साहित्य हित करना है,
जवानों में देश-भक्ति जगाना है।
कानून पर ,पुलिस पर ,मंत्री मंडल पर
भरोसा बढाना है।
चित्रपट साहित्य जो असरदार है,
वह तो खून से शुरु होता है।
ईमानदार अफसरों की हत्या,
हत्या छिपाने के साजिश| में
मंत्री, पुलिस अधिकारी, सब
अपराधी, कपाली देखा।
कानून चुप , बदमाशों का राज्य।
बद्माशी ही बद्माशी की सजा ।
कितनी हत्याएँ, कानून चुप ।
बादशाह भी वैसी ही चित्र पट।
शासित दलों की ही अधिकार।
न जाने भविष्य ।
ऐसा ही कानून हाथ में लेते हैं बदमाश ।
आम जनता कील सुरक्षा नहीं।
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Monday, August 1, 2016
साहित्य
Sunday, July 31, 2016
भक्ति क्षेत्र
कुछ बकना है,
चाहक बढें या निंदक,
इसकी चिंता न करना है।
समझे लोग किसी पागल का प्रलाप।
ध्यान न देना।
कुछ मन की बातें प्रकट करते रहना।
आजकल हो रहा है अति अपवित्र ।
चित्रपट -रंगशाला के समान
दर्शकों का वर्गीकरण।
हजार रुपये तो अति निकट ।
मुफ्च तो अति दूर।
कहते हैं ईश्वर के सामने सब बराबर।
देवालयों में पैसे हो तो तेजलदर्शन।
लाखों का यग्ञ हवन , पाप से मुक्ति।
यह पैसे का प्रलोभन पाप बढाएँगे। या
मुक्ति देंगै तो भक्ति भी कलंकित।
अतः भक्ति में हो रहा है छीना-झपटी।
भक्ति क्षेत्र बदल रहा है
जीविकोपार्जन व्यापार क्षेत्र।
पाप की कमाई हुंडी में रुपये डालो,
पाप से मुक्ति।
ऐलान करनेवाले पागल या
अनुकरण करनेवाले पागल ।
पाप का दंड बडे राजा - महाराजा भी
भोगते ही है, न छूट।
दशरथ का पुत्र शोक ।
राम| का पत्नी - विरह।
निृ्कर्ष यही-- सब की नचावत राम गोसाई।
Saturday, July 30, 2016
सावधान ढोंगियों से
आश्रम
आज एक खबर ,
रोज एक खबर ,
ठगों की दुनिया में
किसी को ईश्वर पर
पूरा भरोसा नहीं।
तन मन नहीं लगाते
भगवान पर।
बालक ध्रुव ,प्रह्लाद
वालमीकि , तुलसी ,
कालिदास सब के सब
रैदास किसी से मिले नहीं
कबीर दास तो एक कदम आगे,
उनके भगावान की भुजाएँ अनंत।
इतने महान भक्तों का
केवल भगवान पर आत्म समर्पण ।
मीरा , आंडाल जैसे भक्त
इतने आदर्श उदाहरण के बाद भी,
लोग मिथ्या साधु - संतों के पास जाते है्,
एक दंपति एक आश्रम गए,
उनके बच्चे नहीं, साधु मिथ्या -ठग।
कहा - मेरे सामने संभोग कर ,
तभी होगा बच्चा।
फिर खुद बलात्कार में लग गया।
तभी ढोंगी का पता चला।
भगवान से सीधे करो विनती।
सद्यः फल की आशा ,
मनुष्य को बना रहा है,
अंधा।!
सोचो, सीधे करो , ईश्वर से कामना।
Thursday, July 28, 2016
लौकिकता
निर्विघ्न चलेगा काम.
लौकिकता में डुबो जवानो,
अलौकिकता की बातें.
जवानी में इश्क क्षेत्र
बाकी जीवन तो और दस साल बढ़सकता है;
पूर्वजों की बात मानो ,
भारतीय प्रणाली आदर्श मय ,
वस्त्रों की कमी ,
सामूहिक मिलन तो ठीक ,
हर नजर अनुशासित नहीं होती,
बुद्धी दी है ईश्वर ने
चित्रपट के नायक- नायिका न मानो अपने को;
आज कल के नायक भी
सोचो, समझो , जागो आगे बढ़ो.
नर हो, नरोचित मनुष्यता मानो;
जिओ चैन से , बेचैनी की बात समझो.
मनुष्यता निभाओ।
खारा पानी भाप बनने को किसी ने न देखा।
ऐसे कर वसूलना उत्तम प्रशासन कवि ने कहा।
हँसता -मुस्कुराता चेहरा, नीर बिन नयन।
प्रेम सूर्य ,कमल खिले दिल सुखा देता।
मीठे पानी के बदले खारा पानी निकाल देता।
वेदना के जीव - नदी बहा देता।
तनाव में इतनी गर्मी मनुष्य को दीवाना बना देता।
एक क्षण के पागलपन प्रेम का ,
इतना अन्याय, हत्यारे बना दैता,
अपराधी या खदखुशी।
आजीवन कष्ट।
यह माया प्रेम आत्मा से नहीं ,
बाह्य रूप आकर्षण, शैतानियत।
हृदय की गहराई का प्रेम ,प्रेमिका के प्रति
या प्रेमी के प्रति भलाई चाहता।
तेजाब न छिडकाता।
मजहबी प्रेम ,जातीय प्रेम का संक्रामक रोग,
विषैला वातावरण, रूढिगत आत्मनियंत्रण ,
आत्म संयम , शांति प्रद, त्यागमय जीवन।
चित्रपट दिखाता बदमाशी प्रेम।
चित्त मनुष्य का हो जाता ,घोर।
प्रेम की कहानियाँ अलग।
अबला नारी का अपहरण अलग।
रावण ने किया, रावण तो मर्यादा रखा।
भीष्म ने तो तीन राजकुमारियों को
जबर्दस्त लाया, उसके लिए
जो वैवाहिक जीवन बिताने लायक नहीं।
कहते हैं भीष्म प्रतिग्ञा ।
उनमें न दया, न मनुष्यता।
प्रेम रूपाकर्षण अति भयंकर।
जागो युवकों, आजीवन के
खारे अश्रु बहाने से बचो।
संयम सीखो, मनिष्यता निभाओ।
Wednesday, July 27, 2016
जीव वध
मेरे बकवास
सलीलजी । अपना थूका न चाटेंगे।
परायों को सह पोंछ लेंगे।
भले ही जवान की जान चलें,
आतंकवादी को चोट न पहुँचे,
ऐसी थूक सह लेंगे।
बकरी काटने पर चुप रहेंगे।
तोते पाल ज्योतिष धंधा,
पक्षी तंग कह रोकेंगे।
वह तो तोते पाल सुरक्षित रखता।
वह उसका जीविकोपार्जन के साधन ।
बंदर नाच दिखा पेट भरता ,
वह तो जीव -हिंसा।
ऊँट मार खाने पर हमारे नेता हाथ बँटाता।
कितना स्वार्थ।
तोता ज्योतिष को ब्लू क्रास
विरोध करता।
आया ,आया, भालू वाला,
लिए हाथ में भालू काला।
कलाकार क़े पेट पर मार
मुर्गा, बकरी, ऊँट ,गाय माँस खाना हक ।
जानवर रख तमाशा दिखाना,
सर्प रख तमाशा दिखाना जीवध।
जीव हिंसा रोकने वालों!
मेनकाजी। ऊँट बली के
विरोध बोल सकती है।
थूकेंके ऐसे वोट के लिए
एक धर्म का समर्थक।
दूसरे बहुमत धर्मियों का अपमान।
Tuesday, July 26, 2016
मैं हूँ साधारण वैधानिक - सांसद
मंच में स्थान पाने ,भटक रहा है मनुष्य ।
एक दोस्त आया, शाल दिया,
कहा, मंच पर चढूँगा,
मेरे नाम कह शाल ओढा देना।
पचास रुपया दूँगा।
आहा! मेरे दोनों हाथों में लड्डू।
मैं तो माला ,नाम मात्र कहकर नहीं,
विशेषण भी जोड दिया।
हमाारे दायरे के दाता,दादा,
आदरणीय दयाराम को
मेरा छोटा -सम्मान।
बस बार -बार मंच मिला।
शाल ओढाने का काम मिला।
दयाराम से सुपरिचित ,
मुझसे मिलने लगे।
बार - बार शाल ओढाना।
मंच पर चढता -उतरता
धीरे -धीरे एक शाल एक
बडे नेता ने पहनाया मुझे।
ऐसे सेवक मिलना दुर्लभ।
मुझे मंच मिल गया।
भाग्य चमका।
नेता के खुशामद में ,
शब्द निकला-
बर्नाटशा सुना है, अब देखता हूँ,
लेनिन नाम सुना , अब देखता हूँ।
ईश्वर सद्यः -फल देते नहीं,
नेता प्रत्यक्ष देवता।
मिलो ,सद्यः फल मिलेगा।
ईश्वर तुल्य नेता को साष्टांग प्रणाम।
फिर किया, नेता के पास खडा रहा करता।
मंच मिल गया।
मैं जो बोलता हूँ ,खुद नहीं जानता।
बना वैधानिक। बना सांसद।
न जानता देश प्रेम, न जानता सेवा।
लोग मुझे नहीं जानते, मैं नहीं जानता जनता को।
नेता की जय घोषणा जानता।
चुनाव क्षेत्र और मेरा कोई तालुक नहीं,
मतदाता अति चतुर , मैं जीत जाता ।
मेरे एक मंदिर,एक कालेज, बस मालामाल हे गया।
अब काले धन मुझे ओट ,
नोट से वोट, मेरे चाटुकार मुझे हारने न देते।
कमाते बहुत , विसा ,पास पोर्ट,
विदेशी बैंक,विदेशी यात्रा।
अच्छे अधिकारी, कुछ देशोन्नति काम करते।
ठेकेदार पुल बनाते,
खासकर नेता की मूर्ती स्थापित करते ।
सडक बनाते तीन महीने में दरारे पड जाती।
फिर ठेका फिर सडक।
हर देश हित योजना,
पैसे बिना माँगे मिल जाते
चुनाव में खरच करना है,
मंच मिल गया, जय हो
भारतीय लोक तंत्र।
नेता के खुशामद में जी रहा हूँ।
जय हिंद। वंदेमातरम्।