संस्कृति
Sunday, September 27, 2020
उम्मीद
हिंदी व्याकरण परिवर्तन
एक भाषा जब अपनी परंपरागत शैली से नई
Friday, September 25, 2020
धर्म मानव धर्म
किसान बनकर अगजग की भूख मिटाना।
साधू बनकर सदुपदेश ,
गुरु बनकर अज्ञानान्धकार मिटाकर अनंतेश्वर से मिलाना।
व्यापारी बनकर आवश्यक पदार्थों की बिक्री।
पेशेवर बनकर उपयोगी कला।
उद्योगपति बनकर बेकारी दूर करना।
ईश्वर की सूक्ष्म ज्ञान ,
अगजग की व्यवस्था ,
एक की क्षमता दुसरे को नहीं ,
हरफन मौला जग में कोई नहीं।
शारीरिक बल है तो बुद्धि बल कम।
आर्थिक बल तो अन्य बल कहाँ ?
एक दुसरे से आश्रित वही
परमेश्वर की अद्भुत सृष्टि। .
स्वरचित -स्वचिंतक एस। अनंतकृष्णन
नाच न जाने आँगन टेढ़ा।
आँख का अँधा नाम नयन मुख।
पेशे का भिखारिन नाम लक्ष्मी देवी।
यही अगजग का व्यवहार।
पाप का अवतार ,नाम पुण्यमूर्ति।
बहाना बनाने एक लोकोक्ति
अज्ञानता पर पर्दा ,
परीक्षा का डर ,नीट का विरोध।
चार लाख योग्य प्रशिक्षित अध्यापक
तमिलनाडु में परीक्षा दी ,३६५ उत्तीर्ण।
नीट परीक्षा विरोधी।
यही नाच न जाने आँगन टेढ़ा।
स्वचिंतक स्वरचित एस.अनंतकृष्णन
आँधियाँ
2. गम की बरसात
3. जिंदगी की धूप
नमस्ते। वणक्कम ! तमिलनाडु के हिंदी प्रचारक
१९६६-६७ --आँधियाँ चली तमिलनाडु में ,
कौन-सी आँधी हिंदी विरोध की आँधी।
कालेज -स्कूल के छात्र सत्ता पकड़ने अस्त्र -शस्त्र बने
निर्दयी राजनीती कुर्सी पकड़ने आंदोलन की चरम सीमा
रेल जले ,बसें जली ,पुलिस की गोलियों के शिकार बने
गम की बरसात ,लाठी का मार.
बस ,चुनाव में ईमानदार नेता हार गए ,
राष्ट्रीय चेतना को लेकर आंधी समाप्त।
प्रांतीय द्रमुक दल ,फिर अण्णा द्रमुख दल।
तभी मैं हिंदी प्रचार में लगा.
हर चुनाव के समय यह आंधी आती ,
आँधी के बीच या बाद ऐसे नहर-नाले -नदी
हिंदी के स्वाद लेकर बही ,
द्रमुक नेता अपने वारिश को
सांसद - मंत्री बनाने हिंदी सीखी ,
पर जनता को सीखने नशीन देते।
संस्कृत का विरोध ,पर उनके दाल का चिन्ह "उदय सूर्य।
अब ऐसी आँधी की प्रतीक्षा में ,
जिससे उनके छद्म वेश /दुरंगी चाल का मुखड़ा उड़ जाएँ।
आँधी से हानी पर भला होती ही है।
अब सारे दक्षिण में तमिलनाडु में ही
बिना केंद्र के या राज्य के समर्थन बिन
दो लाख से ज्यादा जनता की प्यारी बन गयी हिंदी। हिंदी !
एस। अनंत कृष्णन ,चेन्नै।
गम की बरसात
तमिलनाडु में देव विरोध के गम की बरसात।
हजारों मूर्तियाँ ई। वे.रामसामी नायक्कर की
भगवान नहीं के नारे के साथ.
भगवान कहनेवाला अयोग्य ,
भगवान को माननेवाला बेवकूफ।
अंग्रेज़ी पढ़ेंगे भले ही तमिल माध्यम के स्कूलों का बंद हो।
हिंदी के विरुद्ध प्रांतीय दलों का नारा।
उनके साथ राष्ट्रीय दल कांग्रेस।
अब भारतीय जनता की शिक्षा नीति के विरुद्ध ,
किसान सुधार बिल के विरुद्ध वर्षा।
यही तमिलनाडु में गम की बरसात।
जिंदगी धूप।
ईश्वर की लीला या मानव के पाप।
पता नहीं कोराना का मरुभूमि धूप।
अस्पतालों में दिवा लूट ,
व्यवसायों में मंद ,शिक्षालय बंद।
टैक्सी वालों का लूट ,सरकारी यातायात बंद.
मनमाना दाम ,पुलिस का कठोर व्यवहार।
जिंदगी धूप अति गरम ,
कब होगा ठण्ड पता नहीं।
सर्वेश्वर से प्रार्थना ,धुप को ठंडा करें।
करना का दहकता धूप मिट जाएँ।
स्वरचित -स्वचिंतक -एस। अनंतकृष्णन ,चेन्नै
मार्गदर्शक सोच बदलते हैं,
मार्ग तो एक,वहीं निष्काम जीवन ।।
जो मिलेगा मिल ही जाएगा,जो न मिले गा ,लाख प्रयत्न पर भी मिलता नहीं।
सिद्धार्थ बुद्ध बने,मनुष्य के बुढापा,रोग, मृत्यु जिसके कारण राजमहल त्यागे अपने मंजिल न पहुंचे।
यही जीवन । रोग बुढ़ापा मृत्यु सूक्ष्म शक्ति मानवेतर शक्ति।
विद्वत्ता ,पैसे ,पद ,नालायक है ईश्वरीय सुनामी के सामने।
ईमानदारी ,सत्य ,अहिंसा ,परोपकार इंसानियत ही जीवन।
एस। अनंतकृष्णन ,चेन्नै। 8610128658 mobile
उम्मीद
उम्मीद है पैसे के बल है तो
न्याय ,उपाधि ,घर ,नौकरी
सब प्राप्त होगा। ------लक्ष्मी विशवास। लक्ष्मी पुत्र
उम्मीद शिक्षा और ज्ञान पर हो तो
न्याय ,उपाधि ,घर ,नौकरी और मनोकामनाएँ पूरी होगी। -सरस्वती पुत्र।
भाग्य पर उम्मीद हो तो
चुपचाप रहने पर भी तीनों मिलेगा। --भाग्य…
[12:22 PM, 9/25/2020] Ananda Krishnan Sethurama: धर्म मानव धर्म
किसान बनकर अगजग की भूख मिटाना।
साधू बनकर सदुपदेश ,
गुरु बनकर अज्ञानान्धकार मिटाकर अनंतेश्वर से मिलाना।
व्यापारी बनकर आवश्यक पदार्थों की बिक्री।
पेशेवर बनकर उपयोगी कला।
उद्योगपति बनकर बेकारी दूर करना।
ईश्वर की सूक्ष्म ज्ञान ,
अगजग की व्यवस्था ,
एक की क्षमता दुसरे को नहीं ,
हरफन मौला जग में कोई नहीं।
शारीरिक बल है तो बुद्धि बल कम।
आर्थिक बल तो अन्य बल कहाँ ?
एक दुसरे से आश्रित वही
परमेश्वर की अद्भुत सृष्टि। .
स्वरचित -स्वचिंतक एस। अनंतकृष्णन
Thursday, September 24, 2020
शीर्षक ===फिर मिलेंगे एक दिन।
नमस्ते । वणक्कम।
फिर फिर मिलना दोस्ती।
विदेशी यात्रा या तीर्थ यात्रा
जाते समय कहना
फिर मिलेंगे ।।
जहां जाते हैं ,वहां से
आने की संभावना कम हो
तब कहेंगे फिर मिलेंगे एक दिन।।
सबेरे जाकर शाम को आना
शाम को मिलेंगे।
शायद फिर मिलेंगे?
वह संदेहास्पद।
युद्ध क्षेत्र या दुश्मनी से या होड़ में
हारकर गुस्से में कहना
फिर मिलेंगे एक दिन।
खेल में हारकर भी फिर खेलेंगे।
फिर मिलेंगे एक दिन।
रेल यात्रा की मित्रता
कुछ घंटों का तब
यात्री दोस्ती उससे भी कहेंगे
फिर मिलेंगे एक दिन।
हम मुख पुस्तिका या
शब्दाक्षर दोस्ती
मिले ही नहीं फिर कहेंगे क्या?
विपरीत विचार एक दिन
समान विचारों से फिर
कविता द्वारा मिलेंगे।
फिर मिलेंगे एक दिन ।।
प्रेमी या प्रेमिका शादी न हो सकी।
दूसरों से हो गई।
तब फिर मिलेंगे दोस्त बनकर
या भाभी या देवर बनकर।
जिंदगी में फिर मिलेंगे यही।।
स्वरचित स्वचिं तक
तमिलनाडु के हिंदी प्रचारक
हिंदी प्रेमी एस.अनंत कृष्णन

Tuesday, September 22, 2020
हमारी मिलजुलकर यात्रा कितने घंटे ?
यह सवाल साधारण या असाधारण ?
एक बस की यात्रा ,दो सीट दो व्यक्ति का।
एक व्यक्ति बीच में एक थैली रखी है।
अतः दुसरे को बैठना मुश्किल।
अगले सीट वाले ने कहा आप क्यों
थैली उठाने को
नहीं कहते ?
तब उसने कहा -थोड़े समय की यात्रा ?
इसमें क्यों लड़ाई -झगड़ा ?
थोड़े समय की यात्रा ?
हमारे सह मिलन ,कुटुंब की यात्रा
सह यात्रा ,दोस्तों के साथ मिलना -जुलना
कितने साल तक ?
चंद साल की यात्रा,
पहली कक्षा से पांचवीं कक्षा एक यात्रा।
वे दोस्त साथ नहीं आते।
छठवीं से बारहवीं तक बस वे दोस्त
कालेज तक नहीं आते।
सोचा इस चंद समय ,चंद साल की यात्रा में
कितनी दोस्ती ,कितनी दुशानी ,
कितना प्रेम ,कितना नफरत ,
ईर्ष्या ,लालच ,भ्रष्टाचारी ,ठग
यात्रा सत्तर साल तक ,भाग्यवान रहते तो सौ साल तक
अस्थायी जीवन ,चंद साल की यात्रा।
भला करो ,भला सोचो ,हानी न करो
ऐसे जीवन कौन बिताता ?
एस। अनंत कृष्णन
Sunday, September 20, 2020
अंतर्मन यह मन आत्मानुभूति ,
ब्रह्मानंद ,सुखप्रद ,चैनप्रद।
ऐसा एक मन न होता ,तो
मानव जीवन में सदा बेचैनी।
लोभ यह चीज़ तुम्हारे घर में न होना ,
मेरे घर में होता ,अंतर्मन।
बाहर मन दूसरा कहता।
ये भ्रष्टाचारी ,तुझे वोट न देता।
अंतर्मन कहता ,पर नमस्ते कह
मत मांगते ही आपका ही मेरा वोट.
कहता बाहर मन।
कर्जा लेकर न देने का बहाना मन में
बाहर मन कहता तो क्या होता।
हाथ में माला ,मुँह में राम
अंतर्मन आसाराम ,प्रेमानंद।
बाहर कहता तो जूते का मार।
भूख दोस्त के यहाँ भोजन का वक्त
अंतर्मन कहता खिलाता तो
बाहर मन यही कहता अभी खाया है।
रिश्वत देकर स्नातक ,
रिश्वत देकर अंक
अंतर्मन बाहर प्रकट न करता।
विवशता अंतर्मन में
बाहरी मन लाचारी।
कबीर ने यों ही बताया
मनका मनका डारी दें ,
मन का मन का फेर। .
बाह्याडम्बर काम का नहीं भक्ति में
अंतरम…
[10:44 AM, 9/21/2020] Ananda Krishnan Sethurama: अब तो झूठ का बोलबाला है --
नमस्कार। वणक्कम।
हम कहते हैं --अब तो झूठ का बोलबाला है।
पर इनका समर्थन हम ही करते।
यथा राजा तथा प्रजा।
वादा न निभाया,अगले चुनाव वही वादा।
वही शासन ,वही विधायक ,वही शासन
हम ही मतदाता ,कहते हैं झूठ का बोलबाला।
मंदिर के आसपास नकली चन्दन ,नकली चंदनकी लकड़ी
जानते हैं सब चुप रहते क्यों ?
कहते हैं झूठ का बोलबाला है।
जानते हैं भिखारी झूठा लंगड़ा ,फिर भी भीख देते हैं।
कहते हैं झूठ का बोलबाला।
सिंग्नल में बच्चे सहित भीख ,
वह बच्चा न हिलता डुलता कटु धुप में भी
कहते हैं झूठ का बोलबाला।
कोई भीख देता तो रोकना पाप।
कहते हैं सर्वत्र झूठ का बोलबाला है।
मंदिर दर्शन जल्दी जाने कोई
पहरेदार से पैसे देकर आगे जाता तो
हम भी अनुकरण करते हैं ,रोकते नहीं
कहते हैं झूठ का बोलबाला।
जल्दी काम होने पहले हम
गलत रास्ते पर जाने सिफारिश की तलाश में
कहते हैं झूठ का बोलबाला है।
झूठ के पक्ष में ही हम
फिर भी कहते हैं झूठ का बोलबाला है।
जब मैं बच्चा था कहते झूठ पाप.
अब कहते हैं होशियार होनहार
झूठ भाषण कला में वैज्ञानिक झूठ
पता लगाना मुश्किल।
कहते हैं झूठ का बोलबाला है।
कृष्ण अश्वत्थामा जोर न लगाकर कुञ्जरः जोर लगाता तो
द्रोण की मृत्यु न होती ,
हम कहते हैं
हर कहीं झूठ का बोलबाला है.
स्वरचित स्वचिंतक --एस। अनंत कृष्णन।
Friday, September 18, 2020
बेशर्मी
विचार निकले मेरे।
बेशर्मी
नमस्कार।
हर पांच साल में
एक महीना नमस्कार
बेशर्मी नमस्कार।
वही। वादा पिछले चुनाव का
परिवर्तन हज़ार रुपए नोट खोटा।
दो हज़ार बढ़ गए वोट का दाम।
बेशर्मी मत दाता देश के
भ्रष्टाचार से बढ़कर
दो हजार तत्काल मिलते ही
अपने बेशर्मी वोट देता
उसी बेशर्मी मत दाता को
बेशर्मी अध्यापक अंक देता
छात्राओं को पैसे लेकर
जैसे वैश्या अंग बेचती।
बेशर्मी मतदाता,बेशर्मी अधिकारी,
बेशर्मी शिक्षालय बेशर्मी न्यायालय।
जो भी हो ईश्वर देता सब को
आगे पीछे मृत्यु दण्ड।।
स्वरचित,स्वाचिं तक
एस.अनंत कृष्णन चेन्नई
जहननुम है जिंदगी।
जिंदगी स्वर्ग है या नरक।
स्वर्ग है जिंदगी ,
वहीं जिंदगी नरक है।
कोई दुखी व्यक्ति
दुख भूलने शराब पीकर
पियक्कड़ बन जाता है
कहता है जिंदगी स्वर्ग है।
वही स्वर्ग उसको
नरक की ओर ले जाता है,
उसके घरवाले गरीबेके गड्ढे में
नरक अनुभव,पियक्कड़
शराब लेने पैसे न तो नरक।
स्वर्ग नरक हमारे व्यवहार से।
प्रेम एक पक्षीय है तो
छोड़ना स्वर्ग,
उसी की याद नरक।।
रिश्वत भ्रष्टाचार के पैसे स्वर्ग।
उसके पाप का दण्ड
ईश्वरीय नरक।
सत्संग स्वर्ग, बद संग नरक।
मत सोचो स्वर्ग नरक देवलोक में।
समाज का अध्ययन करो
पता चलेगा मनुष्य
यही स्वर्ग नरक के
सुख दुख का
दण्ड भोगता है।
यही स्वर्ग है ऐसा
कोई न कह सकता।
यही नरक है
ऐसा नहीं कह सकता।
दोनों भोगता है मनुष्य।
स्वाचिंतक,स्वरचित अनंतकृष्ण।
नमस्कार।
शीर्षक :--कल का सूरज किसने देखा।
कल का सूरज कौन देखेगा ?
जो बीत गयी ,बात गयी।
जो बीतेगा ,पता नहीं।
आज के सूरज की रोशनी में
भूत को भूलो ,वर्तमान में संचय करो।
कल के सूरज की चिंता नहीं ,
वर्तमान सोओगे तो
कल के सूरज देख नहीं सकते।
कल के सूरज देख नहीं सकोगे।
कल पाठ न पढ़ा ,कल पढ़ूँगा।
कल दूका न न खोला ,कल खोलूँगा।
न कोई लाभ। आज पढ़ना है।
आज दूकान खोलना है। .
तब कल के सूरज किसीने देखा कि चिंता क्यों ?
तब कल के सूरज कौन देखेगा कि चिंता क्यों ?
वर्तमान सही है तो सदा के लिए सूरज की रोशनी।
Thursday, September 17, 2020
मैंने दक्षिण भारत अर्थात तमि लनाडु में यात्रा की।
जैन साधुओं की गुफाएँ चित्ताकर्षक है। चित्त रम्य ,चित्त संतोष
चिंता की बात है मजहबी द्वेष।
मजहबी कट्टरता कितनी निर्दयता पूर्ण।
शासक की मर्जी से भक्ति प्रह्लाद की कहानी।
यहां तो आँखों देखी निर्दयता के चित्रण।
मजहबी हो तो दया चाहिए।
पर इतना घृणा ,हिरण्यकश्यपु के बाद
यह जैन गुफायें खेदजनक।
कोराना ,सुनामी से मनुष्यता सीखनी है ,
बाद में मज़हबी।
तिलक धारण अदालत तक.
इंसान को इंसानियत सिखानी है ,सीखनी है.
प्रेम दया परोपकार अपनाना है.
आज मेरे मन में उठे विचार।
हर बात लिखते समय सतर्कता है.
मैं अपने मन मन उठे विचार ज्यों के त्यों तत्काल लिखता या
कहता हूँ ,परिणाम मुझे प्रेम सहित दूर रखते हैं।
अतः यथार्थ बात कहना चाहकर भी
अधिकांश चुप रहना बेहतर समझता हूँ.
पर जैन गुफाएं मजहबी रहमी अर्थात मानवता के प्रधान
लक्षण सहिष्णुता /सब्रता असब्र कर
यथार्थ पर आँसू बहाने ही पड़ते हैं.
कसर तो करुणासागर का है क्या?
एस। अनंतकृष्णन।
मेरे दो सिम
मेरे दो सिम में एक छोड़ दिया।।
दूसरे वाट्स app में चित्रलेखन है इसमें नहीं।
कदम कदम पर सही,
कदम कदम पा गलत।
तेज़ धार पर मानव कदम
ज़रा सा असावधानी या
समय का फेर उसको
के जाता स्वर्ग की ओर।
या धखेल देता नरक में।
किसी कवि ने लिखा
एक बूंद बादल से निकला
पता नहीं उसके भाग्य का
एक ऐसी अनुकूल हवा नहीं
समुद्र के खुले सीपी में गिरी
बनी चमकीले मोती।
कदली भुजंग सीप
स्वादिष्ट फल तो सांप में विष।
यही जीवन का फल
ऊपरवाले का देन।।
भले ही चक्रवर्ती हो
संतान भाग्य,संतोषमय जीवन
ईश्वर के देन।
गरीबी में सुखी जीवन।
अमीरी में दुखी जीवन
ईश्वर का देन ।
मानव प्रयत्न मानवेत्तर
शक्ति के हाथ।
यही मेरे अनुभव की बात।।
एस.अनंतकृष्णन,(मतिनंत)
जुगनू
जुगनू में चमक
मानव में नहीं।
जग की रचनाएं अतिविचित्र।
जागृत जीवन में
जुगनू की रोशनी काफी
सूर्य की चमक जीवन में।
उल्लू की अंधेरे की सृष्टि
मानव को नहीं,है तो
चोर डाकू। स्मगलर्स
जी नहीं सकते।
मानव में सत्य की चमक
जुगनू सम होते हैं,
असत्य की चमक सूर्य सम।
अतः सत्य जुगनू सा
टिम टिम करता है।
वही देता सुख दुख असह्या सह्य।।
स्वरचित सवाचिंतक
एस.अनंतकृष्णन।
कल्पना के पंख उड़ते हैं ,
कंजूसी अभिव्यक्ति की नहीं ,
श्रोताओं के मनो भावों की।
ऐसा लिखना जिसमें न हो राजनीति।
ऐसा लिखना न मत-मतान्तरों का भेद।
गुण ही गुण जिसमें वैमनस्य का जूँ भी न रेंगे।
लिखने में क्या व्यवहार में अलग भाव.
एक शब्दों के कर्णधार को विद्यालय के
वार्षिकोत्सव में मुख्यातिथि का सम्मान दिया।
अतिथि महोदय आये ,अपने विशेष भाषण में
इतनी तालियों की आवाज़ सूनी।
जोश में कहा संस्था की प्रगति के लिए
दो लाख देता हूँ। फिर तालियाँ।
चार साल हो गए वे बहाने बनाने में पटु निकले। .
अभिव्यक्ति में क्या कंजूसी ,व्यवहार तो अलग.
कल्पना के घोड़े दौड़ाने में मितव्ययी क्यों ?
वर्णनातीत वर्णन तिल को ताड़ बनाना ,
ताड़ को तिल बनाना शब्दानंद।
दिलानन्द तिल पर भी नहीं।
कल्पना पाताल आसमान एक कर सकता।
हवा में महल बनाता।
स्वरचित स्वचिंतक -एस। अनंतकृष्णन।
जीवन /जिंदगी।
नमस्कार। वणक्कम।
जी वन है तो सुन्दर नंदवन जिंदगी।
जिंदगी झाडी हो तो वन में सन्यासी जीवन।
ज़िंदा आतंकित मनुष्य की जिंदगी
अति वेदना ,सिद्धार्थ राजकुमार को
वन में जीवन अति ज्ञानप्रद।
जी वन जैसा होने पर
अर्थात जी में खूँख्वार विचार।
लोभ ,काम अहंकार हो तो
वनजीवन मानव जीवन।
नाना प्रकार के वन जीव के भय।
वही जी में तीर्थंकर हो तो
घने वन आदमखोर पशु ,हिरन
एक ही घाट पर पानी पीते।
संकीर्ण तंग मय माया भरा जी
शांत संतोष चैन भरा जीवन। .
स्वरचित स्वचिंतक अनंतकृष्णन।
फूलों के संग कांटे क्यों ?
सोचा बहुत ,
ईश्वर तो सही है ,
जीभ अति कोमल।
स्वाद पहचानने में वही सहायक।
वही कोमल जीभ दाँत के बीच है
अति सुरक्षित ,पर एक शब्द गलत बोल
जीभ सुरक्षित,श्रोता जन्मजन्मांतर दुश्मन।
नाखून के चुभने से खुद का नाखून अति दुख।
सीपी में मोती सुरक्षा ,कछुआ को कवच।
साँप को फुफकार ,बघनख।
हर एक को विशेष सुरक्षा एक -एक.
पर मानव के काँटें
सुन्दर रूप ,सुन्दर मोहक स्वर।
ठग की बातें मोह की बातें ,
छिपकर रहना ,गुप्त बातें।
फूल के कांटें प्रत्यक्ष पर
अंग रक्षक खुद हत्यारा।
मधुर वचन मनुष्य बम।
फूल के कांटे प्रत्यक्ष।
मनुष्य के छल -कपट ,
षड्यंत्र जैसे सुन्दर फूल में
कीड़े फँसाने की शक्ति।
कोमल दल पर चिपक जाते कीड़े।
सूक्ष्मता ईश्वर की रचनाएँ अति चमत्कार। .
स्वरचित स्वचिंतक अनंतकृष्णन ,
Sunday, September 13, 2020
करत करत अभ्यास करत
मैं भी हिंदी भाषी नहीं,
ईश्वर के अनुग्रह हिंदी विरोध
वातावरण में बना हिंदी प्रचारक हिंदी अध्यापक तमिलनाडु में।
कुछ लिखता रहता
हूं।
प्रयत्न / कोशिश/चेष्टा/प्रयास
फल/मेवा/प्रशंसा/तारिफ
कौनसा शब्द बढ़िया उचित जानने समझने में देरी।
अलविदा अंतिम विदा समझने
ईश्वर करुण चाहिए।
मैं मित्रों को भाई बहनों को अलविदा कहता कि मैं बड़ा पंडित।
ईश्वर करुण जी ने समझाया
जब उनको अलविदा कहा,
भाई अलविदा तो अंतिम विवदा
आप की हिंदी में सुधार चाहिए।
ऐसी बातें समझाने
ईश्वर करुण सा शुभ चिंतक चाहिए।
अब मैं नहीं कहता अलविदा।
केवल विदा।
भगवद्गीता मान्य ग्रंथ
भारतीयों के लिए
अनुशासन और कर्त्तव्य के
मार्गदर्शक ईश्वरीय देन।
फिर भी देशोन्नति के साथ,
धन का ही प्रधानता,
दया तो अति कम।
श्मशान भूमि में भी
निर्दय व्यवहार।
अस्पताल में ,
शिक्षालयों में
निष्काम कर्त्तव्य मार्ग
कितने पालन करते हैं?
आनंदपूर्ण , संतोषजनक
शांतिपूर्ण जीवन बिताते हैं
पता नहीं, पर हर कोई
ईश्वर का गुण करते हैं।
गीता का योगदान करते हैं
पर माया या शैतान के वशीभूत
मानव दुखांत में
सुखांत की खोज में।
अनंत कृष्णन,(मतिनंत)चेन्नै।
नारी चित्रलेखन।
बेगार गुलाम नारी।
नर सत्तात्मक प्रशासन से मुक्त।
नर नारी की अर्द्ध शक्ति।
अर्द्ध नारीश्वर सम शक्ति।
परावलंबित नारी नहीं,
स्वावलंबित नारियां।।
शिक्षा उन्नति सही।
पर युवक युवतियों में
संयम की कमी, जितेंद्र कोई नहीं।
देवेंद्र को भी शाप,
शरीर भर योनी।
संयम रहित अगजग में
नारी की हिफाजत नारी।
चालक नारी चतुर बन
पर्दा फेंक कर बाहर आती
यह एक महिला संघ का साहस।
नारियां वीरांगनाएं,
नारियां विमान चालक।
नारी उत्थान मातृसत्तात्मक शासन।
जय हो नारी शक्ति और स्वावलंबन।
नारी
एक जमाना था,
केवल खाना ,
अरद्धनग्न कपड़ा
सोना काफ़ी मानव मानते।
शिक्षा के विकास,
वैज्ञानिक सुख सुविधाएं
मानव को धन प्रधान बना दिया
नर नारी को कमाना हो
गया जरूरी।
सेना, विमान चालक और
अन्यान्य क्षेत्रों में
नारी भी चमकने लगी।
राजनीति में न अधिक।।
नारी के उत्थान में
नर भी साथ देता जहां
धोबी की बात पर
राम ने सीता को भेजा था जंगल।।
वहां पर्दा घूंघट निकालकर
गाड़ी चलाना सोच विचार परिवर्तन भारत समाज की प्रगति।
स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन।चेन्नै।
म🤫😀🤭🤔 हास्य
मैं हूं रंगीला ,
मैं हूं अपने को
हरा तमिलवाला कहता हूं।
अजब हममें वैज्ञानिक
तमिल वाले हैं,गैर वैज्ञानिक।
भ्रष्टाचार में भी वैज्ञानिक , अवैज्ञानिक।
हम हिंदी से चिढ़ते नहीं,
हिंदी से न घृणा।
भगवान नहीं कहा करते,पर
विवश मानना पड़ा।
हम मंदिर जाया नहीं करते।
पर अर्द्धांगिनी जाया करती
हमारे पापों को भी प्रायश्चित करती, मन में भय पर कहते
नारी स्वतंत्रता में धकल नहीं करते।
अब एक मात्र नारा
हिंदी- संस्कृत को आने नहीं देंगे
पर मत वोट मांगने
उदय सूर्य चिन्ह कहेंगे।
हिंदी पढ़ने को रोका नहीं करते।
अतः दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा जिंदा है
चुनाव के सिद्धांत में
हिंदी विरोध नारा मात्र है।
कैसे छोड़ सकते?
हिंदी वालों से हम
हिंदी में ही वोट के लिए
अनुनय विनय करते हैं।
हिंदी से चिढ़ते नहीं,पर
अवैध संबंध ही रखते।
चुनाव में मजबूर हम।
अपने लाभ के लिए
सत्यता के लिए विरोध करना पड़ता है,पर लोगों में जागरूकता आ गई,पर आशा है "|
हरा तमिल नारा काम आएगा।
स्वरचित स्वचिंतक
अनंत कृष्णन एस।
नमस्ते।
नव विचार ,नव चिंतन ,नव आशा
नव भारत का निर्माण।
सुविचार सुख देता है तो बाद विचार बेचैनी।
सुखप्रद कर्म कर सुफल जरूर।
सिरों रेखा लिखकर जन्म ,बदलना ईश्वर ही जान.
गुरु भक्ति से ईश्वर मिलान ,पर सद्गुरु की खोज कर.
धन प्रधान आश्रम आचार्य सही ,
पर फुटपाथ पर भी अर्द्धनग्न सिद्ध पुरुष।
मुफ़्त में देते सलाह ,सत्यता बताते।
धन प्रधान ही ईश्वर अनुग्रह नहीं ,
मन पवित्र तन पवित्र।
दान धर्म ध्यान काफी।
हज़ारों साधू भारत में
बचाते हैं अपने ध्यान से।
अत्याचार बढ़ते तो देखते हैं प्राकृतिक कोप.
धन से बढ़कर ईश्वरी तांडव शक्ति जान.
शान्ति संतोष ईश्वरीय सूक्ष्म शक्ति
न माया मोह स्वार्थ विचार।
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ध्यान प्राणायाम
मनो अभिलाषा पूरी होने का मूल.
स्वचिंतक अनंतकृष्णन
मित्रचिन्तन
40.धर्म मार्ग पर कमाओ धन।
वही तेरी होशियारी।
वही यारी बिना भूले
करेगा तेरी सुरक्षा।।
39.कुचला कड़ुआ,
कभी न होता मीठा।
प्यार हीन है तो बदला दुख ही जान।।
38.नाडी नसों को सही सलामत रखें तो शारीरिक-मानसिक कमजोरी न होगी जान।।
27.प्राप्त मानव जीवन को
सुचारू रूप से चलाएंगे तो
अड़चनें जीवन में नहीं जान।।
37.मनुष्य में मनुष्यता होने पर
अंग जंग में दुख नहीं जान।
36.परायों को निंदा कर जीने पर
कभी पीड़ा नहीं जान।।
सानंद ऊंचे जीवन जीने गहरे सोच विचार की जरूरत जान।।
35.सूखे पत्ते कभी न होंगे हरे।
सत्य के न पालकों का जीवन भी वही।।
34.त्यागमय जीवन ही है जीवन।
बाकी सब सूखे पेड़ समान जान।।33. இல்லை
32. आध्यात्मिक जीवन में नाच-गान भी साथ जान।।
31.न्याय के सामने हिलने डुलने पर भी स्तरीय पर्यटक होगा जान।।
30.अंधेरे में प्रकाश लाभ -सुखप्रद।
अड़चनें आने पर दुखप्रद।।
१. नारियल के पेड़ के सिर गया तो
फिर न उगेगा जान।
वैसे ही मानव अपने का
न पहचानता तो प्रगति बाधक जान।
2.अनचाहा रोग को चाहकर ,
अपने शरीर में बसाना
कांटे में फंसी मीन समान जान।।
3.पंचभूत से बने शरीर के पंचेंद्रियों को तत्काल के कल्याण में अर्पण करना है श्रेयस्कर।।
4.मरण तो अपने आप हमें बिना भूले आलिंगन कर लेगा ही।
अतः हमें उनकी चिंता न कर
वि स्मरण कर जीना ही
श्रेयस्कर जान मान।।
5.पंचेंद्रिय नियंत्रण रहित जीना,
आग जग नारियों के लिए अमंगल ही जान।
6.मन मोहक ईश्वर को अपने
में गुप्त रखना उचित नहीं जान।।
7.तन मन बिगड़कर जीने पर
ईश्वर की खोज में भटकना ही जीवन जान।।
8.छाया की खोज में चलने से
माया छोड़ अलौकिक तलाश ही श्रेष्ठ जान।
9. मन पार के भगवान को छिपाकर जीना जीवन नहीं जान।
10.नास्तिक विचार ईश्वर का अवहेलना अहंकार भावना जान।।
11.अनासक्त ईश्वर पर आसक्ति होना ही संत जीवन जान।।
: कवि सम्मेलन
कविता लिखने से
सुनने सुनाने में आनंद।।
भारत में महाकाव्य श्रवण द्वारा ही अधिकांश लोग जानते हैं।
संत तिरुवल्लुवर कहते हैैं--
संपत्तियों में श्रवण ही श्रेष्ठ संपत्ति है ,वही सभी संपत्ति यों के सिर मौर है।
सेल्वत्तुल सेल्वम चेविच्चेल्वम,अच्चेल्वम चेल्वत्तुल एल्लाम तलै।।
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ईश्वर वंदना
श्रीगणेश करता हूं,
श्री गणेश के नाम से
ज्ञान श्री चाहिए।
श्रीनिधि चाहिए।
तन,मन,धन स्वस्वस्थ रहें।
अगजग में शांति,संतोष रहें।
मतांधता मिट जाएं।
मानव मानव में
धर्म ज्योति , मानवता जगजाएं।।
स्वरचित स्वचिंतक अनंत कृष्णन।
हिंदी दिवस ,
हिंदी तर लोगों को
महात्मा की देन।
अखंड भारत की
एकता का प्रतीक।
स्वार्थ भले ही करें विरोध।
देश भारत हम करते प्रचार।।
जनता आज हिंदी के पक्ष।।
मंच पर विरोध,पर हिंदी वर्ग में
रोज हाजिरी।
ऐसे हिंदी सिखाते,
पाठ हिंदी,पाठम तमिल जान।
कवि, कविता ,कथा,वाक्य ,आर्य
तमिल हिंदी बराबर जान।
अंग हिंदी तो अंगम तमिल
प्रयत्न प्रयत्नम,परिवर्तन परिवर्तनै। बस तमिल हिंदी एक मान।
मान=मानम गौरव =गौरवम
सरल -सरलम।कठिन कठिनम।
बस हमारे नाम सब संस्कृत।
तमिल अर्थ जान लो।
कमल,सरोजा,पद्मा,पंकजा नीरजा,जलता सब तामरै जान।
हम है दक्षिण के,हिंदी का प्रचार
करते हैं तन मन से।
स्वचिंतक =सुयचिंतनैयाळर
अनंत कृष्णन,चेन्नै।हिंदी प्रेमी प्रचारक।
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खड़ी बोली हिन्दी,
कैसी हुई प्रगति।
अंग्रेज़ी समान न
जीविकोपार्जन की भाषा।
डाक्टरि इंजीनियरिंग में
न हिंदी का प्रयोग।
ऐ।टि।
नौकरी में न
हिंदी का स्थान।
खासकर तमिलनाडु में तो
केवल जनता पसंद।
तमिलनाडु केशासक दल ,
विपक्षी दल करते हैं विरोध।
आजकल नया नारा--"हम न करते हैं हिंदी विरोध।
हिंदी का जबरदस्त थोपने का विरोध।।
वास्तव में सत्तर साल की
आजादी के बाद
अंग्रेज़ी गांव गांव शहर शहर।
पीछे पीछे हिंदी का विकास।
अपने आप।
अहिंदी प्रांतों में हिंदीवाले
हिंदी बोलते ही नहीं।
मजदूर भी बोलता शुद्ध तमिऴ।
कहते हैं अंग्रेजी से सर्वांगीण विकास।।
न आदर,न अनुशासन न विनम्रता,नशिष्टाचार।न संयम।
न संस्कृति।न जितेन्द्रियता।
शिक्षा महंगी, शिक्षा लय बंद।
मधुशाला खुली है।
संस्कृत शब्द भंडार
बना रहे हैैं
हिंदी विकास।।
भारतीय एकता मूल।
मोहनदास करमचंद गांधी
दूरदर्शी नेता गुजराती भाषी
आ सेतु हिमाचल की एकता की भाषा हिन्दी मानी।
धन्य है महात्मा, जिन्होंने
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की स्थापना की।
न तो दक्षिण में न हिंदी विकास।।
आज तीर्थ यात्रा के लिए जो
उत्तर भारत जाते,खुलकर कहते
हिंदी सीखना अत्यंत अनिवार्य।
यह अनुभव काफी, हिंदी का भविष्य तमिलनाडु में उज्ज्वल।।
अनंत कृष्णन चेन्नै।