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Monday, July 4, 2016
मन चंगा तो कटौती में गंगा
मन चंगा तो कटौती में गंगा
Sunday, July 3, 2016
तिल - दिल
मन के घौडे का लगाम है अति मुश्किल।
कनपटी लगाओ, फिर भी मनमाना दौडता है।
उस दौड में कितने टेढे - मेढे रास्ते,
कितने शिखर, कितनी घाटियाँ।
कितने झरने, कितने दरिया ,कितने सागर।
कितने पोखर,कितने मोरे।
कितनी हरियालियाँ, कितने पतझड।
कितने मंदिर, कितनी मूर्तियाँ ।
कितने हिंसक ,कितने अहिंसक ।
कितने दौड, कितने भाग।
कितना घना, कितना गहरा।
कितना चंचल , कितनी आँधियाँ।
कितना हलचल।
मन के घोडे में कितने दौड।
न रोक सकता लगाम।
न कनपटी चलता तंग मार्ग।
न पता तंग भी कैसे बनता विशाल।
ताड का तिल बनाना,तल का ताड बनाना,
दिल की विशिष्टता या विनाश ।
वह तो साँस की गति समान।
दिल की गति रुकती तब,
जब रुकता दिल का धडकन।
दुख
मन में दुख के कारण| है अनेक।
मातृभाषा के विकास रुक जानै सै दुखी।
मातृ भाषा में न बोलने सै दुखी।
दुख के तारण है अनेक।
एकाध छूट गया तो लिखिए।
न चाह , न राय| तो दुख।
दुख है, दुख ही है संसार।
इस जिंदगी में जीना खुशी कैसे /
मनुष्य कौन है ?
जिसमें मनुष्यता है वही मनुष्य है.
मनुष्य सुखी है ?
नहीं। संसार में कोई भी मनुष्य सुखी नहीं है।
हर मनुष्य दुखी हैं।
पारिवारिक दशा से दुखी ,
सामाजिक उत्थान पतन से दुखी
देश के आतंकवाद से दुखी
शासकों के भ्रष्टाचारों से दुखी
अधिकारियों के रिश्वत से दुखी
भूख से दुखी ,नौकरी न मिलने से दुखी
पति से दुखी ,पत्नी से दुखी
नाते रिश्ते ,दोस्तों के कारण दुखी
रोग से दुखी ,
किसी की मृत्यु से दुखी,
प्रियतम प्रियतमा से दुखी
पति के गलत रिश्ते से दुखी
पत्नी के गलत व्यवहार से दुखी
अमीरी से दुखी ,गरीबी से दुखी
संतान से दुखी ,निस्संतान से दुखी
प्यार से दुखी ,नफरत से दुखी
स्वर्ग के मिलने से दुखी
नरक के डर से दुखी
और न जाने दुखी कितने ?
दुःख के प्रकार कितने /?
कार न होने से दुखी
कार न सं भालने से दुखी
ड्राइविंग न जानने से दुखी
योग्य ड्राइवर न मिलने से दुखी
दुःख के कारण अनेक ;
सुख के कारण कम.
यही जिंदगी अस्थिर फिर भी चिंता अधिक।
रोग साध्य रोग ,असाध्य रोग
मृत्यु।
इस जिंदगी में जीना खुशी कैसे /?
अत्याचारी शासकों से दुखी,।
बलात्कारियों से दुखी।
किसानों की आत्म हत्या से दुखी।
चितिरपट की कथा से दुखी।
अश्लीलता आचरण से दुखी,
बेकारी से दुखी, अर्द्ध नग्न दृश्यों से दुखी।
न| जाने कितने लोग काल्पनिक
भूत - पिशाच से होते हैं दुखी।
किसी कै दुख देख दुखी।
दूसरों के दुख देख कर दुखी।
लोभियों को तो हमेशा दुखी ।
देख दुखियों के दुख।
Saturday, July 2, 2016
संयम सीखो , शान्ति पाओ.
Thursday, June 30, 2016
चरित्र बल
मनुष्य पशुओं से श्रैष्ठ कयों ?
मान - अपमान की करता है चिंता।
मित्रता निभाता है, मितव्ययी होता है,
मार्ग भ्रष्ट होने पर भी,
मर्यादा की रक्षा ही चाहता है।
मनुष्यता कुचलके जीना दुश्वार है।
धन - बल, चरित्र बल दोनों में
केवल धन बल को ही प्रधान मानना
चरित्र बल को अवहेलना ,
मनुष्यता खो दैना, पशुत्व जीवन।
एक लुटेरा गुरु नानक सत्संग में आया,
उनसे कहा, मैं अपने कर्मों से हूँ दुखी,
मैं तो निर्दयी, लूट मार कभी छोड नहीं सकता।
ऐसा उपाय बताना, मैं अपना धंधा भी करूँ,
मानसिक शांति भी पाऊँ।
गुरु ने प्रसन्न मन से सलाह दी--
न छोडो,अपना कर्म ,पर एक काम करना।
दिन भर के तेरे कर्मों की सूची बनाना,
कल सत्संग में आकर सूची पढना।
वह तो चला गया , फिर वापस नहीं आया।
चंद दिनों के बाद सत्संग में भाग लेने आया,
आया तो वह रहा अति विनम्र, सज्जनता का प्रतीक।
गुरु चरणों पर गिर पडा।
कहा- आप की सलाह अक्षरसः मानी।
मेरे कुकर्मों की सूची बढी।
खुद पढ - सोच अति शर्मिंदा हूँ।
कैसे भरी सभा में पढूँ ,सुनाऊँ।
छोड| दिया अपना सारा बुरा कर्म।
मिल गई मानसिक शांति। संतोष।
मान -मर्यादा चरित्र बल में,
धन बल में तो भ्रष्ट धनमें तो
केवल बचता अपमान , बेचैनी, असंतुष्ट।
चरित्र निज गढना, मानसिक शांति।
तुलसी का यह दोहा हमेशा याद रखना--
गो धन, गज धन , बाजी धनल,रतन धन खान।
जब तक न आवे संतोष धन सब धन धूरी समान ।।
Wednesday, June 29, 2016
राम नचावत
ईश्वर का नाम रटकर घने वन में
पद्मासन लगाकर बैठ गया मानव।
आधी रात एक डाकू गया , अंधरे में
टकराया, तपस्वी मानव संभल गया--
बोला-- वन दुरगा ।अच्छा रखो।
डाकू शकुन माना , लूटने गया मिला बडा मैं माल।
सोचा, साधु का प्रभाव।
यों ही रोज| मिलता धीरे - धीरे बन गया रईश।
कई| महीने बाद| साधु बोला,
आगे से लूटना छोड, मेरा एक आश्रम बनवाना
शुरु करो, तुमको जाना नहीं, केवल मेरे पास
खडा रहना, ढेर सारा माल अपने आप आएँगे।
जो आते हैं , उन्हें अनुशासन| से बिठा देना।
पेट भर अन्नदान करना। भीड जमैगी तो
व्यापार शुरु करना, चित्र , चाबी का गुच्छा,
प्रसाद की मिठाइयाँ, रंगबिरंगे चित्र , मूर्तियाँ
विशिष्ट चाँदी - और सोने का तावीज।
मेरा स्वरणासन, सोने का मुकुठ, फिर धीरे कहना
स्वामी की इच्छा स्वर्ण रथ, हीरै जडित मुकुठ।
बडे - बडे विद्वान, कवि , गायक आयेंगे,
कीर्तन करेंगे, गाएँगे,नाचेंगे, उन का बडे राशी से
गुप्त सम्मान| देना। मंत्री, अधिकारी, पुलिस का
ऐसा सम्मान, ऐसे वजन प्रसाद ,वे आएँगे तो आएँगे दल - सेवक, उनका केवल भोजन- ठहराव पडाव।
प्रचारकों को सुनो, रसीद पुस्तक छापो, आय कर अदा कर दो।
सब हीं नचावत राम गोसाई।