मेरी स्वतंत्रता में बाधा डालते हैं।

 बाँध बाँधकर रोक देते हैं।

बिजली की उत्पत्ति करते हैं 

हरे भरे खेत, घने जंगल 

  जंगल के बरसाती बाढ़।

 अति खतरा ,निर्दयी बनती हूँ।

 नंदी के किनारे,

सभ्यता का विकास।

 आज मानव 

कारखाना बनाकर 

 उसके अवशेष पानी को

 विषैले पानी को 

 मुझ पर छोड़ देते हैं।

 परिणाम  विविध 

 रोगों के कारण बन जाती हूँ।

 यह मेरे लिए अत्यंत सदमा है।

 इतने पानी प्रदूषित है,

 गंगा का पानी कलंकित।

 खेद की बातें वर्णनातीत हैं,

 पानी के बहने पर भी

 गंगा के किनारे,

 प्यासा आदमी,

मिनरल वाटर बोतल 

खरीदकर पीता है।

कहीं कहीं मेरी चौड़ाई 

 कम कर इमारतें बनाते हैं।

  मैं नदी हूँ, मैं दुखी हूँ

 मानव की स्वार्थता से

 प्रदूषित हूँ,

रेत के लूट के कारण,

 कीचड से भरी बहती हूँ।

 पशू पक्षी भी बीमारी में 

तड़पते हैं।

दुखी हूँ ,

 मेरे प्रकोप  के कारण 

 बाढ के कारण  किसानों के मेहनत कभी कभी 

 नष्ट हो जाती है।

ज्ञान चक्षु प्राप्त मानव के

 धन लोभ, नगर विस्तार,

 नदी  मैं परोपकारी 

 दुखी हूँ,

 परिणाम  दुष्परिणाम।

 दुख झेलना ही पड़ेगा।



 

 


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Sunday, December 14, 2025

आत्मसंतोषी

 आत्मसंतोष 

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

15-12-25.

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आत्म संतोष, 

आत्मसुख,

आत्मानंद, 

आत्मज्ञान 

 ये हैं आध्यात्मिक चिंतन।

 लौकिक चिंतन में,

 सत्य का साथ नहीं,

 भक्ति के क्षेत्र में बाह्याडंबर अधिक।

 राजनैतिक क्षेत्र में 

 भ्रष्टाचारी।

 प्रशासनिक और

 न्याय के क्षेत्र में 

लक्ष्मी की चंचलता।

 आत्म संतोष कैसे?

 नश्वर जगत में 

 अनश्वर सत्य,

 अधर्म प्रशासन,

   आतंकवाद 

 ठग, चोर,डाकू,

 पढ़ें लिखे वकील,

 चार्टर्ड एकाउंटेंट 

  व्यापारी,

 सब तटस्थ है तो

 आत्मसंतोष।

 स्वार्थ राजनैतिक 

 हमेशा अपने  असंतोषी,

 विरोधी विचार गठबंधन।

 आत्मसंतोष कैसे?

 रामावतार में राम दुखी।

 कृष्णावतार में कृष्ण दुखी।

  शासक अपने पद,

   अपनी तरक्की,

    षडयंत्र आत्मसंतोष कैसे?

 संसार में अनेक वस्तुएँ,

   जगत मिथ्या, 

   ब्रह्म सत्यं।

परिणाम जगत में 

 आत्म संतोष कैसे?

 चोरी का माल,

  रिश्वत का मार्ग,

 एकांत में नहीं देता,

 आत्मसंतोष।

 बुढापा ही  स्वर्ग- नरक का केंद्र।

 भूलोक में कितने लोग

 शांति पाते हैं, 

संतैषी है? पता नहीं!

   सुपुत्र कुपुत्र की बात।

 व्यापार में लाभ नष्ट।

 भिखारी भी रिश्वत देकर 

 बैठता है मंदिर के सामने।

 मंदिर के इर्द-गिर्द 

 ठगों की दूकानें

 मनमाना दाम।

 दर्शन दो क्षण,

 पेसैवालों के घंटों के दर्शन। 

 रिश्तेदारों की उन्नति,

 ईर्ष्या, क्रोध, लोभ,

 मेरी दृष्टि में आत्मसंतोषी कौन?

 शीरडी साईं चरित्र,

 समाज के दुख दूर करने,

 स्वयं कितने दुखी,

 शारीरिक कष्ट,

 भक्ति के क्षेत्र में 

 भिन्न भगवान,भिन्न सिद्धांत।

 मामा के आराध्य देव अलग।

 दादा,दादी  के आराध्य देव अलग-अलग।

 ज्योतिषी एक ही जन्म कुंडली, प्रायश्चित्त अलग अलग।

  वही आत्मसंतोषी, 

   जिसका मन चंचल नहीं।

 एक ही सिद्धांत,

 धर्माचरण,

 सत्या चरण 

 वैसा कोई दीख न पड़ा।। इतिहास में,पुराण में।

हिरण्यकश्यप, प्रह्लाद,

 दक्ष,शिव ,कंस कृष्णन 

 मंथरा कैकेई राम

 ईश्वर तुल्य लोगों की कथा भी

 राम कहानी अपनी अपनी।

आत्म संतोष नश्वर ब्रह्मांड की खोज में कोई नहीं।।ईसा का शूली पर  चढ़ना,

मुहम्मद का मक्का मदिरा भागना।

आध्यात्मिक क्षेत्र में भी 

 असंतोषी ही ज़्यादा है।





 


 

 





 



 

 


 




 



  


 


 


 

 


Saturday, December 13, 2025

रंग-बिरंगे संसार

 रंगों का संसार।

एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई 

१३-१२-२५.

रंगों का संसार 

 अति सुन्दर,

 अति आकर्षक,

 अति आनंद प्रद।

अति मनोरंजक।

  ऊँचे ,ऊँचे पेड़।

 जड़ी बूटियाँ

 चचींडा,बैंगनी,

नबैंगनी के भिन्न-भिन्न आकार,

 मन

 विविध  कटि पत्तियों।ष

 रंग-बिरंगे फूल,

 विविध आकार के फल।

विविध स्वाद,

  रंगीले लाल पीले 

 सूर्योदय सूर्यास्त।

 चंद्रोदय, चमकते तारे।

काले नीले उजाले बादल,

 समुद्र की लहरें, बुलबुले।

 रंग-बिरंगे पक्षी, 

विभिन्न कलरव।

पशु ओं में बड़े हाथी,

 हिरन , सींगवाले हिरन,

 खरगोश , गंभीर सिंह,

चीता,बाघ, भेड़िया,सियार

 सब के गुणों से मिश्रित 

 विभिन्न आकार के मनुष्य,

 सदगुण बदगुण,

रंगीले आदमी,

चित्रकार,  विभिन्न राग, अनुराग, ताल छंद, लय

 स्वर।

 सफेद रंग के सूर्य प्रकाश 

 के साथ रंग इंद्र धनुष।

 गगन चुंबी  गोपुर,

राजमहल।


 रंगों का संसार,


मौसमों के चक्र

 चिलचिलाती धूप,

 कंपकंपी सर्दी

 पत्ते हीन पतझड़।

 वर्षा के मेंढक टर्राना,

मोर के नाच,

हरे भरे पेड़, फूलों का वसंत

 रंगों का संसार 

 अद्भुत, आश्चर्यजनक।

भगवान की लीला।

 आनंद प्रद, संतोष प्रद, शांति प्रद।

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Thursday, December 11, 2025

मांसाहारी पशु की सुरक्षा

 पशुओं की सुरक्षा।

एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई 

12-12-25.

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पशुओं की सुरक्षा चाहिए,

 क्या यह संभव है?

 अनेक पशु मंदिरों के

 खंभों मैं देखते हैं,

 जिनका नामो 

निशान अब नहीं।

 हैदराबाद गया तो

 वहाँ  शाकाहारी भोजनालय अति 

   दुर्लभ है।

 गली के कुत्तों की सुरक्षा में ब्लू क्रास,

 तोते के ज्योतिष 

 को रोकने वाले 

 पशु पक्षी रक्षक,

मकड़ी के जाल में 

फँसे कीड़े देख

 पछताने लोग

 माँसाहार  खाने के इच्छुक।

कसाई की दुकानों में,

 भीड़, 

 स्वादिष्ट माँसाहार भोजन,

स्वादिष्ट आकर्षित विज्ञापन,

शाकाहारी और माँसाहारी

 के सम्मिलित  भोजनालय,

 अभयारण्य के पशुओं का नदारद।

 ऐसा है मधुशाला खोलकर,

 मधु पीना देश , परिवार,

 व्यक्ति का नाश।

 अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल की अनुमति देकर 

 मातृभाषा  माध्यम का प्रचार ।

 व्यर्थ काम ।

  पशु रक्षा वनाधिकारी

  रिश्वत रोकने का विभाग 

 फिर भी चंदन पेड़ की चोरी,

हाथी दांत की चोरी,

 हिरन का शिकार 

 सब चलता रहता है।

 कठोर दंड विधान नहीं,

  अतः पशु  की सुरक्षा कैसे?

 ऊँट का माँस, बकरी का माँस, गो माँस, गोवधशाला 

 सब वैध।

 सबहीं नचावत राम गोसाईं।

 मछुआरे के जीवन,

 मधुशाला कारखाने के मज़दूर,

 सिगरेट कंपनी के मज़दूर 

अंग्रेज़ी माध्यम के लूट

 सब की सुरक्षा के सामने 

 पशु की  सुरक्षा की समस्या  अनावश्यक।

 कसाई की दूकान,

 विदेशी मजहबों की बढ़ती जनसंख्या,

 मज़हबी परिवर्तन 

 यही प्रधान या

 पशु की सुरक्षा।

 सोचिए, 

क्या

 कसाई    की दूकान बंद करने का कानून लागू कर सकते हैं?

 मधुशाला कारखाने बंद कर सकते हैं?

 खूँख्वार  जानवरों के शिकार राजा करते थे।

 मानव कल्याण मानव सुरक्षा,

 १००%मतदेना

 आदि प्रधान।

 न पशु की सुरक्षा।

 मांसाहारी मनुष्य के होते

 यह तो असंभव।



 


 

 

 

 



 

 

 

 

 

 

 






 



 

 

 

 


 

 



Wednesday, December 10, 2025

ट्राफ़िक जाम

 ट्राफ़िक जाम।

( यातायात अवरोध)

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

11+12-25

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यातायात अवरोध 

 यानै ट्राफ़िक जाम।

 वाहनों के आविष्कार,

आर्थिक विकास 

नगर विस्तार 

परिणाम यातयात अवरोध।

जीवन यात्रा मैं 

सम्मिलित परिवार 

   बुद्धि कौशल,

 आर्थिक व्यवस्था 

 ईर्ष्या, प्रतिशोध,

 लोभ, अहंकार , 

 जीवन यात्रा के अवरोध।

 जब मैं बच्चा था,

तब की आर्थिक व्यवस्था ,

 पैर गाड़ी जिसके पास है,

 वही अमीर।

 आज़ादी है के बाद 

भारत का विकास आश्चर्यजनक।

मोटर कार देखना  भी 

 एक विचित्र बात थी।

 इंजन लगा द्विचक्र गाड़ी

धीरे धीरे उसकी संख्या बढ़ी।

 अब बाहर जाता हूँ

 पैर गाड़ी का पता नहीं, 

स्कूटर, बैक भी कम।

 कार की संख्या ज़्यादा।

परिणाम  यातायात 

अवरोध।

 प्राचीन काल में 

 वाहनों   की कमी,

 पैदल यात्रा 

 तब जंगल, 

पहाड़ नदियाँ

 यात्रा की बाधाएँ।


 आजकल आवागमन के 

 साधनों के कारण,

 नगर विस्तार के कारण 

 ट्राफ़िक जाम।

यात्रा की सुविधाएँ अधिक। 

पक्की सड़कें,

नेशनल है वे।

   जितनी सुविधाएँ,

 बढ़ती है,

 उतने अवरोध 

 जीवन यात्रा में।

पुल , पूल पर पुल

 वाहन खरीदने 

 कर्जा लेने की सुविधा।

 महँगाई,

 शिक्षा की महँगाई

 इलाज की महँगाई।

नये नये रोगों का निदान 

 इलाज की सुविधाएँ।

 आर्थिक व्यवस्था 

 जीवन यात्रा के बाधक।

 लगता है ट्राफ़िक जाम 

 आवागमन की सुविधा के कारण नहीं,

 देश की आर्थिक प्रगति भी।

 जापान में आकाश मार्ग पर के नये वाहन का पता लगाया है।

 पैर गाड़ी जैसा छोटा वाहन

 आकाश में उडने के लिए।

 घर घर में उड़ान।

 तब होगा आकाश

 मार्ग पर ट्राफ़िक जाम।

 विज्ञान वरदान है

अमीरों का।

 ट्राफ़िक जाम की देरी

की चिंता नहीं।

जो भी हो ट्राफ़िक जाम 

 समय की बरबादी।

 भारत जैसे देश में 

 आंबुलन्स जाना 

बड़े शहरों में 

अति मुश्किल।

पराया धन

  पराया धन

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई 

10-12-25.

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पराया धन, 

 तमिलनाडु में 

 संतान लक्ष्मी को

 ग्रामों में कहते थे,

 एक हमारा धन,

 दूसरा पराया धन।

मतलब है

लड़का अपना धन है,

 लड़की पराया धन।

 जीवन में धन कमाना,

 सनातन धर्म के अनुसार 

दान धर्म करना।

 अन्नदान,गोदान,भूदान  कन्या दान।

   पराया धन  

   अपहरण 

  महा पाप।

 मानव की चल संपत्ति 

 अचल संपत्ति सब 

  परायों के लिए।

 पीढ़ी दर पीढ़ी 

 लोगों के लिए।

 अन्न धन

 किसान के मेहनत से।

वह परायों के लिए।

वृक्ष फल न भखै,

 नदी न संचय नीर।

 परमार्थ के कारणे

 साधु धरा शरीर।

 कपड़ा बुनकर बनाता है

 वस्त्र धन दूसरों के लिए।

 शरीर ढकने कपड़े चाहिए,

मानव की कमाई कपड़े खरीदने केलिए।

 कपड़ा बुनकर का नहीं,

बेचने के लिए।

तब पराया धन  

 बदलाव के लिए।

 सुनार का आभूषण 

 परायों के लिए।

 परायों का धन सुनार के लिए।

 देश है अपना धन।

ज़मीन अपना।

 धन तो चंचल है,

 परायों के हो जाते हैं।

मित्रता भी धन है।

 विद्या धन ,

 परायों को देते देते

 ज्ञान की वृद्धि होती है।

इस जहां में सब के सब 

 परायों के लिए।


Monday, December 8, 2025

मैं पैसा बोलता हूँ

 पैसा बोलता है।

एस.अनंतकृष्णन, तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

9-12-25

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 मैं पैसा हूँ।

 मैं ही बोलता हूँ।

 अधिक कोई बोले,

 भले ही सत्य हो,

भले ही ईमानदारी बातें हो

 मैं उनके जेब में न तो

 उसकी बातें न सुनता कोई।

पांडेय बेचन शर्मा उग्र 

 मेरे बारे में मेरे ही मुख से 

 सुनाया है बहुत।

 मैं रुपया हूँ।

 मेरी मधुरिमा मेरे झनझनाहट के सामने

 शिव का डमरू, सरस्वती की वीणा, मुरलीधर का बाँसरी,  सब मधुर ध्वनियाँ बेकार।

आजकल चुनाव में 

 विधायक, सांसद 

 सैकडों रूपयों के खर्च करें,

 वोट के लिए नोट दें तो

 मतदाता न देखते

 पात्र कुपात्र के विचार।

 भ्रष्टाचारी नेता भ्रष्टाचार रूपयों से अदालत में 

 जाने पर नामी वकीलों का तांता इसके पक्ष में।

 अध्यापक , पुलिस, डाक्टर सब मेरे बेगार।

 गरीब अपराधी को 

 पकड़ते ही लाठी का मार।

 अमीर अपराधी का सम्मान।

 वहाँ पैसा मैं ही बोलता हूँ।

 आराम की विमान यात्रा,

 पाँच नक्षत्र होटल में ठहरना,

 पैसे मेरा कारण।

 मेरी आत्मकथा में 

 पांडेय बेचन शर्मा उग्र ने

लिखा है,

 संक्षेप में मेरी महिमा,

 लड़कियों की इज्ज़त लूटो,

 साथ खून करो,

साफ़ साफ़ बच जाओगे।

धर्मों को त्याग दो,

 रूपये के शरणार्थी बनो।


सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥

अर्थ: सभी धर्मों (कर्तव्यों/उपायों) को त्याग कर, केवल मेरी (भगवान की) शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा, शोक मत करो।

मैं पैसा हूँ। मैं रूपया हूँ।

Sunday, December 7, 2025

क्रोध

 क्रोध।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।

8-12-25.


क्रोध   चाहिए 

 क्रोध न करना।

 अन्याय के  विरोध में 

 क्रोध दिखाना चाहिए।

 वह क्रोध भी तभी  

तभी दिखाना जब 

 क्रोध  का पता लगें कि

 न्याय पूर्ण हो।

विदेशियों का आक्रमण।

 मंदिरों का तोड़ मरोड़।

 आज़ादी के बाद 

धर्म निरपेक्षता के नाम 

 दो हज़ार साल पुराना मंदिर।

मुगलों के आने के पहले मंदिर।

न्यायधीश के इंसाफ के बाद भी।

 तमिल राष्ट्र कवि भारतियार ने कहा

 रौद्र का अभ्यास कर लो।

 जग भलाई के लिए 

 अत्याचार की चरम 

  सीमा पर  भगवान 

 जन्म लेते हैं।

  क्रोध न सीखने पर

 अन्याय चरम सीमा पर 

 पहु़ँचता।

 आज़ादी अहिंसा से नहीं,

 भारतीय लाठी का मार सहते रहे।

 दूसरी ओर  देशभक्त 

 गर्म दल अंग्रेज़ी 

 के तार खंभ, थाना

 मार्ग जिला देश 

 सब को चूर्ण कर रहे थे।

   पर बिना सोचे विचारे 

 बांग्लादेश,  लोभ वश 

 ईर्ष्या वश क्रोध 

 सही नहीं।।  

 क्रोध तो एक क्षण मैं 

 खूनी बना देता है।

पियक्कड़ों का क्रोध 

 निंदनीय है।

 माता पिता गुरु का क्रोध

 जीवन प्रगति के लिए।। आजकल की  ताज़ी खबरें 

 माता ने  सिनेमा जाने,

पैसे न दिए माता की हत्या।

अध्यापिका ने गाली दी,

 अध्यापिका की हत्या।।

 ऐसे क्रोध मूर्खता दंडनीय।

 क्रोध बिना 

सोचे विचारे होने पर 

 जिंदगी भर पछताना होगा।।

Saturday, December 6, 2025

अंतिम परीक्षा

 अंतिम परीक्षा 

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एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

7-12-25

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माता पिता कहते थे,

 बारहवीं कक्षा जीवन 

 मोड़ की अंतिम परीक्षा।

उच्च शिक्षा भर्ती का बुनियाद।

 स्नातकोत्तर तक 

खूब पढ़ना।

  फिर नौकरी।

परीक्षा खत्म।

 आगे ही परीक्षा ही परीक्षा।।

 अंतिम परीक्षा अंतिम साँस तक।

 योग्य पति या पत्नी,

 प्रेमी या प्रेमिका 

 चुनने की कठोर परीक्षा।

सुपुत्र   को शिक्षा देने की परीक्षा।

 कुपुत्र को दूख लेख की परीक्षा।

 बहु या दामाद चुनने की परीक्षा।

 उद्योग धंधों में 

 पदोन्नति की परीक्षा।

 व्यापारी को  ग्राहक की परीक्षा।

 बीमार पड़ने पर

 खून, एकस्रे,स्केन की परीक्षा।

   अंतिम परीक्षा कहाँ तक।

 बहू की परीक्षा,

 दामाद की परीक्षा।

 अंतिम परीक्षा अंतिम साँस तक।।

 चुनाव की परीक्षा।

योग्य प्रतिनिधि चुनने की परीक्षा।

 नेता के भाषण और वादा

 को जानने की परीक्षा।

 कदम कदम पर 

चोर, डाकू, उचक्कों की परीक्षा।

 नकली साधु संतों की परीक्षा।

 नकली अंगहीन भिखारी की परीक्षा।

 अंतर्जाल ठगों की परीक्षा 

 अंतिम साँस तक

 परीक्षा ही परीक्षा ।

 अंतिम परीक्षा लेने

 आत्मा नहीं रहती जहाँ में।




 

 

 

 


 

 

 

 

 

 



 मन

Friday, December 5, 2025

वेद-सनातन धरम--अनंत जगदीश्वर

 4816.  चींटी से ब्रहमा तक के सभी जीवात्माएँ  कहते हैं कि मन का नियंत्रण अत्यधिक कष्ट है। जिसके मन में कोई इच्छा नहीं है, वह शून्य आकाश में  अकारण उमडकर दीखनेवाले माया के बनाये नाम रूप प्रपंच दृश्यों में किसी में किसी कारण से व्यवहार न करेगा। कारण प्रपंच में दीखनेवाले नामरूप सब आकाश मात्र है का वाद रहित विषय है। पूर्णरूप से समझ सकते हैं कि  जड रूप में दीखनेवले नाम रूपों में  जिसके कण लेकर जाँच करने पर उसमे आकाश रहित अणु कहनेवाले नामरूप स्थिर खडा नहीं रहता।  जिसमें  सत्य की खोज की बुद्धि नहीं है,  वे ही आकाश को भूलकर परपंच रूप में बदलनेवाले के जैसे भ्रमित करनेवाले नाम रूप बने प्रपंच को सत्य मानकर  विश्वास करके उसके बीच परमानंद स्वरूप अपने की खोज कर रहा है। उसी समय  प्रपंच असत्य  जाननेवाले विवकी का मन किसी भी प्रयत्न के बिना दब जएगा। कारण जिसमें भेदबुद्धि नहीं है, उसको मन ही नहीं है। जो सत्य जानने का प्रयत्न नहीं करता वह दुखी रहेगा। उस दुखसे बचने का एक मात्र मार्ग है, सत्य जानने का प्रयत्न करना। जो मन नहीं है, उसको नियंत्रण में लाने का अभ्यास बुद्धि शून्य और अर्थ शून्य है। वैसे लोगों को दुख भोगने में कोई आश्चर्य नहीं है। कारण वे सब स्वप्न में देखे स्त्री या पुरुष को शादी न करने का दुख जैसा है,वैसा ही है।  कुछ लोग स्वप्न में देखे प्राकृतिक क्रोध में नाश हुए घर को सोचकर जैसे दुख होते हैं,वैसे ही है। अर्थात् आकाश के जैसे,

आत्मबोध में ही आकाश भूत ,उससे होनेवाले वायु , वायु से होनेवाले अग्नि, अग्नि से होनेवाले पानी,पानी से होनेवाली भूमि है सा लगता है। आकाश में रहनेवाले नाम रूप जैसे आकाश मात्र है, आकाश वैसे ही अखंड बोध आकाश में लगनेवाले आकाश सहित के पंचभूत बोध मात्र है। कारण बोध से न मिले पंचभूत के एक बूंद भी स्थिर खडा नहीं रहेगा। बोध मात्र ही स्थिर खडा रहता है। उस अखंडबोध का अपना स्वभाव ही एक जीव चाहनेवाले  सभी आनंद है।

4817. सर्वव्यापी,निश्चलन,निर्विकार,अखंडबोध रूपी मैं है के अनुभव के साथ रहनेवाले परमात्मा से न मिले दूसरा दृश्य जड चलन नहीं है। इसको शास्त्र परम रूप में, युक्तियों के साथ,विवेक के साथ जानकर प्रज्ञा अर्थात् बोध को दृश्यों में न लगनेवाले  दृश्यों को छोडकर प्रज्ञा अपने में मात्र नियंत्रित रहने के साथ स्वयं मात्र ही नित्य, सत्य रूप में स्थिर खडा रहते हैं को जानकर परम ज्ञान में अर्थात्  परमात्मा में रहते समय परमात्म स्वभाव के आनंद को दिन के जैसे अनुभव कर सकते हैं।

4818. सत्य से अपरिचित  जीव के चारों ओर मृत्यु देव नशा में रहेगा। वह एक परछाई जैसा है। कोई चलें तो वैसा लगेगा  कि छाया भी साथ चलेगा।  हाथ उठाने पर छाया भी हाथ उठाएगी। वैसे ही मनुष्य जिस रीति में कर्म करता है, जिस चिंतन से कर्म करता है,जिस लक्ष्य की ओर कर्म करता है, अर्थात कुछ लोग आत्मबोध के साथ कर्म करते हैं तो कुछ लोग अहं बोध के साथ कर्म करते हैं। मैं,मेरा के भाव से कर्म करते समय उसके अनुसार ही देव की प्रतिक्रियाएँ होंगी। इसलिए देवों को संतुष्ट करना है तो विश्व भर को शुद्ध करने की क्षमता भरे दिवय कार्यों को करना चाहिए। अनुष्ठान और ध्यान करके यशोगान करना चाहिए। इन सबको ही  जीवन बनाकर परिवर्तन करना चाहिए। वैसे सत्यबोध को आत्मसात् करने साध्य होनेवाला मनुष्य बडा पापी होने पर भी वह परम पवित्र बनेगा। इसलिए उपनिषद सार सर्वस्व बने भागवद भगवद्  गीता , आदि सत्य शास्त्रों को  विश्व भर की पाठशालाओं में पाठ्यक्रम में जोडने पर भेदबुद्धि, रागद्वेश रहित एक भक्त समूह बना सकते हैं।
विश्व भर में भारत देश ही इसका उदाहरण है।

4819.  अनंत को अनंत रहित एक के द्वारा ही उदाहरण के साथ समझकर एहसास कर सकते हैं। कारण दो अनंत नहीं है। जन्म-मरण के बारे में सही रूप में सीखे बिना मृत्यु भय से विमोचन नहीं है।उदाहरणों को ठीक रीतियों से समझना चाहिए।
पहले प्रपंच का परम कारण मैं है को अनुभव करनेवाला अखंडबोध है, उस बोध से दूसरी एक नयी वस्तु न बनेगी। इस बात को बुद्धि में दृढ बनाना चाहिए। वैसे सर्वव्यापी बोध को एक समुद्र के रूप में संकल्प  करना चाहिए। समुद्र के समुद्र पानी ही अकारण अनेक बुलबुले के रूप में उमडकर  नीचे होने से जान पडता है। उसमें एक बुलबुला उमडने उमडने को ही एक जीव का जन्म है, वह बुलबुला टूटने को ही मृत्यु कहते हैं। इस प्रकार एक बुलबुला उमडकर छिपना ही एक जीव का जन्म मरण है। समुद्र का पानी ही बुलबुले हैं। बुलबुलों का मिटना भी समुद्र का पानी है। एक बुलबुले उमडना कम होना आदि और समुद्र का कोई संभव  नहीं है। वैसे ही  मैं नामक अखंडबोध रूपी समुद्र उमडना और मिटने के बुलबुले जैसे ही स्वयं देखनेवाले प्रपंच रूप है। समुद्र  चलन से बुलबुले बदलने के जैसे नहीं है, आदि-अंत रहित बोध में नाम रूप प्रपंच होगा। वह रस्सी को देखकर साँप के भ्रम होने के जैसे बोध के अपूर्णता में बोध को ही माया के द्वारा प्रपंचरूप में देखते हैं। अर्थात् हल्की रोशनी में रस्सी को साँप के रूप में देखते हैं। रस्सी सत्य में साँप न बनाती है।  वैसे ही बोध को ही प्रपंच के रूप मे देखते  हैं। बोध ने प्रपंच की सृष्टि नहीं की है। सदा दुख देनेवाले साँप रूपी प्रपंच, उसमें जीव के नाम रूप बोधाभिन्न एक नयी वस्तु को बनायी नहीं है। वही नहीं वे नाम रूपी माया स्वयं अस्थिर मिथ्या दर्शन मात्र है। इसको न पहचानकर शरीर और संसार को सत्य मानकर विश्वास करने पर वह दुख मात्र दे सकता है। मैं नामक अखंडबोध मात्र ही परमानंद स्वरूप में, सनातन रूप में होता है। इसलिए तैलधारा के जैसे रहनेवाले सत्य स्मरण ही दुख निवृत्ति का एक मात्र मर्ग है। अर्थात् मन जहाँ भी जाएँ व बोध है,जो कुछ देखते हैं, वे सब ब्ह्म स्वरूप मात्र है।

4620. श्री कृष्ण ने भगवद् गीता में इस विश्व के बडे प्रपंच रहस्य को ही अर्जुन से कहा है। प्रपंच के दुखों को बिलकुल यह रहस्य मिटा देता है। जो नहीं है,वह बन नहीं सकता। इस बात को छोटा बच्चा भी समझ सकता है। लेकिन संसार के बहुत बडे ज्ञानियों को भी यह अज्ञात विषय है। अर्थात्  यह संसार रहित है। वह है तो नाशवान न होना चाहिए। जो भी नश्वर है,वह सत्य नहीं है।    सत्य अजर अमर है। भारत के ऋषि-मुनि इसको स्पष्ट रूप से जानते समझते हैं। फिर भी संसार के लोग श्री कृष्ण के उपदेश पर विश्वास नहीं रखते। उसकी सत्यता का एहसास नहीं करते ।इसलिए श्री कृष्ण कहते हैं कि अपनी माया का पार करना मुश्किल है,मेरे केवल मेरे शरणार्थी बननेवाले मात्र माया पार कर सकते हैं। जो है,वह आत्मा है। वह आत्मा जीव रूपी मैं है। मैं है का अनुभव आत्मा रूपी बोध है।वह अनश्वर है। वह बन नहीं सकता और रहित नहीं हो सकता। वैसी आत्मा ही अर्जुन तुम हो। यों कृष्ण कहते समय जीव के प्रतिबिंब रूपी अर्जुन रूपी देह पंचभूत के भाग होने से वह तीनों कालों में बनते नहीं है। बुद्धि में इस बात की दृढता होने पर भी बाकी जो है, वह सर्वव्यापी परमात्मा मात्र है।  परमात्म सर्वत्र सर्वव्यापी होने से वह रहित स्थान नहीं है। वह निःचलन,निर्विकार,निष्क्रिय है। वैसे परमात्मा हत्या करता भी नहीं है, हत्या कराता भी नहीं है। इसलिए जन्म -मरण का संभव नहीं होता। सत्य से अज्ञात माया जीव  की माया के भ्रम मात्र ही यह ब्रह्मांड भर में  है।  

Thursday, December 4, 2025

ज्ञान और शिक्षा

 ज्ञान और शिक्षा।

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एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

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5-12-25.

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ज्ञान और शिक्षा 

 शिक्षा सब लोगों की

 निरक्षरता मिटाकर

 साक्षरता के लिए।

 नौकरी प्राप्त करने।

 स्नातक स्नातकोत्तर बनने के लिए।

 शिक्षित वकील

 धन के लिए अपराधी के पक्ष में न्याय 

 दिला सकता है।

 अधिकारियों 

 पुलिस अधिकारी 

 मनःसाक्षी के विरुद्ध 

काम कर सकता है।

 शिक्षा जीविकोपार्जन प्रधान।

 ज्ञान स्वयंभू है,

 विश्वविद्यालय की 

उपाधियाँ लौकिक 

जीवन से संबंधित।

 ज्ञान है पूर्व जन्म ज्ञान 

 आत्म ज्ञान, ब्रह्म ज्ञान 

 ज्ञान के ग्रंथों को 

 शिक्षित  लोग 

 आलोचना,समालोचना,

खोज ग्रंथ, डाक्टरेट

 नौकरी बस ।

 डाक्टरेट की संख्या बढ़ती हैं,

उनके वेतन स्तर 

बढ़ता है,

 उनसे कोई नये ग्रंथ 

 नयी क्रांति असंभव।

 आत्मज्ञानी, ब्रह्मज्ञानी,

 सरस्वती पुत्र हैं,

 वर कवि कालिदास।

 भक्त त्याग राज 

 उपनिषद, वेद , 

 आध्यात्मिक ग्रंथ 

 भगवद्गीता  आदि के

 रचनाकार,

 ज्ञानी, ब्रह्म ज्ञानी 

 उनके ग्रंथों की

 आलोचना, समालोचना,

 प्रवचनकर्ता, शोध ग्रंथकार, धन कमानेवाले,

सब किताबी कीड़े

 शिक्षित वर्ग।

 ज्ञानी तो सिद्धार्थ राजकुमार नहीं,

 बुद्ध बने ज्ञानी।। 

उज्जैन का राजा भर्तृहरि नहीं,

 अपने पत्नी के गलत संबंध जान संन्यासी बनकर जो ग्रंथ लिखे 

 वह ज्ञान ग्रंथ है।

अत्याचार निर्दयी 

 अशोक 

 बुद्ध धर्म 

अपनाने के बाद 

 विश्वप्रसिद्ध सम्राट अशोक।

 आदि शंकराचार्य 

 बचपन से ज्ञानी थै।। शिक्षित और ज्ञानी में 

 शिक्षित संकुचित दायरै में 

 नामी व्यक्ति।

 ज्ञानी विश्वविख्यात 

 सर्वप्रिय, विश्व हितैषी 

 मार्गदर्शी, ज्ञान अपने आप

 जैसे महर्षि रमण,

 अपनी जगह से न हटकर 

 विश्व भर के शिष्यों को

 अपने यहाँ खीँच लाये।

 भारत के ऋषि मुनि ज्ञानी।

 शिक्षा और ज्ञान में आकाश बादल का अंतर।।

ज्ञान व्यापक असीमित।

 शिक्षा संकुचित सीमित।

 तमिल कवयित्री औवैयार  ने

 लिखा है जो सीखा है ,

वह मुट्ठी बराबर,

 जो न सीखा है वह

 ब्रह्मांड बराबर।

भारत ज्ञानियों के भंडार घर।

 एक नहीं,एक ईसाई

 भारत में ही   ज्ञानियों से 

 प्राप्त आध्यात्मिक ज्ञान।

 अद्वैत, द्वैत, विशिष्टाद्वैत।

  आकार, निराकार  ब्रह्म रुप।

 वसुधैव कुटुंबकम् की भावना

 यही ज्ञान, सर्वव्यापी ब्रह्म विचार।


 


 


 

 

 








Wednesday, December 3, 2025

न्याय का तराजू

 न्याय का तराजू 

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एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

4/-12/-25/

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 न्याय आँखें खोलकर 

 देना है,

 तराजू हाथ में 

 आँखें बंद

 अंग्रेज़ी की नीति

 भारतीय  निरपराध देश भक्तों को पक्षपात 

देकर दंड।

 तराजू का पलड़ा

सब बराबर हैं या नहीं 

 इन्साफ की देरी।

 वायदे पर वायदा।

परिणाम साक्षी की मृत्यु ला पता।

 न्यायधीश का अवकाश प्राप्त।

 नये न्यायाधीश।

 धन के आधार पर,

 अधिकार के आधार पर

 भय दिखाने के कारण 

 गलत फैसला।

 फैसला सुनाने में देरी।

भारतीय भ्रष्टाचार राजनैतिक नेता 

 साफ साफ बच जाता।

 दंड मिलने पर जल्दी छूट जाता।

चुनाव में धन प्रधान।

 जीत जाता।

 न्याय का तराजू के पल्डे

 बराबर है या नहीं,

 आँखों की पट्टी नहीं देखता।

 वोट के लिए नोट

 खुल्लमखुल्ला ।

 नोट न तो बर्तन।

 न्याय का तराजू 

 आँखों में पट्टी।

40%शासक दल।

 उनके विरूद्ध मत दाता

 60%

अल्पसंख्यकों का शासन।

 न्याय का तराजू 

 आँखों में पट्टी ।

 एक मुख्यमंत्री का

 गलत संपत्तिका मुकद्दमा

 एक पियक्कड़ अभिनेता 

 मुकद्दमा बारह साल तक।

न्याय का तराजू 

तोलनेवाले की आँखों में 

 पट्टी,

 न्यायालय जाने धन प्रधान।

 धनियों को वकीलों का तांता।

 न्याय का तराजू 

 आँखों में पट्टी।

 झूठे नकली गवाह 

 देखने में असमर्थ।

  आँखें देखने पर

 सच्चाई मालूम होती।

Face is index of the mind.

 न्याय के तराजू 

 आँखों में पट्टी।

तराजू के पल्डे की बराबरी

 आँखों के देखने से।

 आँखें तो बंद

 उल्टा पुल्टा न्याय।

 अवकाश के बाद 

‌न्यायाधीश का भय।

 इन्साफ  सत्य नहीं 

 अधिकांश मुकद्दमों में।

न्याय के तराजू 

 तोलनेवाले की आँखों में पट्टी।

Monday, December 1, 2025

मेहंदी

 मेहंदी 

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एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

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2-12-25.

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दैनिक चुनौती आजका शीर्षक है मेहंदी।

  मेहंदी  का अपना

   आध्यात्मिक महत्व है।

 मेहरौली का अपना 

  वैज्ञानिक महत्व है।

 आध्यात्मिकता के आधार पर वह महालक्ष्मी का अंश है।

मंगल दायिनी है।

वह कीटनाशिनी है।

 मेहंदी लगाने से

 शारीरिक उष्णता कम होती है।

स्त्रियों के मासिक धर्म

आरामदायक होता है।

वैवाहिक दिन में 

 मरुदानी लगाने से 

 हाथ और उंगलियों की 

 सुंदरता बढ़ती है।

 महालक्ष्मी का अंश

   होने से सर्वश्रेष्ठ है

 मेहंदी लगाना।

 मिस्र देश में,

  अरब देशों में 

 पाकिस्तान में 

 मेहंदी का अलग मेला है।

  सनातन धर्मियों के अनुसार  

 मंगलकारिणी,

 रोग निवारणी,

पैर के टीले मिटानेवाले 

 मेहंदी महीने में 

 दो बार स्त्रयाँ लगाना

 आध्यात्मिक ,

 शारीरिक 

 आर्थिक संपन्नता के लिए 

अति लाभकारी है।

 मेहंदी लगाने का धंधा भी हैं।

 मेहंदी अलंकार के साधन है।

 मेहंदी डिजाइन की पुस्तकें भी प्रकाशित है।

 अतः मेहंदी 

आय का भी साधन है। 

ईश्वरीय वरदान है मेहंदी।


मेहंदी से संबंधित कुछ मुहावरे हैं "पैरों में मेहंदी लगाकर बैठना" जिसका अर्थ है आलस्य या लाचारीवश घर में पड़े रहना, "हाथ में मेहंदी लगी होना" जिसका अर्थ है किसी काम में असमर्थ होना, और "पाँव की मेहंदी छूट जाना" जिसका अर्थ है हर्ज होना या नुकसान होना।

Sunday, November 30, 2025

माटी का मोल

 माटी का मोल।

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एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक ++-----------------------------

1-12-25

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मिट्टी एक अमूल्य वस्तु।

 कुम्हार के जीवनाधार।

 वह कठोर परिश्रम से

 बनाते बर्तन ,मूर्ति का

 मिट्टी के मोल में बेचकर

 अमूल्य कलाकार 

 ग़रीबी में जिंदगी बिताता है।

 किसान है अति मेहनती,

 उसके परिश्रम से उगे

 अनाज सब्जियाँ,

पूंजीवाद लेता

 माटी के मोल में 

 ग़रीबी में किसान।

 व्यापारी बनता मालामाल।

अचानक व्यापार में बर्बाद,

माटी के मोल में दूकान भेजा।

उपरोक्त सब मिट्टी के मोल का अल्पार्थ।

 माटी के मोल का दीर्घार्थ।

 अमूल्य।

 मिट्टी खोदकर 

 बीज बोना

 स्वर्ण , हीरे का मिलना

 मिट्टी का मोल  अधिक।

 मिट्टी की शक्ति महान।

 

दीये जलाइए तो माटी और कुम्हार को ..."माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोहे। एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोहे।" यह कबीरदास का प्रसिद्ध दोहा है, जिसका अर्थ है कि आज कुम्हार मिट्टी को रौंद कर बर्तन बना रहा है, पर एक दिन कुम्हार का शरीर भी इसी मिट्टी में मिल जाएगा और तब वह मिट्टी ही कुम्हार को रौंदेगी। यह दोहा जीवन की नश्वरता और समय के चक्र को दर्शाता है।

जिंदगी

 नमस्ते वणक्कम्।

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जिंदगी  

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1-12-25.

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उपनिषद की बात है,

 जगत मिथ्या, ब्रह्म सत्यं।

धरती की सृष्टियाँ नश्वर।

जन्म मरण के बीच 

 जिंदगी सौ साल ही।

सौ साल जीना मुश्किल।

 सौ साल में शैशवा अवस्था 

 मरकर बचपन।

 बचपन मिटकर लड़कपन।

 लड़कपन मिटकर जवानी

 जवानी मिटकर प्रौढ़ावस्था।

 प्रौढ़ावस्था मिटकर बुढापा।

 सनातन धर्म की चार अवस्थाएँ।

 ब्रह्मचर्य में पढ़ाई

 गृहस्थ में जीवन।

 गृहस्थ जीवन में 

 सुपति कुपति,

 सुपत्नी कुपत्नी

 सुपुत्र कुपुत्र।

संघर्ष मय जीवन।

जगत माया ,

वासनाएँ

 मधुशालाएँ,

 लाल दीप क्षेत्र

भ्रष्टाचार रिश्वतखोरी 

रोग दुर्घटनाएँ

 अंधा बहरा गूँगा

 साध्य असाध्य रोग।

 कर्मफल के सुख दुख

 फिर भी मानव सोचता है

‌उसका जीवन स्थाई।

नरक कहीं नहीं 

 स्वर्ग कहीं नहीं।

 अमीरी में दुखी

 ग़रीबी में दुखी।

 ज्ञान चक्षु प्राप्त मानव

 जिंदगी शाश्वत मानकर

 तुलसीदास के अनुसार 

 काम क्रोध लोभ मद अहंकार 

 ईर्ष्या द्वेश में 

 मानसिक शांति संतोष खोकर

 नरक स्वर्ग वेदनाएँ सहकर

  जिंदगी बिताता है,

  यही जीव न है मानव का।

  राम,कृष्ण के अवतार पुरुष

  संसार को दिखा दिया 

 जिंदगी संकट से भरा।


एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

  


 






 





 







Saturday, November 29, 2025

अकेले क्रांति

 नमस्ते। नमस्कार।

आज के विचार 

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लिखना है कुछ,

 लिखाना है कुछ।

 लिखवाना है कुछ।

 जवानों को निर्भय लिखना है।

 सत्य पर जोर देना है,

पर बेकार कहना बेकार है।

 संसार ही लौकिक माया में मग्न है तो

 उनसे अलग विशिष्टता दिखाना है।

  स्वतंत्रता किसने दिलायी?

बहुत बड़ी क्रांति किसने की?

 बड़े बड़े आविष्कार किसने की?

 मार्ग दर्शक  दार्शनिक ग्रन्थ  किसने लिखी।

 चिकित्सा में क्रांति किसने की।

ये सब 

अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता 

 मिथ्या है।

कवियों की रचनाएँ

 एकांत में,

  एक ही ईश्वर है,

 ईश्वर के मार्ग दर्शक 

 तपस्वी अकेले ही थे।

 बड़े बड़े काव्य

 नोबल विजेता अकेले।

अत: अकेले क्रांति की

 अमर लेखिका स्टो ने।

एकांत तपस्या में 

 वाल्मीकि की रामायण।

सोचा समझा ईश्वर का अनुग्रह।

 आदि शंकराचार्य,

 साईं शीरडी,पुट्टभर्ती

झक्की वासुदेव 

 रमण महर्षि 

अकेले एकांत क्रांतिकारी 

 रमण महर्षि तो

 एक मात्र भक्त 

 तिरुवण्णामलै छोड़कर कहीं नहीं गये।

दिव्य पुरूष अकेले ही

 महान कार्य करते हैं

 वैसे ही आविश्कारक।

 अकेले चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।

 कैसे सार्थक।

 ब्रह्म उपासक स्थाई 

सत्य का मार्ग दर्शक हैं।


एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना

Thursday, November 27, 2025

ईमानदारी

 ईमानदारीका पथ।

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एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

28-11-25

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ईमानदारी  का पथ।

 अत्यंत महत्वपूर्ण।

 आदर्श प्रशासन का मार्ग।

आत्म संतोष का मार्ग।

 आत्मानंद का मार्ग।

तटस्थता का मार्ग

त्याग का मार्ग।

वह मार्ग धन प्रधान नहीं।

सत्य मार्ग,मानवता का मार्ग।

अति हर कठिनतम मार्ग।

उसमें न भ्रष्टाचार,

 न रिश्वतखोर।

कर्तव्य मार्ग ,

 ईश्वर की देन सोचकर 

 कर्तव्य निभाने का मार्ग।

प्रशंसा का मार्ग।

 माया जगत में 

 चलना मुश्किल।

शासक की ईमानदारी 

 जनता को भी आदर्श  बनाएगी।

 माया जगत में 

 ईमानदारी  के लोग हैं,

 पर संख्या में कम।

 अत्यंत शक्तिशाली। पर

 शासक वर्ग, चुनाव क्षेत्र 

 जनता, मतदाता 

  माया जगत में 

 सद्यःफल के लिए 

 ईमानदारी के पथ को

 भूल गए हैं।

 सौ करोड़ रूपये खर्च कर

 बनते हैं सांसद विधायक।

 इतने करोड रूपए 

ईमानदारी कमाई नहीं।

 खुल्लमखुल्ला वोट के लिए नोट, हर कोई जानता है।

 पर मतदाता ईमानदारी को वोट नहीं देते।

 कहते हैं लोकतंत्र की रक्षा।

 30%  वोट नहीं देते।

30% विपक्ष।

  बाकी जो जीतते हैं,

 अपने निजी बल  से नहीं,

  गठबंधन के बल से।

  परिणाम सिद्धांत पर दृढ़ता नहीं,

 चुनाव आयोग,

सतर्कता और 

  भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय"। 

 चुप, चुप,

  शासक के अधीन।

 बदमाशों का भय दिखाना।

 चुनाव आयोग भी शक्ति हीन।

 करोड़ों काले चुनाव के समय पकड़ने की खबर।

फिर भी धन  मतदाता तक।

 चुनाव के पहले ही

 बर्तन का भेंट।

ईमानदारी का पथ आदर्श

 पर माया/शैतान/सात्तान

 अतिज्ञशक्ति शाली।

 ईमानदारी के पथ पर चलने न देती।

 रूप माधुर्य  वेश्यावृत्ति,

 काम क्रोध लोभ ईर्ष्या

 आधुनिक सुविधाएँ।

ईमानदारी पथ पर  बांधा बन खड़ा हैं।

 शिक्षित वकीलों की तांता प्रतिमा,

बेईमानदार को छुडानै तैयार।

लक्ष्मी पुत्र  के बल के सामने  ईमानदारी का पथ

 काँटों से भरा है,

कंकटों से भरा है

चलना अति मुश्किल।

 धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र नहीं 

 ध्यान से देखने पर

 अन्याय की सूची लंबी।








 









 

Wednesday, November 26, 2025

मानव दानव पशु में अंंतर

 मानवता की पहचान।

 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

26-11-25

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मानव असल में पशु।

 पशु समान मानव को

 मानवता ही मनुष्य बनाता है।

 ज्ञान चक्षु प्राप्त  मानव में 

 सभी प्रकार के गुण होते हैं।

 मानव गुणों की तुलना,

 मानव से नहीं जानवरों से ही।

 मानव सर्वा हारी,

नरमाँस भी ग्राह्य।

 ऐसे मानव में मानवता 

इन्सानियत  ईश्वरीय गुण।

सत्य असत्य की पहचान,

 दया, परोपकार, देशप्रेम 

 असाधारण प्रतिभा।

 सिंह के मुख में सिर रखने का अभ्यास।

 हाथी को कठपुतली   बनाने की क्षमता।

 प्राकृतिक की सुविधाओं को कृत्रिम यंत्रों से 

 पाने की क्षमता।

 वातानुकूलित सुविधाएंँ 

 शत्रु को रोकने अस्त्र शस्त्र।

 सुरक्षित इमारतें बनवाना।

 वीर धीर गंभीर साहस कार्य।

 गोताखोर बनकर समुद्र की गहराई की खोज।

चंद्र यान पर उड़कर 

 अंतरिक्ष की खोज 

 मानवता की विलक्षण बुद्धि,

 साहित्यकार बनकर 

 समाज को जगाने की शक्ति।

 नेता बनकर नयी क्रांति 

 नये परिवर्तन।

इन सबके होने पर भी,


 दया,ममता, परोपकार,

 निस्वार्थ सेवा, दान शीलता, तटस्थता,भलमानसाहस,

 देश भक्ति, मातृभाषा प्रेम।  सत्य, अहिंसा,

दधिचि जैसे रीढ़ की हड्डी का दान।

 वही मनुष्य है 

जो परायों के लिए जिए और मरें।

आदि शंकराचार्य 

राजकुमार सिद्धार्थ, महावीर, शीर्डि साईं।

 दानवीर कर्ण।

तुलसीदास, सूरदास,

कबीर, रैदास, भक्त त्यागराज जैसे आदर्श कवि।

 मानव में ये गुण न तो

 मानवता नहीं है तो

 मानव और दानव में 

 मानव और खूँख्वार जानवरों में अंतर नहीं जान।



 

 


  




 

Tuesday, November 25, 2025

यादें संस्मरण

 यादें संस्मरण।

 मैं आठवीं कक्षा में पढ़ रहा था।

 मुझे पैर गाड़ी चलाना नहीं आता।

हम हर इतवार को हमारे घर से पाँच मील की दूरी पर शक्ति विनायकर मंदिर अपने दोस्त नागराजन के साथ ही जाया करते थे। 

 कारण मंदिर घर से पाँच छे मील  की दूरी पर था। नागराज पैर गाड़ी चलाता था, पैर गाड़ी की दूकान भी थी।

 उसके पीछे के आसन पर बैठकर ही जाया करता था। मंदिर जंगल में था।

आसपास कोई घर या दूकान  नहीं था। 

अचानक टयर पर काँटे के चुभने से 

 पंचर हो गया। पर हवा थी।

 अनुभव हीन मैं काँटे को निकाला तो

पूरी हवा निकल गई। दोस्त को गुस्सा हुआ। काँटे को न निकाल ने पर धकेल कर जाना आसान है।   फिर मंदिर दो मील और वापस पाँच मील साईकिल 

धकेल कर आना पड़ा।

कभी गाड़ी नाव पर कभी नाव गाड़ी पर।

 यह घटना भूल नहीं सकता।

 लेकिन मंदिर में भगवान के दर्शन एक जिला देश के आने से  विशेष अभिषेक आराधना शांति प्रद संतोष प्रद रहा।

 वह बड़ी शक्ति की मूर्ति थी, उसकी गोद पर गणेश की मूर्ति थी।

 नाक में नक बेसरी पहनाने एक छेद था। उसमें हीरे के नथबेसरी चमक रही थीं। कानों में हीरे। स्वर्ण कवच।

 जंगल में ऐसी  दिव्य मूर्ति।

 वही शक्ति विनायक का हृदय स्पर्शी अंतिम दर्शन था।  उसके बाद मैं  नौकरी  के मिलने के बाद  वह मंदिर न जा सका। लेकिन वह दिव्य मूर्ति आँखों में बस गयी।  कबीर की यह दोहा याद आती है --

नयनों की करी कोठरी, पुतली  पलंग बिछाय।

पलकों की चिक डारि के,पियको करो रिझाय।।

 सांत्वना केलिए 

 तेरा साईं तुझमें, ज्यों पुहपन में वास।

 अद्वैत भावना 

 लाली मेरे लाल  की,

जित देखो तित लाल।।

लाली देखन मैं गयी,

मैं भी हो गई लाल।

 अहं ब्रह्मास्मी। आत्मज्ञान।

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना। यादें, संस्मरण।

Sunday, November 23, 2025

आस्तीन के साँप

आस्तीन के खंजर।
एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई।
24-11-25
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भारत भूमि 
वीरों की भूमि।
 वेद उपनिषद की ज्ञान भूमि।
फिर भी विदेशों के शासन।
मुट्ठी भर के अंग्रेज़ी 
 देश के शासक बने।
 सिकंदर की चढ़ाई में 
 राजा पुरुषोत्तम का पराजय।।
  भक्ति के क्षेत्र में बाहृयाडंबर।
 मधुर प्रवचन,
 आदर्श प्रवचन।
बाह्याडंबर के आश्रम।
आस्तीन के खंजर।
 आस्था राम पर,
 आशा राम पर
 पर होते आस्तीन का खंजर।
 मंदिर छोटा,
 इर्द-गिर्द बिक्री 
 नकली चंदन नकली रुद्राक्ष।
 मंदिर भक्ति का केंद्र नहीं,
व्यापारिक केंद्र,
 आस्तीन का साँप।
काशी के ठग
 अति प्रसिद्ध।
  भारत के इतिहास में 
 विदेशियों के शासन।
 कारण  स्वार्थ 
आस्तीन के खंजर अधिक।
मोबाइल में अति सुन्दर विज्ञापन,
 नकली चीजों की बिक्री।
वे भी होते हैं आस्तीन के खंजर।
 चुनाव क्षेत्र में तो
 भ्रष्टाचारी की विजय।
ये भी अस्तीन के साँप।
रिश्वतखोरी अधिकारी 
वे भी आस्तीन के खंजर।
रिश्वत को रोकने एक विभाग।
 वह किस काम का पता  नहीं,
हर सरकारी क्षेत्र में 
 आस्तीन के खंजर अधिक।
  कदम कदम पर आस्तीन के साँप।
कोचिंग सेंटर  में 
 आस्तीन के खंजर।
अदालत  में न्याय में देरी।
 वहाँ भी आस्तीन के खंजर अधिक।
 फूँक फूँककर आगे कदम 
 रखना,
 पौराणिक कथाओं में 
आस्तीन के खंजर अनेक।
देशोन्नति के मार्ग का रोडा 
इन आस्तीन के खंजरो के कारण।
जनता जान बूझकर 
 आस्तीन के खंजरों 
 का साथ देती हैं 
 मतदान देकर।

Saturday, November 22, 2025

मन

 मन की उड़ान।

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एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

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23-11-25

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मनसूबे बाँधना,

सफलता का मार्ग।

 जिज्ञासु मानव

 धन हो या न हो

 राजमहल बनवाने की चाह हवामहल 

 मन की उड़ान।

 गौरीशंकर की चोटी पर

 पहुँचने के सोच विचार।

 धन न हो या न हो

 दुनिया की सैर की कल्पना। 

 मन की उड़ान में 

 गोताखोर बनने की कल्पना,

चित्रपट देखते देखते 

नायक नायिका बनकर

 नाचने गाने की कल्पना।

अलाउद्दीन अद्भुत दिया 

 पाकर  मनमाना करने

 मनोवांछित वस्तुएं

 प्राप्त करने मन की उड़ान।

 लता मंगेशकर,

 मुहम्मद रफ़ी,

 एस. पी।बी जैसै

विश्वप्रसिद्ध गायक बनने की मनोकामना।

भगवान के नाम जपकर 

 सूर तूलसी जैसै

महाकाव्य रचने

 मन की उड़ान।

कल्पना के घोड़े

 दौड़ाने,

दुर्लभ कार्य करने,

प्रधान मंत्री बनकर 

 देश की प्रगति करने,

 न्यायधीश बन कर

 सही न्याय देने

 मन की उड़ान।

  बड़े बड़े कारखाने खोलने,

 विश्व के अमीरों की सूची में 

अव्वल आने 

 मन की उड़ान।

 मनकी उड़ान न तो

 न आविष्कार 

 न इलाज की क्रांति 

 न संगणिन

 न विमान 

 न साहित्य।

न उपनिषद वेद 

न कुरान, न बाइबिल।

न गगनचुंबी इमारतें।

 न कृषी क्रांति।

 मन की उड़ान 

 सकारात्मक और नकारात्मक।

 मन की उड़ान में 

 मानवता का विकास।

 दानवता का नाश।

 मानवता के विकास में 

अहिंसा, शांति, समरसता 

 वसुधैव कुटुंबकम् के विचार।

 मन की उड़ान न तो

 मानव पशु बराबर।

 


 







 

 



 



Thursday, November 20, 2025

अमृतोपम

                अमृत।

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एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

21-11-2025

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अमृत संदर्भ के अनुसार 

 अमृत का प्रयोग।

जो अति स्वादिष्ट,

 अति दूर्लभ,

 देवामृत 

 अमृत स्वरूप 

 पवनी क्षे तो क्षेत्र में 

 पंचामृत,

केला, शक्कर, मिस्री,शहद, इलायची

 मिलाकर देव प्रसाद।

प्रवचन के भावामृत,

मंदिर का प्रसाद अमृत।

 गुरु के उपदेश अमृत,

 दादा के लिए दादी का 

काफ़ी अमृत।

 शिशु के लिए 

 माँ का स्तन्य दूध अमृत।

 प्रेमी के लिए प्रेमिका का चुंबन अमृत।

पिता के लिए माँ की चटनी अमृत।

 दर्शनामृत,

 अमरता देने अमृत ।

गानामृत,

 देव असुर के मंथन में 

 मिले अमृत।

 अमृत बराबर अमृत।

दोस्ती अमृत ,

गो रस अमृत।।

अमृतोपम अमृत भाषण।




 



 


Wednesday, November 19, 2025

प्राकृतिक देन

 प्रकृति का वरदान

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एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक 

20-11-25

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प्रकृति के वरदान 

 मानव स्वभाव,

 पशु स्वभाव,

 पक्षी स्वभाव, 

 वनस्पति जगत,

कीड़े मकोड़े,

 अंडज,

 पिंडज 

 स्वेतज

उद्भिज्ज।

 नदी

नाले

झील

जलप्रपात 

स्त्रोत 

समुद्र 

समुद्र के जीव

सूर्य, चंद्र, नक्षत्र 

खान

 सोना,

हीरा

 नवरत्न

कोयला

जड़ी बूटियाँ

अनाज,

 धान, गेहूंँ

पालतू जानवर।

जन्म जीवन मृत्यु।

कीटाणु रोग ,

साध्य रोग ,

असाध्य रोग।

 बुद्धि लब्धि,

 प्रतिभाशाली व्यक्तित्व।

 मधुर ध्वनि।

कठोर ध्वनि।

 मौसमों  का परिवर्तन 

 मौसमी फूल फल।

रंग-बिरंगे पक्षी।

  ऊँचे ऊँचे पहाड़,

 बर्फीला प्रदेश दक्षिण ध्रुव 

 रेगिस्तान,

 प्राकृतिक शोभा।

मानव के विभिन्न रूप,

 जलवायु के अनुसार 

 भोजन, पोशाक, आवास।

बर्फीले प्रदेश का इग्लू,

 ठंडज्ञप्रदेश के लकड़ी घर

   प्रकृति का संतुलन न तो

  जीना मुश्किल,

   प्रदूषित  प्रकृति 

   प्रकृति के  प्रकोप से

  बचना मानव बुद्धि  से असंभव।

 सुनामी,भूकंप, दावानल

 ये सब प्रकृति को

 मानव अपने 

स्वार्थ के लिए 

 बिगाड़ना।

 परिणाम स्वरूप 

 जल, वायु, गर्मी का बढ़ना, 

क्षेत्र के अनुसार मानव गुण।

 प्रकृति के कारण,

 काम, क्रोध ,ईर्ष्या, प्रेम 


वीर धीर गंभीर कायरता,डरपोक।

मांसाहारी,

शाकाहारी,

 सर्वा हारी।


प्राकृतिक वरदान 

 वर्णनातीत।

प्राकृतिक की रक्षा मानव धर्म।

 प्राकृतिक पहाड़, जंगल, झील  का नदारद करना

 मानव का तात्कालिक सुख।

प्राकृतिक कोप

 जल प्रलय, वायु प्रलय, भूतल प्रलय।

 शपथ लेना है

 प्राकृतिक रक्षा करना।

 

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।



 



 

 

 


  


 








 


Tuesday, November 18, 2025

मन सागर का मंथन

समुद्र मंथन।

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

19-11-25

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  संसार सागर में 

 विष है,अमृत है,

 देव हैं, असुर हैं,

 नास्तिक है, आस्तिक है

देशप्रेमी है, देश द्रोही हैं 

 देवों और असुरों ने

 समुद्र मंथन किया ।

 विष और अमृत मिला।

भगवान शिव विष पीकर

 पार्वती के गला दबाने से

 नीलकंठ महादेव का नाम पाया।

 चिरकाल से अत्याचार अनाचार, हिंसा अहिंसा 

 त्यागी, भोगी सब के सब

आपसी संघर्ष होते रहते हैं 

मन  में सदा तरंगें 

उठती रहती है,

 मन  विशाल सागर के समान,

 नये नये विचार,

 नयी नयी सोच

 जिज्ञासा,

 भाव, मनोविकार 

 अहंकार, काम, 

 क्रोध,मंद लोभ,

प्रतिशोध की भावना,

ईर्ष्या, पद का लोभ,

नाते, मित्र, 

रिश्तेदारों का दाह,

हर पल विचार तरंगें 

नींद में शुभ अशुभ स्वप्न,

नींद से उठते ही स्वप्न के 

चिंतन, रोग साध्य असाध्य रोग का चिंतन।

आर्थिक कठिनाइयाँ,

 सपूत कुपूत का चिंतन।

 मन के अथाह सागर में 

शांति पाने 

मन का मंथन करके,

 भक्ति ध्यान में लगाकर 

 सागर की तरंगों को

मिटाकर 

आत्म ज्ञान पाना है।

 आत्मा को पहचानना है।

वही चिर शांति और संतोष  का मार्ग,

 हमारे ऋषि मुनियों ने

दिखाया है।

एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 



 




 



 


 


 

 

 



Monday, November 17, 2025

परिवर्तन

 परिवर्तन का प्रकाश।

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एस.अनंंतक‌ष्णन, चेन्नई तमिलनाडु 

18-11-25+

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परिवर्तन प्रकृति की देन।

दो सूक्ष्मबिंदुओं के

 मिलन  ।

न रूप न आकार

दस महीने में 

 शिशु ।

 अद्भुत आश्चर्यजनक

 परिवर्तन।

छै ऋतुओं के परिवर्तन।

शुक्र पक्ष कृष्ण पक्ष परिवर्तन।

सूर्योदय प्रकाश ।

 परिवर्तन बीज,

अंकुर पौधे,वृक्ष

 कली,फृल ,

 कच्चा पक्का फल।

तितलियों कीजीवनी।

 पत्थर रगड़कर आग,

 लकड़ी जलाकर आग,

चर्बी से दिया,

 मिट्टी के दीप,

 तेल से दिया।

गेस लइटर,

बिजली की रोशनी,

सूर्य ऊर्जा 

शिलालेख,

ताड़ के पत्ते लेख

 छापेख़ाने का आविष्कार।

ध्वनि संकेत,

तार,

दूरभाष 

 मोबाइल 

संगणक

 अंतरजाल 

 बैल, घोड़े,गधे ,

 तांगा, बैल गाड़ी,

मोटर गाड़ी, पैर गाड़ी,

 बस, रेल, विमान, हेलिकॉप्टर 

 यातायात के परिवर्तन।

 मानव जीवन अति सुविधा जनक।

 परिवर्तन प्रकाश में 

कितना आनंद।

पाषाण युग से वैज्ञानिक युग,

 चिकित्सा प्रणाली 

 शल्य चिकित्सा,

अंग दान, नेत्रदान 

 स्केन, रोग निदान 

 सब परिवर्तन में 

 प्रकाश ही प्रकाश।

 पर मानव जीवन परिवर्तन में 

बाल रंग परिवर्तन,

बालों का झड़ना

बुढापा , असहाय 

 स्वर्ग-नर्क वेदनाएँ।

परिवर्तन के शोक,

मानव का निधन।

 पुराना मिटना

 नया  होना

 परिवर्तन के प्रकाश अंधकार।

 यही सूक्ष्म ब्रह्म लीला।

एस.. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।

Sunday, November 16, 2025

परिवार कुटुंब आधुनिकता

 परिवार का महत्व

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ऍस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु 

17-11-25

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परिवार  खून से संबंधित 

 माता-पिता, दादा-दादी,

 परिवार एकैल परिवार 

 संयुक्त परिवार,

 विस्तारित परिवार।

परिवार के सदस्य एक दूसरे  को अधिक चाहते थे।

 आजकल तो संयुक्त परिवार कम हो रहा है।

 पाश्चात्य संस्कृति और अंग्रेज़ी शिक्षा के प्रभाव।

 परिवार माने माता-पिता बच्चे।

 इतिहास और पौराणिक कथाओं से संयुक्त परिवार 

 में एकता नहीं रही।

 रामायण में तीन पत्नियों के महाराजा दशरथ दुखी थे।

राम को वनवास जाना पड़ा।

महाभारत की कथा अलग-अलग।

 कौरव और पांडवों में 

एकता नहीं ,

  ध्रुव की कहानी में 

 सौतेले माँ के ईर्ष्या दाह।

आधुनिक काल में 

 सहनशीलता कम।

 एक कमाता,

 दुख सुख सहकर 

 आज्ञाकारी पुत्र पुत्री के रूप  में रहते थे।

 पारिवारिक परंपरागत 

  धंधा करते थे।

 आजकल की शिक्षा,

 सब को अपने गाँव शहर 

 जोड़ने को विवश करती है।

 विदेशी नौकरी संयुक्त परिवार की व्यवस्था को

 समूल नष्ट कर रही है।

 विदेशी नौकरी ही नहीं,

 प्रांत  छोड़कर अन्य प्रांतों की नौकरी 

अपने गाँव छोड़कर सुदूर 

 शहर में नौकरी,

 संयुक्त परिवार रह नहीं सकता।

 बड़े भाई उच्च पद पर

 छोटे भाई निम्न पद पर।

शादी होने के बाद 

 हीनता-ग्रंथि ,

 परिणाम माता-पिता 

 वृद्धाश्रम में।

 आधुनिक व्यवस्था में 

 इंदिरा गांधी जी  पति से अलग रही।

 मोदीजी पत्नी से अलग

 अंतर्जातीय विवाह,

 अंतर्राष्ट्रीय विवाह,

 परिवार कहाँ?

  तलाक शादी।

 माता-पिता  की बात न मानना,

 आजकल तो परिवार परिवार नहीं,युद्ध क्षेत्र।

 कारण आय।

 नये नये आविष्कार।

 नयी नयी माँगें

 अब एकैल परिवार ही शांति।

 संयुक्त परिवार में 

 दस सदस्य हैं तो 

 एक समान खाना,कपड़ा, 

 घर की सुविधाएँ।

 छिपकर बढ़िया खाना।

  हर सदस्य  की अपनी इच्छा, महँगी कपड़ा पहनना, वाहन खरीदना 

 हर बात पर चर्चा।

 राम को वनवास करना पड़ा।

 कृष्ण को नंद के परिवार में पलना पड़ा।

 अपनी मृत्यु के भय से

 बहन बहनोई को जेल में डालना,

 परिवार का विस्तृत रूप

 कुटुंब , वसुधैव कुटुंबकम्।

इसमें खून का रिश्ता नहीं,

 मानवता और भ्रातृ भावना।

 परिवार में अशांति ही शांति।। शांति भंग बुद्धि लब्धि के कारण।

 अतः परिवार के भाई भाई का संबंध  , त्याग, 

आजकल नहीं के बराबर।

 एकैल परिवार ही शांति।

वह भी प्रेम विवाह,

एक पुत्री प्यार के चंगुल में 

 माता-पिता दुखी।

 अर्थ प्रधान जग में 

 पारिवारिक जीवन अनर्थ प्रधान।

 


 




 


Friday, November 14, 2025

स्वार्थी

 स्वार्थी मानव।

 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु।

15-11-25.

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स्वार्थी मानव,

 निस्वार्थी मानव।

 सोचो स्वार्थी,

 तुम अपने निजी लाभ के लिए 

 भ्रष्टाचारी बनते हो,

रिश्वतखोरी बनते हो,

 लोभी बनते हो,

ईर्ष्यालू बनते हो।

 परिणाम सद्यःफल।

 बड़े बड़े राजाओं के राजमहल,

 अश्वमेध यज्ञ द्वारा 

 विजयी राजा,

 विश्वविजयी  बनने कामना  के सिकंदर।

 धन जोड़ने वाले धनी,

 सबका जीवन अस्थाई जगत में  बेकार ।

 अब राजमहल नहीं,

 पद नहीं,

 धन से वे जिंदा रह न सके। 

  मिथ्या जगत, 

 स्वार्थियों के कारण

 देश की प्रगति रुक जाती।

 देश द्रोही, आतंकवादी के कारण बेचैनी फैल जाती।

  स्वार्थी कंजूसी भी होते हैं।  

 उसका नाम बदनाम हो जाता।

 निस्वार्थ भाव के मनुष्यों से ही देश का सर्वांगीण विकास होता है।

 भारत में विदेशियों के आक्रमण, शासन,

 देश भक्ति रहित स्वार्थी 

 वेतन भोगी द्रोहियों के कारण ही।

 मुट्ठी भर के विदेशी।

सोचो, समझो,जागो,

  ईमानदारी से निस्वार्थ भाव से अपना कर्तव्य निभाओ। 

भारतीय सरकारी योजनाएँ स्वार्थी,

 अधिकारियों के

 खुशामद के कारण 

चौपट हो जाती।

सनातन वेद अनंत जगदीश्वर

 .

: 4716. निजी अस्तित्व, के बने आत्मा में विश्वास

या अनुभव न होने से ही प्यार के लिए, धन के लिए

शांति के लिए, स्वतंत्रता के लिए अपने से अन्य

रूप में देखना सब  स्वयं ही है को न जानकर

उनको भेद बुद्धि के साथ अन्य रूप में देखकर

उनसे याचना करके 

मन की एक प्रेरणा होने कीयाचना करना आदि करते हैं। इसलिए हर एक जीव कोएहसास करना चाहिए कि स्वयं जाननेवाले अर्थात अपने ज्ञान के नियंत्रित करके स्वयं देखनेवाले, स्वयं जाननेवाले, अर्थात अपने ज्ञान से नियंत्रण होनेवाले सबका अर्थात शरीर का प्रपंच का परम कारण मैं है का अनुभव करनेवाला स्वयंभू रूपी अखंडबोध स्वयं  ही है। जान सकते हैं कि बोध रूपी अपने  अखंडता से न हटकर रहते  समय निराकार, निश्चलन, सर्वव्यापी परमात्मा रूपी अपने में दीखनेवाले नाम रूप शरीर और सांसारिक रूप,

 रस्सी में दीखने वाले साँप के जैसे ही असत्य है। तभी परमात्मा बने अखंड बोध स्वभाव परम शांति, परमानंद को निरुपाधिक रूप में स्वयं अनुभव करके परमानंद रूप में स्थिर खडा नुचहीं रह सकता है।

[4717. 

 सत्य नित्य है को जानना चाहें तो  सत्य रूपी मैं  के बोध की उत्पत्ति की खोज करनी चाहिए।तभी समझ सकते हैं कि अपने में अपरिहार्य सत्य ही बोध है। वह बोध बना नहीं है, वह स्वयंभू है।  जो बोध स्वयं है, वह स्व अनुभव आनंद रूप में है।  स्वयं मैं कौन है? सत्य क्या है?आत्मा क्या है? बोध क्या है? ब्रह्म क्या है? ब्रह्म कौन है? आदि की खोज न करके इन सबको जानने की इच्छा रहित, अनंत कोटि जीवात्मा की भीड़ ही यह सारे ब्रह्माण्ड में जी रहे हैं! सृष्टि के आरंभ में ही ब्रह्म शक्ति माया भेद बुद्धि को प्रारंभ करने लगा है। अर्थात प्रलय अंत होकर प्रभाव उत्पन्न काल से।  धर्म अधर्मों  को, पाप-पुण्यों को, अच्छाइयों और बुराइयों को, देव असुरों को सृष्टि करता रहता है।

आदिकाल से मालिक -मज़दूरों के आपसी संघर्ष भौतिक लोक में, संन्यासियों का आपसी संघर्ष आध्यात्मिक लोक में, देव -असुरों का आपसी संघर्ष देवलोक में हो रहे हैं। असुरों से भयभीत होकर देवों का भागने का इतिहास, इह पर लोक में देखकर सुनकर जानकर अनुभव करते हुएण् सभी जीव भूमि हो या स्वर्ग हो लोग जीते हैं।  जो भी सोच विचार करें, ये संघर्ष बंद होगा नहीं। कारण ये सब कोई युक्ति रहित ईश्वरीय शक्ति माया रहित होने के जैसे लगने वाले दृश्यों को बनाकर दिखानेवाले एक इंद्रजाल मात्र ही है। 

 इसलिए विवेकी आत्मज्ञानी कोई भी संसार को सोचकर दुखी मत होंगे। कारण यहाँ मैं नामक एक ही अखंड बोध मात्र ही परमानंद स्वभाव के साथ स्थिर खड़ा रहता है‌ यही शास्त्र सत्य है।


4718.  हर एक जीव और वह जीव स्वयं जीव सीखने पर भी हर जीव ईश्वर ही है। वही ब्रह्म है।

वह परमात्मा ही है। अर्थात परम रूपी ज्ञान ही है। अर्थात मैं है का स्वयं अनुभव करनेवाला अखंड बोध ही है। मैं  है का  अनुभव  जिस वस्तु में है, वही सत्य है। इसलिए जीव सत्य ही है। 

कोई  ईश्वरीय स्थिति को न चाहने पर भी, मैं साधारण मनुष्य जीवन  रूप में रहना काफी है,

 कहने पर भीज्ञवह अनंत, अनादि, सर्वव्यापी, परमात्मा बने बोध ही है। कल आज कल सदा वह जीवन वैसा ही है।  यह समस्या उत्पन्न होना बोध के लिए नहीं है,  बोध शक्ति माया ने बनाई है। बोध शक्ति माया बढ़ाकर  दिखाया प्रपंच, प्रपंच के जीव, जाने अनजाने,वह करनेवाले कर्मगति, उनका लक्ष्य, आनंद स्वरूप अखंड बोध ही है। कारण प्रपंच, प्रपंच रूप, शरीर रूप बदलते रहते हैं। पचकर नाश होते हैं। इसलिए 

वह परम कारण होने साध्य नहीं है। इसलिए प्रपंच का, जीवों का, परम कारण जन्म मरण रहित नित्य रूप  सर्वव्यापी आनंद स्वभाव के साथ जुड़े अखंड बोध है। उसका पता लगाने तक ब्रह्मांड में सभी जीवात्मा की हम स्थिति रहित उनके मन को  सम दशा में लाने का मार्ग ही अनादि काल से मनुष्य, देव सब ढूँढनेवाले भाग के रूप में ही यह संघर्ष होता है। हर एक प्रजा अथवा राजा चाहते समय राजाओं के द्वारा  भरने के लिए ही राजा चाहते हैं। मज़दूर मालिक बनने की इच्छा करते समय मालिक मात्र बढ़ंँने मालिक निश्चय करते हैं। वैसे ही प्रजाएँ, राजा के विरोध में बदलकर राजा को जेल में डाल कर 

मंत्री राजा बनते हैं।  इस प्रकार इतिहास का एक पुनरावृत्ति इहलोक में,परलोक में अनादिकाल 

से चलता रहता है।  माया को एक लक्ष्य मात्रा है।

असत्य को सत्य रूप दृश्य में दिखाकर मनको असम बनाकर दुखी बनाना। यही माया का इंद्रजाल होता है। इस माया तंत्र को जाननेवाला जीव ही उसका यथार्थ स्वरूप ईश्वरत्व को पुनः प्राप्त कर ईश्वर स्वभाव परमानंद का अनुभव करेगा।

4719. काल देश कै निमित्त रहनेवाला,  उत्पन्न होकर  अस्थिर होकर स्वयं है का अनुभव रहित  जड़ के लिए यह अद्भुत, आश्चर्य रूपी इस प्रपंच की सृष्टि नहीं कर सकता।  अर्थात एक मोटर वाहन में अनेक वस्तुएँ हैं।  ये सब स्वयं बना नहीं। उसके पीछे उन्हें बनाने एक व्यक्ति रहा होगा। लेकिन उस वाहन और उसको बनानेवाले का कोई संबंध नहीं है।  आवश्यकता होने पर 

उसके बनाये  व्यक्ति कार चला सकता है।

 वैसे ही कार से बाहर आकर  उस के पास खड़ा रह सकता है। परस्पर बंधित होकर काल देशों के साथ जुड़े प्रकृति को एक अमुक नियम मैं अर्थात भूमि को स्वयं घुमाने , सूर्य को प्रकाशित कराने, चंद्र में चाँद को प्रकाशित कराने, वर्षा काल में पानी बरसाने, खेत में धान पैदा कराने, पेड पर फूल खिलाने, कच्चा पक्का फल उत्पन्न करने, 

 स्वयं अस्तित्व हीन जड़ प्रकृति के लिए बाध्य नहीं है। लेकिन सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्वव्यापी, सर्व अंतर्यामी जन्म मरण रहित, अनश्वर, नित्यरुपी, सर्वस्वतंत्र बोध रूप परमात्मा को ही साध्य होगा। परमात्मा माया के द्वारा निश्चित रीति में प्रपंच में हर एक कण, हर एक धर्म का अनुष्ठान करते हैं।  सबको उसका परमात्म निश्चित धर्म होता है। वैसे ही हर एक जीव में 

अर्थात मनुष्य में वह निश्चय होता है। 

वैसे निश्चित परमात्मा बने पर ब्रह्म बोध रूप में ही हर एक जीव में स्थिर स्थित है। 

सृष्टि रूपी जीवन सृष्टा को न भूलकर तैलधारा के जैसे दृष्टा को स्मरण करते हुए हर एक दिन अपने को अनुमदित कर्म करते हुए सृष्टि और दृष्टा दो नहीं, एक ही है का एहसास कर सकता है। इसीलिए भगवद्गीता में श्री कृष्ण परमात्मा अर्जुन से   कहते हैं कि अपने ही का शरणार्थी बनकर अपने से दूसरों के संग रहित रहने पर मैं और तुम दो नहीं, एक ही है। कृष्ण के मैं कहते समय  समझना चाहिए किज्ञरूप रहित, जन्म मरण रहित, सर्वांतर्यामी, सर्वस्व बोध रूपी परमात्मा ही है । वह परमात्मा ही सर्वचराचरों की क्षमता और ज्ञान होते हैं।‌यह भी जानना समझना चाहिए कि इस लोक में जो भी जो कुछ भी करें, उनके जड़ शरीर में जुड़कर बोध रूप भगवान ही आकाश के जैसे निस्संग रहकर 

सब कुछ करते हैं। कारण परमात्मा रूपी एक ही ब्रह्म मात्र ही सर्वत्र विराजमान हैं, वे  निश्चलन 

ब्रह्म हैं परमानंद के रूप में शाश्वत है।  वह ब्यहु जीव रूपी मैं है को एहसास करके अनुभव करना ही आत्मसाक्षात्कार होता है।  अर्थात परमात्मा के हाथ की कठपुतली ही सभी जीव हैं। वह जब आत्म साक्षात्कार होता है,तब मालूम होगा।


4720.मूर्ती की आराधना करनेवाले, आत्मोपासक दोनों में अंतर यही है कि 

रूप आराधना करनेवाले को  जीव के बारे में 

शरीर के बारे में सही ज्ञान नहीं है। ज्ञान के विकास में ही सुख  बढ़ता घटता हैं।

जब तक एक भक्त नहीं जानता कि आत्मा ही यथार्थ देव हैं, तब तक संकल्प देव देवियों की प्रार्थना करके ‌मिलनेवाले एक मिनट सुख को ही भोग से सकता है। उसी समय नाम रूप सब माया जानते समय भक्त की भक्ति दृश्य को छोड़कर दृष्टा रूपी आत्मा की ओर जाएगी।

वैसे आत्मदेव को आराधना करने में लगते ही 

आनंद का निवास स्थान आत्मा ही है को जान सकते हैं। उसे जाननेवाला ही आत्मोपासक हैं।

तैलधारा के समान आत्मबोध मन में होते समय जीवभाव भूलकर ब्रह्म बोध  होगा।  आत्मा ब्रह्म है का एहसास करनेवाला मनुष्य ही ब्रह्म है का एहसास कर सकते हैं। साथ ही देव स्वभाव परमानंद को भोगकर परमानंरूप में स्थिर खड़ा रह सकते हैं।

Tuesday, November 11, 2025

युद्ध शांति

 युद्ध और शांति 

 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।


 युद्ध क्या है?

 क्यों है? निर्दयता क्यों है?

 युद्ध के बाद शांति है क्या?

 कुरुक्षेत्र धर्मक्षेत्र नहीं।

 षडयंत्र की विजय।

 क्या विजय के बाद पांडव 

 शांति और संतोष  में  थे क्या?

‌रामायण में रावण विजय के बाद भी

 राम को भी शांति नहीं है,

सीता को शांति नहीं।

 वीरगाथाकाल काल की वीरता 

धिक्कार है,देश की भलाई के लिए नहीं,

 राजकुमारी के मोह में 

 व्यक्तिगत सुख के लिए 

 हजारों सिपाहियों की मौत।

 उनके बच्चे अनाथ।

 राजा की खुशी ।

 वह वीरता धिक्कार है।

 अशोक को युद्ध में आनंद।

 युद्ध क्षेत्र के शवों को देख 

  मानसिक परिवर्तन ।

अशोक हत्यारा,

 सेवा धर्म अपनाकर 

 महान अशोक बना।

 अहंकारी, आतंकी, लोभी,

 कामी के आक्रमण,

 परिणाम हजारों की मृत्यु।

  सिकंदर के आक्रमण से

 उसका विश्वविजयी स्वप्न 

 दांड्यायन के त्याग मय जीवन 

से परिवर्तन।

 माया  मरी नश्वर मिथ्या जगत।

 मानसिक  युद्ध संघर्ष शांति

 कहीं भी नहीं, 

 युद्ध शांति के लिए।

 तब हज़ारों की मृत्यु,

 महा नाश,  घाटा।

 शांति कहाँ?

 प्रतिशोध की भावना।

एक दिन दावानल बनेगा।।

 कभी युद्ध और शांति 

का  रिश्ता छत्तीस का ही।

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 







 

 

 

  

 


 







देश का ऋण

 मातृभूमि का कर्ज।

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एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक 

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111125

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जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।

आज़ादी से जीने,

 मन चाहा धंधा करने

 घर बनवाने

 आ सेतु हिमाचल 

जहाँ चाहें, रहने

मन चाहा स्नातकोत्तर बनने,

सभी प्रकार के मूल अधिकार,

प्राप्त सुखप्रद 

मातृभूमि के प्रति

 कर्ज चुकाना,

इसकी सेवा,

 सर्वांगीण विकास में 

मन लगाना,

 हर एक देशवासी का

कर्तव्य है।

देश के प्रति जागरूक रहना, रिहाना 

जागना जगाना,

हमारा फर्ज है।

 देश की सुरक्षा में लगना

 जय जवान जय किसान का नारा लगाना,

 पालन करना हर भारतीय का फ़र्ज़ होता है।

Sunday, November 9, 2025

एकता

 एकता की डोर 

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एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई

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 नमस्ते, वणक्कम् 

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मिल्लत में ताकत।

 एकता में बल।

वसुधैव कुटुंबकम् 

 भारतीय वेद वाक्य।

जय जगत भारतीय 

 ऋषि-मुनियों का नारा।

भारत में विविधता ही विविधता,

प्राकृतिक बाधा,

जलवायु के अनुसार 

 पोशाक, खान-पान में फर्क।

 भाषाओं कै भेद।

इन भेदों के बीच 

 यहां एकता का बल है तो

 चिंतन में, विचारों में 

 भक्ति में, आध्यात्मिक चिंतन में।

 देश में नहीं एकता,

 देश में नहीं देश प्रेम।

छोटे छोटे राज्य,

 आपस की लड़ाई 

 भारतीय वीरता,

 धिक्कार है

राजकुमारी के प्रेम के मोह में 

 भाई भाइयों के ईर्ष्या के कारण,

 भाई के  विरोधी भाई बना।

 चंद विदेशियों के चाँदी के

 टुकड़ों के लिए,

 गुलामी नौकरी के लिए,

हर, लालबहादुर, राम बहादुर उपाधि के लिए 

‌अपनी पोशाक ,

 अपनी भाषा भूल

 अपनी संस्कृति , कदाचार तजकर अंग्रेज़ी सीखी।

 संस्कृत भाषा भारतीय एकता का मूल,

 मृत्यु भाषा बना दी।

 जर्मन के विद्वान 

संस्कृत सीखी।

 चिकित्सा क्षेत्र में 

 लागू किया।

 अंग्रेजों ने की भाषा नीति,

 राग-द्वेष 

 मजहबी नफरत 

 एकता के अभाव में 

 गुलामी को अपनाया।

 भारतीयों में जब एकता आयी,

 विदेशी काँपने लगे।

 स्वतंत्रता संग्राम में भी

 नरम दल, गर्म दल

 यह भिन्नता देश की

 स्वतंत्रता में सफल रही।

 मिल्लत में ताकत,

एकता का बल

 स्वतंत्रता मिली।

 पर अंग्रेज़ी अंग्रेजियत नहीं गई।

 सोचो, समझो, विचार करो,

 भारतीय प्रगति में बाधा

प्रांतीय दलों का प्रांतीय मोह में राष्ट्रीय करण का विरोध,

 राष्ट्रीय शिक्षा का विरोध,

 कुर्सी पकड़ने की इच्छा से

 भ्रष्टाचारी का तांडव नर्तन।

  भारतीय इतिहास में 

 एकता जब हुई,

तब देश की प्रगति ।

 सोचो समझो विचारों।

 जागो जगाओ 

 नारा लगाओ

 एकता में बल है।

  आ सेतु हिमाचल की एकता, विदेशियों का डरावना है।

मिल्लत में ताकत है।

जय भारत। जय एकता।।

 एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

ख्वाहिशें

 नमस्ते वणक्कम्।

 ख्वाहिशें।

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हर जन्मे जीवों को

‌अपनी  अपनी ख्वाहिशें।

 तितलियों की ख्वाहिश 

 फूल फूल पर मंडराना।

 पतंग की ख्वाहिश दीप शिखा के 

 मोह से  उस पर गिर प्राण त्यागना।

  हर पशु पक्षी की ख्वाहिशें,

 वर्ग विशेष एक ही है। पर

‌मानव वर्ग की ख्वाहिश क्या है?

 पता लगाना अति मुश्किल।

 एक लड़की से प्यार करने की ख्वाहिश।

 थोड़ी दूर पर उससे बड़ी सुंदरी

  ख्वाहिशें बदल जाती।

 तब मनुष्य बन जाता 

 पशु से गया गुजारा।

 मनुष्य की ख्वाहिशें 

 दिन ब दिन  नहीं 

 क्षण पर क्षण बदल जाती हैं ।

  कबीर ने कहा है कि

 चाह गई चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह।

 जाको कछु न चाहिए वही शाहंशाह।।

 भगवान बुद्ध ने कहा

 सभी दुखों के मूल में 

 इच्छा ही कारण है।

एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना है 

Saturday, November 8, 2025

भारतीय महिमा

 [08/11, 9:51 pm] sanantha.50@gmail.com: देश

 देश हमारा देशभक्त भरे

 नागरिकों का नहीं।

 सिकंदर के आक्रमण ,

 पुरुषोत्तम का सामना 

 आंटी का द्रोह।

 आज़ादी के बाद 

 कृषी विकास के बदले

 औद्योगिकरण के नाम

 भारतीय कुटिर उद्योगों का नाश।

 गंगा तट  पर पीने का पानी विदेशी  यंत्र कंपनी 

का मिनरल वाटर।

 झीलों का नदारद।

  नदियों में पानी का प्रदूषण।

 संविधान में सब बराबर।

 व्यवहार में अल्पसंख्यकों के मजहब का अधिक अधिकार सहूलियतें।

 चुनाव में भ्रष्टाचारी  अपराधी सांसद विधायकों का विजय।

 नकली दूध, 

 मिलावट घी की बिक्री।

 भारतीय भाषाओं को नदारद।

 अंग्रेज़ी माध्यम की प्रधानता।

 पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव।

 तलाक के मुकद्दमों  की बढ़ती अदालत।

 सम्मिलित परिवार का नदारद।

वृद्धाश्रम की बढ़ती।

 आज़ादी के 78साल के बाद स्वच्छ भारत का नारा।

 अमीर अपराधियों के

 मुकद्दमे बारह साल तक

 अंत में फाइल गायब,

 गवाहों का गायब।

 अपराधी के पक्ष में न्याय।

हर विभाग में रिश्वत।

 देश में सहनशीलता।

 इन सब के होने पर भी

 देश की आश्चर्यजनक प्रगति।

 श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में 

 भारतीयता का जागरण।

 स्वच्छ भारत का नारा।

 विपक्षियों का एकजुट विरोध।

 राष्ट्रीय शिक्षा का तमिलनाडु में विरोध,  

नवोदया स्कूल का विरोध 

 हिंदी का विरोध,

 सनातन धर्म का समूल नष्ट करने का शपथ।

 फिर भी देश की एकता।

 देशोन्नति देख अमानुषीय शक्ति 

 आध्यात्मिक शक्ति का आश्चर्यजनक प्रभाव।

 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना

[09/11, 12:25 am] sanantha.50@gmail.com: भारत देश।

 पुण्य भूमि है भारत।

 देव भूमि है भारत।

वेदों की भूमि है भारत।

 वीरों कि भूमि है भारत।

 ऋषि मुनियों और संतों की भूमि भारत।

  अतिथि देवो भव का आदर्श भूमि है भारत।।


विविधता में आदर्श एकता की भूमि भारत।

 विभिन्न भाषाओं के देश में 

 बड़ी एकता है सोच विचार का।

लाला लाजपत राय 

 बालगंगाधर तिलक,

 विपिन चंद्र पाल 

 सुभाष चंद्र बोस जैसे

 अतुल्नीय नेता,

 भगत सिंह, राजगुरु, कुमरन जैसे वीर पुत्रों की भूमि भारत।

 अहिंसा परमो धर्म के

 अहिंसा शांति भ्रातृभाव 

 प्रिय विश्वंद्य मोहन दास करमचंद गांधी जी की पुण्य भूमि भारत।

 एशिया ज्योति भगवान 

 बुद्ध की पुण्य भूमि भारत।

राम, कृष्ण‌ की अवतार भूमि भारत।

 पुष्पक विमान की भूमि भारत।

 चिकित्सा में शल्य चिकित्सा के वैद्यों की भूमि भारत।

 विश्व की प्रगति के लिए मार्ग दर्शकों की भूमि भारत।

 वीर धीर साहसी पुरुषों की भूमि भारत।

जय भारत!

 एस अनंतकृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना

आज का भारत

 देश

 देश हमारा देशभक्त भरे

 नागरिकों का नहीं।

 सिकंदर के आक्रमण ,

 पुरुषोत्तम का सामना 

 आंभी का द्रोह।

 आज़ादी के बाद 

 कृषी विकास के बदले

 औद्योगिकरण के नाम

 भारतीय कुटिर उद्योगों का नाश।

 गंगा तट  पर पीने का पानी विदेशी  यंत्र कंपनी 

का मिनरल वाटर।

 झीलों का नदारद।

  नदियों में पानी का प्रदूषण।

 संविधान में सब बराबर।

 व्यवहार में अल्पसंख्यकों के मजहब का अधिक अधिकार सहूलियतें।

 चुनाव में भ्रष्टाचारी  अपराधी सांसद विधायकों का विजय।

 नकली दूध, 

 मिलावट घी की बिक्री।

 भारतीय भाषाओं को नदारद।

 अंग्रेज़ी माध्यम की प्रधानता।

 पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव।

 तलाक के मुकद्दमों  की बढ़ती अदालत।

 सम्मिलित परिवार का नदारद।

वृद्धाश्रम की बढ़ती।

 आज़ादी के 78साल के बाद स्वच्छ भारत का नारा।

 अमीर अपराधियों के

 मुकद्दमे बारह साल तक

 अंत में फाइल गायब,

 गवाहों का गायब।

 अपराधी के पक्ष में न्याय।

हर विभाग में रिश्वत।

 देश में सहनशीलता।

 इन सब के होने पर भी

 देश की आश्चर्यजनक प्रगति।

 श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में 

 भारतीयता का जागरण।

 स्वच्छ भारत का नारा।

 विपक्षियों का एकजुट विरोध।

 राष्ट्रीय शिक्षा का तमिलनाडु में विरोध,  

नवोदया स्कूल का विरोध 

 हिंदी का विरोध,

 सनातन धर्म का समूल नष्ट करने का शपथ।

 फिर भी देश की एकता।

 देशोन्नति देख अमानुषीय शक्ति 

 आध्यात्मिक शक्ति का आश्चर्यजनक प्रभाव।

 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना

Friday, November 7, 2025

तनाव

            कार्य तनाव 

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एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु 

8-11-25

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 मानव मन में तनाव 

 जाने अनजाने में होता है।

 जो भी कार्य करते हैं,

उसमें कोई विघ्न होने पर

 घाटा होने पर,

 विरोध होने पर,

 आगे का रास्ता दिखाई न पड़ने पर, 

कोई उपाय न सूझने पर,

 माता-पिता, पति पत्नी के कारण,

 आजकल शिक्षित समाज में,

 सहनशीलता 

के अभाव के कारण,

 पारिवारिक जीवन में तनाव।

 अर्थ प्रधान संसार में 

 मानवता अर्थहीन हो जाता हैं।

 परिणाम कार्यों में तनाव।

अहंकार, ईर्ष्या,प्रतिशोध,

 भय, शोक, ठगे जाना 

 कार्यों में तनाव ही तनाव।

 स्वार्थता, पक्षपात, रिश्वतखोरी आदि तनाव ।

धनी निर्धनी  के तनाव।

कुपूत के कारण तनाव।

परीक्षा तनाव, अंक तनाव

बुद्धि  लब्धि का तनाव,

 सूचित अनुसूचित जातियों की प्राथमिकता,

 अंक और उम्र में छूट।

  नौकरी में तनाव।

 सीनियर के रहते ,

 जूनियर की तरक्की।

 कार्य क्षेत्र में तनाव,

 पारिवारिक जीवन में तनाव।

 पाश्चात्य प्रभाव।

 परिणाम तलाक मुकद्दमा संख्या भारतीय 

संस्कृति  का पतन।

 ईश्वर का भय कम।

 संसार नश्वर है को 

भूल जाते मनुष्य।

 परिणाम जीवन के हर कार्य में तनाव ही तनाव।


एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

 

 


 


 



 

 




 

 

 



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Thursday, November 6, 2025

कसौटी ------------ एस . अनंत कृष्णन, चेन्नई 7-11-25 ++++++++++ कसौटी एक काला पत्थर, स्वर्ण की असली-नकली जानने का उपयोग। अब वह एक मुहावरा बन गया। अध्यापक छात्रों को परीक्षा की कसौटी पर देखते हैं। माता पिता अपने बच्चों के चाल-चलन का कसौटी पर कसकर देखते हैं। मिलावट का पता कसौटी पर कसकर देखने से चलता है। अदालत में न्यायाधीश गवाहों को कसौटी पर कसकर देखते हैं। खेद की बात है कि चुनाव में मतदाता, सांसद विधायक की ईमानदारी की कसौटी पर कसकर चुनने में अक्सर भूल करते हैं। धन की कसौटी पर कसना सही नहीं है। अंक ही छात्रों की कसौटी है, पर जाति की कसौटी पर कसना सही नहीं है। देश भक्ति, सत्य की कसौटी पर कसकर जन प्रतिनिधि चुनना देश की भलाई है। कसौटी

 कसौटी 

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एस . अनंत कृष्णन, चेन्नई 

7-11-25

++++++++++

 कसौटी एक काला पत्थर,

स्वर्ण की असली-नकली 

 जानने का उपयोग।

 अब वह एक मुहावरा बन गया।

 अध्यापक छात्रों को

 परीक्षा की कसौटी पर देखते हैं।

 माता पिता  अपने बच्चों के चाल-चलन का कसौटी पर कसकर देखते हैं।

 मिलावट का पता कसौटी पर कसकर देखने से चलता है।

अदालत में न्यायाधीश 

 गवाहों  को कसौटी पर कसकर देखते हैं।

 खेद की बात है कि 

चुनाव में मतदाता,

 सांसद विधायक की ईमानदारी की कसौटी पर 

 कसकर चुनने में 

 अक्सर भूल करते हैं।

 धन की कसौटी पर कसना सही नहीं है।

 अंक ही छात्रों की कसौटी है,

 पर जाति की कसौटी पर

 कसना सही नहीं है।

देश भक्ति, सत्य की कसौटी पर कसकर 

 जन प्रतिनिधि चुनना 

 देश की भलाई है।


 

 

 

 

 



 

 


 






 

 

 

 




Wednesday, November 5, 2025

परिवर्तन शीलता

 नमस्ते वणक्कम्।

जब मुख पुस्तिका 

 खुलता हूँ,तब प्रेरित करता है मन की बात लिखो।

 प्रधान मंत्री से मनकी बात,

 अगर मेरे अंतर्मन की बात कहने पर

 दोस्ती बढ़ेगी या घटेगी पता नहीं।

 तुलसी का चंद लिखो,

 खोरठा , चौपाई, दोहा लिखो।

 सूर सा लिखो

 तब तो वे दिव्य कवि

 सूर्य चंद्र  सब कैसे?

 कुछ लोग रूढ़ीवाद पर 

 जोर देते हैं।

 सोचता हूँ, 

 पाषाण युग के रूढ़ीवाद 

 पशुओं के वाहन 

 अब नहीं टिक सकता

आवागमन के साधनों मैं 

 विकास परिवर्तन,

 नौकरियों की सुविधाएँ,

 पेशेवर का यंत्रीकरण,

संगणिक क्षेत्र की क्रांति 

 गुरुकुल पाठशाला का लापता,

 संस्कृत मिलावट भारतीय बाषाएँ शिक्षितों का आदर आधार।

 अब अंग्रेज़ी मिलावट 

 अंग्रेज़ी माध्यम 

 कितना गर्व का विषय।

 अमूल भारतीय भाषाओं का, संस्कृति का, पोशाक और खाद्य तरीकों का

  टट्टी तक अंग्रेजी परिवर्तन।

 एक जमाना था खुले मैदान ही शौचालय।

 अब वह restroom

 आराम कक्ष में बदल गया।

 साहित्य की इतना विकास 

 तकनिकी ग्रंथों का विकास 

 ज्ञान का विस्फोट 

 ताड़ के ग्रंथों के कारण नहीं,

 छापाखाने के कारण।

परिवर्तन ही प्रगति।

नश्वर संसार में परिवर्तन प्रधान।

 संकलनत्रय न तो

 वह साहित्य आकर्षण खो देता।

  पद्यात्मक साहित्य का ही  रूढ़िवादी के अनुसार रहें तो हमे प्रेम चंद, 

 जयशंकर प्रसाद 

 छायावाद रूढ़ीवाद प्रगति वाद हालावादी विचारों कै

 नव कविता, मुक्त छंद है कू इतनी शैलियाँ

 कहानी, लघु कहानी निबंध आत्मकहानी आलेखन पत्र  इतने स्वाहित्य वर्गीकरण कैसे मिलते।

 प्रेम विवाह, अंतर्राष्ट्रीय विवाह, अंतर्जातीय विवाह, तलाक, वृद्धाश्रम 

 परिवर्तन ही विकास।

 खड़ी बोली हिन्दी का विकास।

भाषाओं की मृत्यु 

 नयी भाषा का विकास।

 यही नश्वर जगत का अनश्वर परिवर्तन।


 एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।

 

 

Tuesday, November 4, 2025

भ्रम

 राजा का भ्रम।

 एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु 

5-11-25

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भारत देश में ही नहीं,

 सारे विश्व में एक भ्रम है

 राजा ईश्वर तुल्य है।

 शासक प्रजातंत्र में भी

 भ्रमवश गलत चुने जाते हैं।

 चुनाव जीतने के बाद 

 ईद के चाँद हो जाते हैं।

 प्रजा के सपना मृग मरीचिका हो जाता है।

 दशरथ महाराज के 

 भ्रम जंगली जानवर।

 परिणाम शब्द भेदी बाण।

 पुत्र शोक के पाप का शाप।

 राजा के भ्रम से 

 देश की हानी।

 अज्ञातवास में 

 पांडवों के भ्रम में 

 हर घटना।

 चापलूसी  सभा

 सदों के भ्रम।

भ्रम के कारण,

निरपराध को दंड।

 तमिल काव्य शिलप्पधिकारम् में 

 निरपराध का कथानक को

 चोर के भ्रम होने से

 राजा ने मृत्यू दंड दे दिया।

 जब कोवलन की पत्नी ने

 राजा के फैसले को 

 गलत प्रमाणित  किया 

 राजा स्वयं मर गये।

साँप को रस्सी मानना,

 रस्सी को साँप मानना,

 भ्रम में पड़ना।

 कभी कभी विपरीत हो जाता।

भ्रम  में पड़ना 

 मानव जीवन में 

 अति संकट दुविधा 

परेशानियों के कारण।

Monday, November 3, 2025

शब्दों के चमत्कार

  शब्दों के पंख 

एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई 

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शब्दों के पंख,

 वह स्वतंत्रता से निकलता है।

 एक शब्द मधुर,

 शांति की स्थापना।

 दूसरा है कठिन

 हिंसा के बीज।

 बुद्ध, नानक, शंकराचार्य के वचन मार्गदर्शक।

 आतंकवाद के वचन 

 हिंसा अशांति।

 आदर्श नेता के शब्द 

 देश की भलाई।

 लालबहादुर शास्त्री के वचन,

 जय जवान, जय किसान,

 अति अनुकरणीय।

शब्द जो निकलते हैं,

 वह  एक शक्ति देता है।

 जय हिन्द का नारा,

 इनकलाब   जिंदाबाद 

 शब्द के पंख  स्वतंत्र से

उड़ते हैं,  हर मानव के मन में नयी स्फूर्ति,नया तेज, नयी ऊर्जा ,नये ज्ञान 

 कर्म की ओर प्रेरणा,

 देश प्रेम में जागरण।

 आध्यात्मिक लगन।

जय जगत, जगत मिथ्या,

 ब्रह्म सत्यं,

 सत्यमेव जयते। 

 ये शब्द के पंख न तो

 मानव जीवन निरर्थक।

 सार्थक जीवन शब्दों के पंख।

 मानव में मानवता लाती!

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई, तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

 




 

 


 

 




  



 




 

 

 

 

 

 

 

 

 


 



 



 

 

 

 शब्दों के पंख 

एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई 

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शब्दों के पंख,

 वह स्वतंत्रता से निकलता है।

 एक शब्द मधुर,

 शांति की स्थापना।

 दूसरा है कठिन

 हिंसा के बीज।

 बुद्ध, नानक, शंकराचार्य के वचन मार्गदर्शक।

 आतंकवाद के वचन 

 हिंसा अशांति।

 आदर्श नेता के शब्द 

 देश की भलाई।

 लालबहादुर शास्त्री के वचन,

 जय जवान, जय किसान,

 अति अनुकरणीय।

शब्द जो निकलते हैं,

 वह  एक शक्ति देता है।

 जय हिन्द का नारा,

 इनकलाब   जिंदाबाद 

 शब्द के पंख  स्वतंत्र से

उड़ते हैं,  हर मानव के मन में नयी स्फूर्ति,नया तेज, नयी ऊर्जा ,नये ज्ञान 

 कर्म की ओर प्रेरणा,

 देश प्रेम में जागरण।

 आध्यात्मिक लगन।

जय जगत, जगत मिथ्या,

 ब्रह्म सत्यं,

 सत्यमेव जयते। 

 ये शब्द के पंख न तो

 मानव जीवन निरर्थक।

 सार्थक जीवन शब्दों के पंख

 मानव में मानवता लाती!


 

 


 

 




  



 




 

 

 

 

 

 

 

 

 


 



 



 

 

 




 





 


  

 

 




 




 





 


  

 

 




 


Saturday, November 1, 2025

मेरे जीवन में भगवान

 सब के सब नसीबों का खेल।

 जन्म से अंधा बहरा गूँगा 

सब न बन सकते हेलन केल्लर।

 सब के सब अपने   प्रयत्न से बन नहीं सकते 

 सब के सब लता मंगेशकर।

  मन में है बनने 

    जिला देश।

भाग्य है गडरिया बनने का।

कालीदास का कवि बनना

 भाग्य का खेल।

 कर्ण का अनाथ होना

 माँ का निर्दय होना,

 दुर्योधन का मित्र बनना

 दानवीर के नाम से

 सब कुछ खो देना।

 शब्द भेदी बाण ,

 दशरथ का गलत प्रयोग 

 पुत्र शोक से मरने का शाप।

 इंदिरा गांधी का अंगरक्षक द्वारा वध।

 राजीव गांधी का हिंदी 

 पद्य सुनाने खड़ी लड़की से स्वर्गवास।

   अंबानी का माला माल।

 विजयम्ललय अपराधी का

 विदेश में आनंद पूर्ण जीवन।

 नित्यानंद अपराधी का भारतीय पुलिस की तलाश।

 कैलाश मे अलग देश

 भ्रष्टाचारियों का चुनाव जीत।

 सोचा यों ही अनेक उदाहरण।

भाग्य का खेल बड़ा।

  नामी अभिनेता 

अमीरों के यहाँ आत्महत्या।

 अचानक सुनामी

 कोराना,

 आँधी तूफ़ान 

 मानव ही की बुद्धि से बढ़कर एक अमानुषीय शक्ति।

 सुदूर तमिलनाडु में रहकर दिल्ली न जाकर 

 चेन्नई केंद्र में परीक्षा देकर

 दिल्ली विश्वविद्यालय स्नातक,

 तिरुपति वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय में 

 सौ रूपये के खर्च में 

 परीक्षा शुल्क सहित 

 स्नातकोत्तर,

 अपने प्रयत्न से नहीं 

 देवेन मनुष्य रूपेण 

 के अनुसार आकर मार्ग दर्शन,

 एम.ए. के रिसल्ट आते ही

 तुरंत तमिलनाडु में स्नातकोत्तर अध्यापक 

 मेरे प्रयत्न से भगवान का अनुग्रह प्रत्यक्ष।

 एम. ए, तिरूपति में दो साल,

दोनों साल बड़ी भीड़ में से

 एक व्यक्ति राजगोपुरम से सीधे मोदीजी प्रधान मंत्री जैसे दर्शन।

 पता चला मानव प्रयत्न से बढ़कर ईश्वरीय देन श्रेष्ठ।

 डाक्टर राजलक्ष्मी बहन से अति परिचय नहीं।

 देवी स्वरूप बहन के अनुरोध से  सिफारिश 

हस्ताक्षर के कारण

 हिंदी साहित्य संस्थान, लखनऊ के सौहार्द सम्मान।

 अभी हाल ही में राजभाषा स्वर्ण जयंती के

 समारोह में हैदराबाद 

 में विशिष्ट अतिथि का निमंत्रण।

 हिंदी हायर सेकंडरी स्कूल, तिरुवल्लिक्केणी में जहाँ चाँदी चम्मच 

 ( Silver tounge Srinivasa Shastri)

प्रधान अध्यापक थे,

 उन महानुभावों की सूची में प्रधान अध्यापक के नाम में मेरा नाम जुड़ना,

 दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई बी.एड.कालेज में 

 अंशकालीन प्राध्यापक की सेवा,

 हिमाचल प्रदेश का एम.एड, मेरे प्रयत्न के साथ साथ,

 ईश्वर का बड़ा अनुग्रह।

 मेरे जीवन में जाना,समझा, पहचाना

सबहीं नचावत राम गोसाईं।

‌अब मेरे हिंदी ब्लॉग के दर्शक डेढ़ लाख।

  तमिल ब्लॉग एक लाख 

‌विश्वभर में यह भी ईश्वर की कृपा।

 सबसे बड़ी कृपा मेरी माँ

 गोमती का पुत्र बनना।

 पऴनी पवित्र शहर मेरा जन्म स्थान।

 मिली भगवान कार्तिकेय की बड़ी कृपा।

 श्री एम. सुब्रमण्यम जी, ई. तंगप्पन जी, श्रु सुमतींद्र जी, श्री मीनाक्षी जी, वि.एस. राधाकृष्णनजी

प्रधानाचार्य रामचंद्र ना जी

 पी.के.बालसुब्रह्मणियम,

डा, वेंकटकृष्णं

डाक्टर सुंदरमजी 

 आदि निस्वार्थ हिंदी सेवियों का सत्संग।

 देखिए अपने प्रयत्न से 

 गायक बनना चाहा,

 भाग्य का खेल मेरा स्वर कर्ण कठोर।

तभी जाना ईश्वर का सूक्ष्म खेल।

 भाग्य बड़ा या प्रयत्न।

  जाना पहचाना समझा

 प्रयत्न की प्रेरणा ईश्वर की देन।

सफलता भगवान का अनुग्रह।

 पदवी पूर्व पुण्यानाम लिख्यते जन्मपत्रिका।


एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति जीवनी।

 सच्चा ज्ञान, भगवान की देन।

 प्रयत्न की सफलता भगवान की कृपा।

  அவனின்றி அணுவும் அசையாது 

 उसके रहित 

 कण भी न हिलेगा।

 ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ 

आज वरिष्ठ नागरिक की सूची में मेरा छाया चित्र नहीं।

  यह भी भगवान की लीला।

Wednesday, October 29, 2025

स्वच्छ भारत

 


स्वच्छ भारत स्वप्न


एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक


भारत आज़ाद हुए — हुए कई दशक बीत गए,

पर “स्वच्छ भारत” अब भी एक स्वप्न सा दीख रहा है।

मोदीजी ने दिया जो पहला नारा —

“स्वच्छ भारत बनाओ”, जनमन में गूंज रहा है।


पर राजनीति के खेल देखिए,

चेन्नई की गलियाँ अब भी कूड़े से लथपथ हैं।

छाया चित्र बनते हैं — व्यंग्य बाण बनकर,

मोदीजी पर चल पड़ते हैं, जनता की भूलें छिपाकर।


कितनी अज्ञानता जनता में!

पढ़े-लिखे, स्नातक, शोधकर्ता सब बढ़ते हैं,

पर सड़क पर कूड़ा डालते हुए

शिक्षा के अर्थ घटते हैं।


खेल ये बड़ा विचित्र —

नालों में फेंके अवशेष, मोड़ों पर कचरा,

फिर दोष सरकार पर!

कब समझेंगे हम —

स्वच्छता केवल शासन नहीं, संस्कार का दर्पण है।


फुटपाथ पर जीवन, गलियों में गंदगी,

और “स्वच्छ भारत” — बस एक सपना।

सोचता हूँ, क्या यह सपना

सपना ही रह जाएगा?


यदि हर नागरिक अपने घर सा

नगर को भी अपना माने,

अपनी गलती को सुधारकर

देश की सफ़ाई का संकल्प ठाने —

तभी साकार होगा वह स्वप्न,

जिसे हमने देखा था —

एक उज्ज्वल, निर्मल भारत का स्वप्न।