विश्वासघात
एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
8-10-25
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मानव ही सर्वा हारी,
स्वार्थी , ईर्ष्यालु, प्रतिशोध लेनेवाला,
छद्मवेशी, सद्यःफल के लिए अपने मित्र को
शत्रु बनाकर शत्रु को मित्र
बनानेवाला चली, ठगी।
आस्तीन का साँप होता है।
भारत की पौराणिक कथाओं में भी
विश्वास घाती छद्मवेशी ज़्यादा है।
दल-बदलने वाले राजनीतिज्ञ,
सिद्धांत बदलनेवाले राजनीतिज्ञ,
मजहब बदलनेवाले भारतीय,
भ्रष्टाचारी रिश्वतखोरों के प्रशासन,
नशीली चीजों को
कालेज के छात्रों को
खिलानेवाले देशद्रोही,
चित्रपट, अखबारों में
अश्लील हास्य व्यंग चित्रपट,
गीत गानेवाले सब
एक प्रकार के विश्वासघाती ही हैं!
भारत के इतिहास में
सभी देशों के वासी
विरले आकर विश्वासघातियों की
मदद से शासक भी बन गये।
उनके चाँदी के टुकड़ों के लिए
भारतीय विश्वासघातियों ने अपनी संस्कृति छोडी,
भाषाएँ छोड़ी,
पोशाक बदलीं,
भारतीय जलवायु के विरुद्ध,
बंद कपड़े पहनने लगे।
नशीली पदार्थ अपनाने लगे।
पगड़ी बदलकर पगड़ी उतारने लगे।
मुट्ठी भर के अंग्रेज़ी
उनके नौकर बनकर
सिपाही बनकर
अपने ही देशवासियों को
मारने पीटने लगे।
ये भी देशद्रोही,
विदेशियों को सलाम करनेवाले दो हाथ जोड़कर नमस्कार करना भी छोड़ दिया।
एक हाथ में सलाम,
अभीवादन प्रणालियाँ भी बदल दी।
वेदाध्ययन के ब्राह्मण के बच्चे वेद, संध्या वंदन कहने पर नहीं जानते ।
वेदना की बात है,
ब्राह्मण लडकियाँ
प्रेम के चक्कर में फ़ँस जाती।
ब्राह्मण लड़कियों को फंसाने विश्वासघाती
प्रशिक्षण दे रहे हैं।
सब स्नातकोत्तर, डाक्टर,अभियंता,
खूब कमाते हैं
सम्मिलित परिवार में
रहना नहीं चाहते।
वीरगाथाकाल, भक्ति काल ,रीतिकाल में
देश में अखंड भारत की कल्पना नहीं,
भारतीय विश्वासघातियों के कारण देश बना गुलाम।
आज़ादी के संग्राम में
भारत की एकता देखने को मिली।
उसमें भी नरम दल गर्म दल।
सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल नेता बनकर भी बन न सके।
हमें इतिहास से सीखना है, भारतीयों में निस्वार्थ देशभक्ति चाहिए।
भक्ति क्षेत्र में भी विश्वासघात।
भक्ति बन गई व्यापार।
नकली संत नकली मंत्र
अंध भक्ति को व्यापार बनाने ,
इत्र तत्र सर्वत्र कदम कदम पर मंदिर।
शिव भगवान,
राम , कृष्ण के छद्मवेशी
भीख माँगते।
क्या भगवान देनेवाले हैं
या लेनेवाले।
भक्त रैदास, त्याग राज,की कहानी सुनकर भी भगवान को भिखारी बनाने साहस , विश्वास घाती।
जागो इन विश्वासघातियों से सतर्क रहो।
एकता ही निस्वार्थता ही
मानवता ही
देश में भेदभाव, राग-द्वेष
मिटाकर आनंद देंगे,
शांति देंगे। संतोष देंगे।
कदम कदम पर विश्वास घाती।
वामन के रूप में विष्णु,
शिव भक्त संन्यासी के रूप में रावण,
श्री कृष्ण का मायाजाल में कितने षड्यंत्र।
धर्म क्षेत्रे कुरुक्षेत्र नहीं,
आरंभ से अंत तक विश्वास घाती।
सावधान! फूँक फूँककर आगे बढ़ना।
काशी में, रामेश्वर में
कदम रखा तो ज्ञानी को
भी ठगनेवाले भिखारी।
ये भी एक तरह से विश्वास घाती।
सावधान! सावधान! सावधान!
एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना
काव्य मराथन में आज तीसरा दिन। चेन्नई के सुप्रसिद्ध कवि श्री ईश्वर करुण जी ने मुझे नामित किया और इसी कड़ी में मैं आज कविताएं लिख रहा हूँ।
कविता -3
आसमान -आकाश धरती -वसुंधरा
आसमान धरती से देखते हैं ,
सूर्य की गर्मी ,चन्द्रमा का शीतल
तारों का टिम टिमाना
धरती को निकट से छूकर देखते हैं।
जलप्रपात से गिरते नीर में नहाकर देखते हैं
बहती नदी में डुबकियाँ लगाकर देखते हैं
कुएँ में कूदकर तैरते हैं ,
मिट्टी के खिलौने बनाकर ,
पेड़ पौधे लगाकर ,
प्रिय पालतू जानवर को गाढ़कर
अंतिम संस्कार कर देखते हैं ,
यहीं स्वर्ग -नरक का अनुभव करते हैं
पर यहीं कहते हैं स्वर्ग है आसमान पर।
जिसे किसीने न देखा है.
बचपन का दुलार ,लड़कपन के दुलार
जवानी का दुलार ,बुढ़ापा का दुःख
दौड़ना -भागना जवानी ,बुढ़ापा सोच सोचकर आँसू
नरक तुल्य कोई कोइ खोया जवानी।
आसमान के स्वर्ग -नरक की चिंता में
जवानी का स्वर्ग -बुढ़ापे का नरक भूल
मानव तन समा जाता मिट्टी में।
आसमान धरा की चिंता कहीं नहीं
यहीं भोग प्राण पखेरू उड़जाते।
कहते हैं धरा नरक आसमान स्वर्ग।
एस। अनंतकृष्णन ,चेन्नै।